75 देशों को चीन ने बनाया 'गुलाम'? श्रीलंका, जाम्बिया, पाकिस्तान भी शामिल, अमेरिकी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

    दुनिया के सबसे कमजोर और विकासशील देशों के सामने अब सिर्फ गरीबी नहीं, बल्कि चीन का बढ़ता कर्ज एक नया संकट बनता जा रहा है.

    China made 75 countries slaves big revelation in US report
    जिनपिंग | Photo: ANI

    दुनिया के सबसे कमजोर और विकासशील देशों के सामने अब सिर्फ गरीबी नहीं, बल्कि चीन का बढ़ता कर्ज एक नया संकट बनता जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया के मशहूर थिंक टैंक Lowy Institute की ताजा रिपोर्ट ने इस खतरे की गंभीरता को उजागर किया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2025 में दुनिया के 75 सबसे गरीब देशों को चीन को रिकॉर्ड 35 अरब डॉलर से ज्यादा की कर्ज किस्त चुकानी है.

    कर्ज चुकाना बन गया है बोझ, विकास पर ब्रेक

    Lowy Institute के अनुसार, इन देशों की आर्थिक स्थिति पहले से ही नाजुक है और अब कर्ज की भारी भरपाई उन्हें विकास योजनाओं को थामने पर मजबूर कर रही है. रिपोर्ट कहती है कि इतनी बड़ी रकम लौटाना कई सरकारों के लिए असंभव होता जा रहा है, जिससे सामाजिक सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर बुरा असर पड़ रहा है.

    ‘बेल्ट एंड रोड’ के नाम पर कर्ज का जाल

    पिछले 10 वर्षों में चीन ने अपनी Belt and Road Initiative (BRI) योजना के तहत दर्जनों देशों में सड़क, रेलवे, बंदरगाह और पावर प्रोजेक्ट्स में अरबों डॉलर निवेश किए. शुरुआत में यह निवेश आर्थिक सहयोग की तरह दिखा, लेकिन शर्तें इतनी कड़ी थीं कि कई देश धीरे-धीरे चीन के ‘ऋण जाल’ (Debt Trap) में फंसते चले गए. श्रीलंका का हम्बनटोटा पोर्ट इसका सबसे चर्चित उदाहरण है, जिसे 99 साल की लीज पर चीन को सौंपना पड़ा.

    कर्ज के पीछे छिपा रणनीतिक इरादा?

    अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि चीन का यह कर्ज सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक दबाव बनाने का तरीका बनता जा रहा है. जब देश कर्ज नहीं चुका पाते, तो चीन उनसे व्यापार, सैन्य और कूटनीतिक मामलों में अपने अनुकूल फैसले लेने की शर्तें थोप देता है.

    भारत के लिए खतरे की घंटी

    भारत के पड़ोसी देशों—जैसे नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव—पर भी चीन का भारी कर्ज है. अगर ये देश भी कर्ज संकट में आते हैं, तो चीन की पकड़ भारत की सीमाओं के और भी नजदीक पहुंच सकती है. इससे न सिर्फ भारत की रणनीतिक स्थिति प्रभावित हो सकती है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में ताकत का संतुलन भी बदल सकता है.

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