भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व का एक गूढ़ आध्यात्मिक अर्थ छिपा होता है. ऐसा ही एक पवित्र पर्व है आंवला नवमी, जिसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन को अक्षय पुण्य देने वाला कहा गया है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इस दिन आंवले के वृक्ष में स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु का वास होता है. जो भी भक्त इस दिन श्रद्धा से आंवले के वृक्ष की पूजा करता है, उसे गोदान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि वर्ष 2025 में 30 अक्टूबर को सुबह 10:06 बजे से प्रारंभ होकर 31 अक्टूबर को सुबह 10:03 बजे समाप्त होगी. चूंकि हिंदू परंपरा में उदया तिथि को ही प्रमुख माना जाता है, इसलिए इस वर्ष आंवला नवमी 31 अक्टूबर 2025 (शुक्रवार) को मनाई जाएगी. पद्म पुराण के अनुसार, भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने माता पार्वती से सुना था कि आंवले के वृक्ष में स्वयं विष्णु भगवान निवास करते हैं. इस वृक्ष की पूजा करने से मनुष्य को लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पूजन का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष आंवला नवमी की पूजा का शुभ समय प्रातः 06:37 बजे से 10:04 बजे तक रहेगा. कुल 3 घंटे 25 मिनट तक चलने वाले इस शुभ मुहूर्त में आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा, दीपदान और भजन-कीर्तन करना अत्यंत मंगलकारी माना गया है.
पूजा विधि: कैसे करें आंवले के वृक्ष की आराधना
इस दिन प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर आंवले के वृक्ष के पास जाएं. सबसे पहले वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल और दूध अर्पित करें. वृक्ष के तने और शाखाओं पर रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प और धूप-दीप अर्पित करें.आंवले के फल को विशेष रूप से पूजन में शामिल करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है.पूजा के बाद वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें और प्रत्येक चक्कर में अपने परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख की कामना करें.अंत में आंवले के फल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें. यह प्रसाद अमृत तुल्य माना जाता है जो शरीर, मन और आत्मा – तीनों को शुद्ध करता है.
आंवला नवमी की पौराणिक कथा
कहा जाता है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आईं. उन्होंने देखा कि लोग धन-संपत्ति और सुख की चाह में परिश्रम तो करते हैं, लेकिन फिर भी उनके जीवन में संतुलन और स्थिरता की कमी है. माता ने सोचा—“क्यों न मैं ऐसा उपाय खोजूं जिससे भक्तों के जीवन में स्थायी समृद्धि आए.” माता लक्ष्मी ने ध्यान किया और समझा कि यदि भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की एक साथ पूजा की जाए, तो यह संभव है. लेकिन प्रश्न था—ऐसी जगह कहां मिलेगी जहां दोनों देवताओं का एकसाथ वास हो?
दीर्घ ध्यान के बाद माता को ज्ञात हुआ कि आंवले का वृक्ष ही वह पवित्र स्थल है, जहां तुलसी (जो विष्णु को प्रिय है) और बेल पत्र (जो शिव को प्रिय है)—दोनों के गुण एक साथ विद्यमान हैं. इसलिए माता लक्ष्मी ने उसी वृक्ष के नीचे विधि-विधान से पूजा आरंभ की. उन्होंने जल, दूध और पुष्प अर्पित किए, दीप जलाया और भगवान विष्णु तथा भगवान शिव का ध्यान किया. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए. दोनों ने माता लक्ष्मी को आशीर्वाद दिया “जो भी श्रद्धा और नियमपूर्वक आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा, उसके घर में कभी दरिद्रता नहीं आएगी, उसका परिवार सुखी रहेगा और अंत में उसे मोक्ष प्राप्त होगा.” इसके बाद माता लक्ष्मी ने वहीं वृक्ष के नीचे पवित्र भोजन तैयार किया, उसे भगवान विष्णु और भगवान शिव को अर्पित किया और फिर स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण किया. उसी क्षण से यह परंपरा आरंभ हुई कि कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाए.
आंवला नवमी का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
आंवला न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र है, बल्कि आयुर्वेद के अनुसार यह शरीर के लिए अमृत समान है. इसमें विटामिन C, एंटीऑक्सीडेंट और रोग प्रतिरोधक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसलिए इसे स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु का प्रतीक माना गया है.धर्मशास्त्रों में कहा गया है
“आंवले का पूजन सर्वपापप्रशमनं, आयुष्यं बलं यशः च ददाति.
अर्थात, आंवले की पूजा से पाप नष्ट होते हैं, दीर्घायु और यश की प्राप्ति होती है.
यह भी पढ़ें: Aaj Ka Rashifal 31 OCT 2025: किसकी किस्मत का खुलेगा ताला? पढ़ें मेष से लेकर मीन तक का राशिफल