तुर्की में एक बार फिर राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन सुर्खियों में हैं. इस बार वजह है — नया संविधान! एर्दोगन ने कानूनी विशेषज्ञों की एक टीम को संविधान का मसौदा तैयार करने का आदेश दिया है. उनका दावा है कि मौजूदा संविधान "पुराना" हो चुका है और इसे बदलने की ज़रूरत है. लेकिन राजनीतिक जानकार इसे सत्ता में बने रहने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं, खासकर जब 2028 में उनका मौजूदा कार्यकाल समाप्त हो रहा है.
पुराने संविधान की आलोचना, लेकिन असली मंशा क्या?
एर्दोगन का कहना है कि 1980 के सैन्य तख्तापलट के बाद बने संविधान में अब भी सैन्य प्रभाव मौजूद है, जिसे हटाना जरूरी है. उन्होंने पहले भी 2017 में संविधान में संशोधन कर राष्ट्रपति पद की शक्तियां बढ़ा ली थीं. अब एक पूरी तरह नया संविधान लाकर वो सत्ता में और ज्यादा समय तक बने रहना चाहते हैं.
2003 से सत्ता में, अब 'आजीवन राष्ट्रपति' बनने की कोशिश
एर्दोगन 2003 से सत्ता में हैं — पहले प्रधानमंत्री के रूप में और 2014 से राष्ट्रपति के रूप में. उन्होंने तुर्की की राजनीति में अपने लिए एक मजबूत जगह बना ली है, लेकिन अब विपक्ष और विश्लेषकों को डर है कि ये नया संविधान उन्हें आजीवन राष्ट्रपति बनने का रास्ता देगा.
विपक्ष का विरोध और लोकतंत्र पर सवाल
तुर्की का विपक्ष एर्दोगन की इस पहल को तानाशाही की ओर एक और कदम बता रहा है. उनका मानना है कि यह सिर्फ एक बहाना है ताकि 2028 के बाद भी एर्दोगन राष्ट्रपति बने रह सकें. कई विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि तुर्की धीरे-धीरे लोकतांत्रिक शासन से हटकर एक व्यक्ति के अधीन सत्ता की ओर बढ़ रहा है.
क्या तुर्की में फिर बदलेगा सत्ता का संतुलन?
एर्दोगन की रणनीति साफ दिखाती है कि वह सत्ता को छोड़ने के मूड में नहीं हैं. यदि नया संविधान लागू होता है, तो यह तुर्की की राजनीति और लोकतंत्र पर गहरा असर डाल सकता है.
ये भी पढ़ेंः पटना AIIMS में कोरोना की दस्तक, डॉक्टर-नर्स समेत 6 संक्रमित; स्वास्थ्य विभाग अलर्ट