बांग्लादेश में ISI के पिट्ठू बन गए यूनुस! जमात-ए-इस्लामी को समर्थन देकर क्या प्लानिंग कर रहे?

    बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत ने पाकिस्तान समर्थक माने जाने वाले जमात-ए-इस्लामी (JEI) को एक बार फिर राजनीतिक मान्यता देते हुए चुनाव आयोग को इसका पंजीकरण बहाल करने का आदेश दिया.

    Yunus ISI in Bangladesh Jamaat-e-Islami
    यूनुस | Photo: ANI

    ढाका: बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर खड़ी है. हाल ही में सत्ता में आए मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाले अंतरिम प्रशासन ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर 'मानवता के विरुद्ध अपराध' के आरोप लगाने का ऐलान किया है. यह निर्णय उसी दिन सामने आया जब बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत ने पाकिस्तान समर्थक माने जाने वाले जमात-ए-इस्लामी (JEI) को एक बार फिर राजनीतिक मान्यता देते हुए चुनाव आयोग को इसका पंजीकरण बहाल करने का आदेश दिया.

    इन दोनों घटनाओं का समय और संदर्भ, राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, महज संयोग नहीं बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है — जिससे न केवल बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में बदलाव दिख रहा है, बल्कि क्षेत्रीय ताकतों के प्रभाव और दखल की आशंका भी बढ़ गई है.

    इतिहास के पन्नों से फिर उठी पुरानी परछाइयां

    1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान की सेना के साथ खड़े रहने वाले इस्लामी दल जमात-ए-इस्लामी को आजादी के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन अब अदालत के फैसले के बाद यह समूह फिर से चुनावी राजनीति में उतरने को तैयार है. अदालत ने न सिर्फ जमात का पंजीकरण बहाल करने को कहा, बल्कि जमात के वरिष्ठ नेता एटीएम अजहरुल इस्लाम की 2014 की मौत की सजा को पलटते हुए उन्हें जेल से रिहा भी कर दिया.

    यह वही अजहरुल इस्लाम हैं जिन पर बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान बलात्कार, हत्या और नरसंहार जैसे संगीन आरोप साबित हुए थे.

    शेख हसीना पर आरोप और जमात को राहत

    विश्लेषकों का मानना है कि शेख हसीना पर लगाए गए ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ के आरोप और जमात की वापसी का घटनाक्रम एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. अंतरिम सरकार के इस कदम को, हसीना सरकार की उस नीति के विरुद्ध माना जा रहा है, जिसके तहत जमात के नेताओं को युद्ध अपराधों के लिए कठोर दंड दिए गए थे.

    सत्ता से हटाई गईं शेख हसीना पर ये आरोप उस समय लगाए गए जब जमात समर्थित विरोध प्रदर्शनों के बाद उन्हें 5 अगस्त 2024 को सत्ता से बाहर होना पड़ा था. अब यह बदलाव पाकिस्तान की नीति के पक्षधर माने जा रहे राजनीतिक धड़ों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरा है.

    पाकिस्तान की परछाईं और ISI की भूमिका

    बांग्लादेश में जमात की सक्रियता को लेकर भारत और अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों की चिंता का एक प्रमुख कारण है — पाकिस्तान की भूमिका. रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी ISI लंबे समय से बांग्लादेश में राजनीतिक प्रभाव जमाने के लिए जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों को समर्थन देते आए हैं.

    इतिहास गवाह है कि जमात ने न केवल 1971 में पाकिस्तानी सेना का साथ दिया, बल्कि बाद के वर्षों में ISI के एजेंडे को बांग्लादेश में मजबूती से आगे बढ़ाया. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की सहयोगी रही जमात ने पूर्व में कई मौकों पर भारत विरोधी गतिविधियों के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराए.

    क्या बांग्लादेश में फिर बदलेगा राजनीतिक परिदृश्य?

    मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कार्य कर रही अंतरिम सरकार के कदम संकेत दे रहे हैं कि बांग्लादेश का राजनीतिक संतुलन धीरे-धीरे कट्टरपंथी और पाकिस्तान समर्थक धड़ों की ओर झुक सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इससे भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि हसीना सरकार ने पिछले एक दशक में आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाए थे और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई थी.

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