भारत की वायुसेना ने अपनी खुफिया क्षमता और निगरानी प्रणालियों को नया आयाम देने के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है. अब भारतीय वायुसेना की ताकत और बेहतर होने वाली है, क्योंकि 3 जुलाई 2025 को रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने 10,000 करोड़ रुपये की ISTAR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस, टारगेट एक्विजिशन और रिकनैसेंस) परियोजना को मंजूरी दे दी है. यह परियोजना भारत के रक्षा आधुनिकीकरण के व्यापक प्रोग्राम का हिस्सा है और इसके तहत वायुसेना को तीन अत्याधुनिक ISTAR विमान मिलेंगे. इन विमानों के साथ भारत एक नई सैन्य ताकत के रूप में उभरेगा.
ISTAR विमान: "सुपर स्पाई" की ताकत
ISTAR विमान किसी साधारण सर्विलांस एयरक्राफ्ट से बहुत अलग हैं. इन्हें एक "सुपर स्पाई" प्लेटफॉर्म माना जा सकता है, क्योंकि यह अत्याधुनिक तकनीकों से लैस होते हैं. इसमें इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल, सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR), सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT), इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ELINT) जैसी हाई-एंड खुफिया तकनीकें इंटीग्रेट की जाएंगी. यह विमान न केवल जानकारी एकत्र करेंगे, बल्कि उसे तत्काल विश्लेषण भी करेंगे, इसके लिए AI और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग किया जाएगा. इस विश्लेषण के बाद जमीनी सैनिकों और कमांड सेंटर्स तक तत्काल और अत्यधिक सटीक खुफिया जानकारी पहुंचेगी, जिससे युद्ध क्षेत्र में तेजी से निर्णय लिए जा सकेंगे और लक्ष्यों पर अधिक सटीक हमले किए जा सकेंगे.
भारत की रक्षा तैयारियों को नया आयाम
पूर्व एयर मार्शल अनिल खोसला ने एक लेख में उल्लेख किया है कि पिछले कुछ वर्षों में तीन बार ऐसे हालात बने हैं जब भारत को युद्ध की कगार पर खड़ा हुआ महसूस हुआ. एक तरफ चीन से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान से लगातार टकराव की स्थिति ने भारत की सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाया है. इस तरह के संकटपूर्ण समय में वास्तविक समय की खुफिया जानकारी किसी भी सैन्य अभियान की सफलता का आधार बन जाती है.
भारत को ऐसी निगरानी प्रणाली की जरूरत है, जो बिना सीमा लांघे दुश्मन की गतिविधियों की निगरानी कर सके. यही उद्देश्य ISTAR विमान को ध्यान में रखते हुए हासिल किया गया है, जो भारतीय वायुसेना को नेटवर्क-केंद्रित युद्ध प्रणाली में मजबूती प्रदान करेगा.
स्वदेशी टेक्नोलॉजी और विदेशी प्लेटफॉर्म का मिश्रण
ISTAR विमान खरीदने के लिए भारत ने शायद बोइंग या बॉम्बार्डियर जैसे वैश्विक विमान निर्माताओं से एयरक्राफ्ट खरीदने का विचार किया है, जिनमें DRDO के सेंटर फॉर एयरबोर्न सिस्टम्स (CABS) द्वारा विकसित स्वदेशी सेंसर और संचार प्रणालियां इंटीग्रेट की जाएंगी. इन विमानों में 40,000 फीट की ऊंचाई पर 8 घंटे तक उड़ान भरने की क्षमता होगी और SAR रडार 200 किलोमीटर की दूरी से जमीन की हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरें प्राप्त कर सकेगा. इसके अलावा, ग्राउंड मूविंग टारगेट इंडिकेटर (GMTI) सिस्टम 150 किलोमीटर की दूरी तक चलने वाले वाहनों और लोगों की पहचान कर सकेगा. EO/IR सेंसर भी अंधेरे और खराब मौसम में लक्ष्य पहचानने में सक्षम होंगे.
आधुनिक जासूसी विमानों से कहीं आगे
इन विमानों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें AI/ML आधारित ऑटोमैटिक टारगेट रिकग्निशन और चेंज डिटेक्शन जैसी तकनीकें शामिल की जाएंगी, जो पारंपरिक जासूसी विमानों से कहीं ज्यादा एडवांस हैं. इससे भारतीय वायुसेना को एक नई ताकत मिलेगी, जो दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने और त्वरित कार्रवाई करने में सक्षम होगी.
प्रशासनिक अड़चनों का समाधान और भविष्य की चुनौतियां
हालांकि यह प्रोजेक्ट भारतीय वायुसेना के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन इस दिशा में कई चुनौतियां भी रही हैं. इससे पहले 2013 और 2017 में ISTAR विमानों की खरीद की कोशिशें की गई थीं, लेकिन नौकरशाही अड़चनों, कीमत को लेकर विवाद और DRDO-IAF के बीच तकनीकी मतभेदों के कारण प्रोजेक्ट अटकता रहा. लेकिन अब इन अड़चनों को हल किया गया है और तकनीकी स्तर पर भी सुधार किए गए हैं.
भविष्य की दिशा में एक नया मोड़
ISTAR विमान कार्यक्रम केवल भारतीय वायुसेना की क्षमताओं को बढ़ाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह भारत को उन चुनिंदा देशों में शुमार करेगा जिनके पास एडवांस एअर-टू-ग्राउंड निगरानी और स्ट्राइक कोऑर्डिनेशन क्षमताएं हैं. इस परियोजना के पूरा होने से भारत की सैन्य ताकत कई गुना बढ़ जाएगी, और यह हमारे रक्षा क्षेत्र को एक नई दिशा देगा.
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