इस्लामाबाद: पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र खैबर पख्तूनख्वा में हाल के महीनों में हिंसा की घटनाओं में भारी वृद्धि देखी गई है. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बलूचिस्तान दशकों से अस्थिरता का शिकार रहा है, लेकिन हाल ही में बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे संगठनों की गतिविधियों में तेजी आई है, जिसने क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियों को और जटिल बना दिया है.
बढ़ते हमलों ने बढ़ाई चिंता
16 मार्च को BLA ने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर बड़े हमले का दावा किया, हालांकि, पाकिस्तानी सेना ने इस दावे को खारिज कर दिया. इसी तरह, बलूचिस्तान के बोलन जिले में जाफर एक्सप्रेस पर हुए हमले में भी बड़े पैमाने पर हताहत होने की खबरें आईं, लेकिन आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई. खैबर पख्तूनख्वा में भी TTP की ओर से हमले तेज हो गए हैं, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता और बढ़ गई है.
राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण बन गई है. विश्लेषकों का मानना है कि यदि सुरक्षा हालात नहीं सुधरे, तो इससे न केवल आंतरिक अस्थिरता बढ़ेगी, बल्कि विदेशी निवेश और कूटनीतिक संबंधों पर भी असर पड़ेगा.
उन्नत हथियारों तक पहुंच: एक नई चुनौती
एक और अहम मुद्दा यह उठ रहा है कि हाल के हमलों में इस्तेमाल किए गए हथियारों की गुणवत्ता पहले की तुलना में कहीं अधिक उन्नत नजर आ रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, BLA और TTP के पास अब नाइट-विजन गॉगल्स, स्नाइपर राइफल्स और अन्य आधुनिक सैन्य उपकरण उपलब्ध हैं. पाकिस्तानी अधिकारियों ने आशंका जताई है कि ये हथियार अफगानिस्तान में छोड़े गए अमेरिकी सैन्य उपकरणों से प्राप्त हो सकते हैं.
हालांकि, इस्लामाबाद ने हिंसा के लिए अफगान तालिबान सरकार और भारत को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन काबुल और नई दिल्ली ने इन आरोपों को खारिज किया है. इस बीच, आंकड़े बताते हैं कि 2023 में BLA द्वारा 110 हमले किए गए थे, जबकि 2024 में यह संख्या 175 तक पहुंच गई. इन घटनाओं में कई सुरक्षा कर्मी हताहत हुए हैं, जिससे सुरक्षा एजेंसियों के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं.
BLA और TTP की रणनीति में बदलाव
सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि BLA और TTP अब अधिक संगठित और रणनीतिक तरीके से हमले कर रहे हैं. BLA के मजीद ब्रिगेड नामक आत्मघाती दस्ते ने हाल के हमलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस दस्ते को कथित रूप से बेहतर खुफिया जानकारी प्राप्त हो रही है, जिससे इसके हमलों की सटीकता और प्रभावशीलता में वृद्धि हुई है.
BLA के अलावा, अन्य गुरिल्ला इकाइयों और खुफिया नेटवर्क ने भी विदेशी निवेश, खासकर चीनी परियोजनाओं को निशाना बनाया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार स्थानीय मुद्दों को हल करने और लोगों के असंतोष को कम करने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाती, तो यह हिंसा आगे और बढ़ सकती है.
बलूचिस्तान में बढ़ता असंतोष
बलूचिस्तान में स्वतंत्रता की मांग एक बार फिर जोर पकड़ रही है. 2024 के आम चुनावों में बलूच उम्मीदवारों की हार को लेकर स्थानीय स्तर पर असंतोष बढ़ा है. आरोप लगाए जा रहे हैं कि चुनावों में धांधली की गई, जिससे युवाओं का झुकाव उग्र संगठनों की ओर बढ़ रहा है.
दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान में सैन्य अभियानों को तेज करने का संकेत दिया है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के अभियानों से स्थिति और बिगड़ सकती है, क्योंकि हिंसा के दुष्चक्र में हर हमले का बदला और भी बड़े हमले के रूप में सामने आ रहा है.
ब्रिटेन में बलूच मामलों के शोधकर्ता इम्तियाज बलूच के अनुसार, "बलूचिस्तान में संसदीय राजनीति का प्रभाव कमजोर हो रहा है, जिससे युवा उग्रवाद की ओर आकर्षित हो रहे हैं." यह प्रवृत्ति न केवल पाकिस्तान, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक गंभीर सुरक्षा चुनौती बन सकती है.
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