ईरान युद्ध में इजरायल और अमेरिका के खिलाफ कौन देगा शिया देश का साथ, चीन-पाकिस्तान किसकी तरफ?

    इज़राइल और ईरान के बीच तनाव अपने चरम पर है. दोनों देश एक-दूसरे पर मिसाइलों की बरसात कर रहे हैं.

    Who will support Iran against Israel America China Pakistan
    खामेनेई | Photo: X/Khamenei

    इज़राइल और ईरान के बीच तनाव अपने चरम पर है. दोनों देश एक-दूसरे पर मिसाइलों की बरसात कर रहे हैं. इज़राइल को अमेरिका और कई पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त है, लेकिन सवाल ये है कि क्या ईरान इस संघर्ष में अकेला रह जाएगा या उसके पास भी ऐसे सहयोगी हैं जो युद्ध में उसके साथ उतर सकते हैं?

    अमेरिका और पश्चिमी देश ईरान के खिलाफ

    जैसे-जैसे इज़राइल ईरान पर हमले तेज करता जा रहा है, वैसे-वैसे अमेरिकी नेतृत्व और पश्चिमी देश भी ईरान के खिलाफ अपना रुख और सख्त करते जा रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो यहां तक दावा कर दिया कि वे ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को "आसानी से निशाना" बना सकते हैं. उन्होंने खामेनेई से ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ की भी मांग की है. जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी ईरान से उसके परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म करने की मांग कर रहे हैं.

    क्या वाकई अकेला है ईरान?

    ईरान भले ही सीधे युद्ध में अकेला दिखे, लेकिन वर्षों से उसने पश्चिम एशिया में एक मजबूत प्रतिरोध नेटवर्क खड़ा किया है. यह नेटवर्क ऐसे अर्धसैनिक संगठनों से बना है जो विभिन्न देशों में फैले हुए हैं और किसी भी बड़े टकराव में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं.

    इस नेटवर्क में शामिल हैं:

    • लेबनान में हिज़्बुल्ला
    • इराक में पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेज़ (PMF)
    • यमन में हूती विद्रोही
    • गाज़ा में हमास

    इसके अलावा, ईरान सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का भी समर्थक रहा है, हालांकि अब वहां उसकी पकड़ पहले जैसी नहीं रही.

    क्या यह प्रतिरोध कमजोर हो चुका है?

    पिछले कुछ वर्षों में इज़राइल ने इन समूहों को भारी नुकसान पहुंचाया है. लेबनान में हिज़्बुल्ला के ठिकानों को बार-बार निशाना बनाया गया, उसके हथियार भंडार तबाह कर दिए गए, और सबसे बड़ा झटका उसे तब लगा जब उसके प्रभावशाली नेता हसन नसरल्लाह मारे गए.

    सीरिया में असद सरकार के पतन के बाद ईरान समर्थित मिलिशिया भी कमजोर हुई है, लेकिन इराक और यमन में ईरान का प्रभाव अब भी मजबूत बना हुआ है. इराक में PMF के पास लगभग 2 लाख लड़ाके हैं और हूतियों के पास भी इतने ही सशस्त्र सदस्य मौजूद हैं.

    अगर जंग अस्तित्व की हो गई तो...?

    अगर ईरान पर अस्तित्व का संकट आ गया, तो धार्मिक और वैचारिक एकजुटता के चलते ये संगठन पूरे दम से उसके साथ उतर सकते हैं. PMF पहले ही इराक में मौजूद 2,500 अमेरिकी सैनिकों को निशाना बनाने की धमकी दे चुका है.

    पाकिस्तान और चीन का संभावित रोल

    ईरान ने हाल के दिनों में पाकिस्तान के साथ नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की है. पाकिस्तान ने सार्वजनिक रूप से ईरान के प्रति समर्थन जताया है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ईरानी राष्ट्रपति को 'अटूट एकजुटता' का आश्वासन दिया है, जबकि पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने कहा है कि "इज़राइल को पाकिस्तान से मुकाबला करने से पहले कई बार सोचना पड़ेगा."

    हालांकि पाकिस्तान अभी कूटनीतिक समाधान के पक्ष में है और उसने मुस्लिम देशों और अपने रणनीतिक सहयोगी चीन से क्षेत्र में तनाव कम कराने की अपील की है.

    क्या मुस्लिम देश खुलकर साथ आएंगे?

    ईरान ने हाल के वर्षों में सऊदी अरब और मिस्र जैसे प्रतिद्वंद्वियों से संबंध सुधारने की कोशिश की है. करीब 24 मुस्लिम बहुल देशों ने इज़राइल की कार्रवाई की निंदा की है, लेकिन इनमें से कोई भी देश फिलहाल ईरान को खुला सैन्य समर्थन देने को तैयार नहीं दिख रहा.

    रूस और चीन का स्टैंड

    ईरान के दो प्रमुख वैश्विक सहयोगी रूस और चीन ने इज़राइल के हमलों की आलोचना की है और पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ईरान को बचाने में भूमिका निभाई है. हालांकि, अब तक कोई भी देश ईरान को प्रत्यक्ष सैन्य सहायता देने के लिए मैदान में नहीं उतरा है.

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