अमेरिका का नया 'सुपर डील' प्लान? रूस-चीन के साथ दुनिया के बंटवारे की तैयारी! ट्रंप की सोच से दहल गया एशिया

    अमेरिकी राजनीति में अगर किसी एक शब्द को डोनाल्ड ट्रंप की पहचान कहा जाए, तो वो है — "डील"

    America Trump new Super Deal plan with Russia and China
    डोनाल्ड ट्रंप | Photo: ANI

    अमेरिकी राजनीति में अगर किसी एक शब्द को डोनाल्ड ट्रंप की पहचान कहा जाए, तो वो है — "डील". चाहे चीन से ट्रेड वार हो या रूस से कूटनीतिक समीकरण, ट्रंप हर बार खुद को एक ऐसे सौदागर की तरह पेश करते हैं जो असंभव को भी मोल-तोल से मुमकिन बना सकता है. लेकिन हालिया घटनाक्रम और बयानबाज़ी कुछ गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं — क्या ट्रंप सिर्फ डील कर रहे हैं या एक नई वैश्विक व्यवस्था की कल्पना भी कर रहे हैं, जिसमें दुनिया तीन ताकतों — अमेरिका, रूस और चीन — के बीच बंट जाए?

    रूस और चीन से ‘बड़ी डील’ की तैयारी?

    न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में रूस के साथ व्यापार सामान्य करने की बात कही. यह एक संकेत था कि वे यूक्रेन युद्ध में मॉस्को पर दबाव कम करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं. दूसरी ओर, चीन के नेता शी जिनपिंग से बातचीत की कोशिश के ज़रिए वे ग्लोबल ट्रेड वॉर के प्रभाव को सीमित करने की योजना में लगे हुए हैं.

    टाइम मैगज़ीन को दिए एक इंटरव्यू में ट्रंप ने खुद को “एक विशाल, सुंदर स्टोर” बताया जहां “हर कोई खरीदारी करना चाहता है” — एक प्रतीकात्मक टिप्पणी जो बताती है कि वे हर वैश्विक सौदे को एक कारोबारी मौके की तरह देखते हैं.

    ट्रंप की वैश्विक सोच: स्पीयर ऑफ इन्फ्लुएंस?

    विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की विदेश नीति महज डील तक सीमित नहीं है. टफ्ट्स यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मोनिका डफी टॉफ्ट के अनुसार, ट्रंप एक ऐसी दुनिया की कल्पना कर रहे हैं जिसमें तीन वैश्विक शक्ति केंद्र हों — अमेरिका, चीन और रूस. यह सोच 19वीं सदी की साम्राज्यवादी रणनीति की याद दिलाती है, जब दुनिया को "प्रभाव के क्षेत्रों" (spheres of influence) में बांटा गया था. ट्रंप का ग्रीनलैंड को खरीदने, कनाडा को अमेरिका में मिलाने और पनामा नहर पर दोबारा अधिकार पाने जैसे विचार, इसी सोच की पुष्टि करते हैं.

    अमेरिकी सहयोगियों से दूरी, रूस और चीन से नज़दीकी

    ट्रंप ने न केवल पारंपरिक अमेरिकी सहयोगियों की आलोचना की है, बल्कि अमेरिका के सैनिकों को दुनियाभर से वापस बुलाने की बात भी कई बार दोहराई है. इससे रूस और चीन को भू-राजनीतिक फायदा मिलने की आशंका है. वे पुतिन और शी जिनपिंग को “मजबूत और बुद्धिमान नेता” मानते हैं और कई बार उन्हें अपने "दोस्त" भी कह चुके हैं.

    यूक्रेन के विभाजन, नाटो की आलोचना और ताइवान को लेकर उनकी अस्थिर रणनीति न सिर्फ अमेरिका की विदेश नीति को झटका दे रही है, बल्कि एशिया और यूरोप में सुरक्षा संतुलन को भी बिगाड़ सकती है.

    क्या ताइवान अगली डील का हिस्सा बनेगा?

    चीनी विश्लेषक यून सन का कहना है कि बीजिंग अमेरिका के साथ एक बड़े "इन्फ्लुएंस डील" की उम्मीद कर रहा है — जिसमें पहला बड़ा कदम ताइवान पर सौदा हो सकता है. यदि ऐसा हुआ तो यह न केवल ताइवान की सुरक्षा को खतरे में डालेगा, बल्कि एशिया में अमेरिका की विश्वसनीयता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करेगा.

    भारत के लिए क्या संकेत?

    पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक अहम साझेदार के तौर पर देखा गया था. लेकिन ट्रंप की नीतियों से संकेत मिल रहे हैं कि वो भारत के साथ संबंधों को उसी तरह गंभीरता से नहीं ले रहे. अमेरिकी मीडिया अब खुलकर कहने लगा है कि ट्रंप की सोच अगर आगे भी हावी रही तो अमेरिका, एशिया में अपना सबसे भरोसेमंद सहयोगी खो सकता है.

    ये भी पढ़ेंः शशि थरूर के साथ डिनर में ठहाके भी, गंभीर चर्चा भी... विपक्षी सांसदों के साथ ऐसे दिखे PM मोदी