नई दिल्ली: भारत ने अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता में अपना संशोधित और अंतिम प्रस्ताव सामने रख दिया है. इस प्रस्ताव में भारत की सबसे बड़ी प्राथमिकता रूसी कच्चे तेल के आयात से जोड़कर लगाए गए अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ को हटवाना है. सरकार का साफ संदेश है कि रणनीतिक साझेदारी और ऊर्जा सुरक्षा के बीच संतुलन पर कोई समझौता नहीं होगा. इसी पृष्ठभूमि में भारत ने अमेरिका को दो टूक कहा है कि वह अपने दीर्घकालिक हितों और साझेदारियों से पीछे नहीं हटेगा.
यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है, जब अमेरिकी व्यापार उप प्रतिनिधि रिक स्विट्जर के नेतृत्व में एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल 11–12 दिसंबर को नई दिल्ली में मौजूद था. इससे पहले अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर ने अमेरिकी सीनेट की विनियोग समिति के सामने कहा था कि भारत को राजी करना आसान नहीं है, हालांकि उन्होंने यह भी माना कि भारत ने अब तक “सबसे बेहतर प्रस्ताव” रखा है.
किन शर्तों पर भारत ने दिया ‘लास्ट ऑफर’
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ताजा प्रस्ताव में कुछ अमेरिकी उत्पादों पर तुरंत टैरिफ हटाने की पेशकश की गई है. इनमें अखरोट, बादाम, सेब और कुछ औद्योगिक वस्तुएं शामिल हैं. भारत चाहता है कि इसके बदले अमेरिका रूसी तेल के आयात से जोड़कर लगाए गए अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क को वापस ले.
द हिंदू ने एक अधिकारी के हवाले से बताया कि ये रियायतें एक व्यापक द्विपक्षीय व्यापार समझौते का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन मौजूदा बातचीत का फोकस सिर्फ और सिर्फ उस अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ को हटाने पर है, जिसने भारतीय निर्यातकों पर सबसे ज्यादा दबाव बनाया है.
50 फीसदी टैरिफ क्यों बना बड़ी समस्या
फिलहाल अमेरिका भारत से आने वाले कई उत्पादों पर कुल 50 प्रतिशत तक शुल्क लगा रहा है. इसमें 25 प्रतिशत ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ और 25 प्रतिशत वह अतिरिक्त शुल्क शामिल है, जिसे रूस से तेल खरीदने के कारण ‘पेनल्टी’ के तौर पर जोड़ा गया है.
अधिकारियों के मुताबिक, भारतीय निर्यातक 25 प्रतिशत तक का शुल्क किसी तरह झेल सकते हैं, क्योंकि वैश्विक बाजार में औसत टैरिफ करीब 19 प्रतिशत के आसपास है. लेकिन 50 प्रतिशत शुल्क उनके कारोबार को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है और प्रतिस्पर्धा की क्षमता खत्म कर रहा है. इसी वजह से सरकार ने साफ कर दिया है कि अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ का हटना इस डील की न्यूनतम शर्त है.
निर्यातक झेल रहे हैं घाटा, सरकार पर बढ़ा दबाव
सरकारी सूत्रों का कहना है कि कई भारतीय निर्यातक फिलहाल ऊंचे शुल्क का बोझ खुद उठा रहे हैं, ताकि अमेरिकी ग्राहकों को खोना न पड़े. उनका मानना है कि ग्राहक खोने के बाद उन्हें दोबारा हासिल करना ज्यादा मुश्किल और महंगा होगा. हालांकि, इसका सीधा असर उनके मुनाफे पर पड़ रहा है.
इसी दबाव के चलते उद्योग जगत ने सरकार से आग्रह किया है कि कम से कम रूसी तेल से जुड़े अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ का समाधान निकाला जाए. सरकार का कहना है कि बातचीत के स्तर पर भारत की ओर से हर संभव प्रयास किया जा चुका है और अब फैसला अमेरिकी नेतृत्व को करना है.
तेल खरीद में कटौती, लेकिन रिश्ता नहीं टूटा
आंकड़ों से पता चलता है कि भारत ने बीते एक साल में कई बार रूसी तेल आयात में कटौती की है. अक्टूबर 2025 में, पिछले साल की तुलना में, रूस से तेल आयात का मूल्य करीब 38 प्रतिशत और मात्रा लगभग 31 प्रतिशत कम थी. पिछले 12 महीनों में भारत ने नौ बार आयात घटाया, जिससे यह संकेत देने की कोशिश की गई कि भारत अमेरिकी चिंताओं को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर रहा.
इसके बावजूद, ऊर्जा सुरक्षा और किफायती आपूर्ति के लिहाज से भारत ने रूस से रिश्ते पूरी तरह खत्म नहीं किए हैं.
नवंबर में चीन के बाद भारत सबसे बड़ा खरीदार
हेलसिंकी स्थित सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के मुताबिक, नवंबर में भारत ने रूस से करीब 3.3 अरब यूरो का जीवाश्म ईंधन आयात किया. इस मामले में भारत चीन (5.4 अरब यूरो) के बाद दूसरे स्थान पर रहा. अक्टूबर में भारत का आयात 3.1 अरब यूरो था.
नवंबर में कच्चे तेल का आयात बढ़कर 2.6 अरब यूरो हो गया, जबकि कोयले और परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में भी इजाफा दर्ज किया गया.
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