नई दिल्ली: अगर दुनिया का तेल बाजार एक शरीर है, तो होर्मुज स्ट्रेट उसकी धड़कन है. फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच स्थित यह संकीर्ण जलमार्ग एक ऐसा चोक पॉइंट है, जिससे होकर हर दिन करोड़ों बैरल तेल गुजरता है. यही वजह है कि जब ईरान इसकी नाकेबंदी की बात करता है, तो वॉशिंगटन से बीजिंग तक टेंशन की लहर दौड़ जाती है.
पिछले कुछ हफ्तों में पश्चिम एशिया की कूटनीति अचानक उबल पड़ी है. 13 जून को इजरायल द्वारा ईरान पर कथित हमले और फिर 22 जून को अमेरिकी बमबारी के बाद ईरान ने जवाबी कार्रवाई के संकेत दिए हैं. ईरानी संसद ने यहां तक कह दिया कि होर्मुज स्ट्रेट को बंद करने का विकल्प खुला है. यदि ऐसा हुआ, तो इसका असर सिर्फ मध्य-पूर्व ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा—भारत, चीन और यूरोप तक इसकी आंच पहुंचेगी.
होर्मुज स्ट्रेट आखिर है क्या?
होर्मुज स्ट्रेट एक बेहद संकरा समुद्री रास्ता है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ता है. इसकी भौगोलिक स्थिति इसे रणनीतिक रूप से दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री रास्तों में से एक बनाती है. इसके उत्तर में ईरान है, और दक्षिण में ओमान और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) स्थित हैं.
इसी रास्ते से खाड़ी देशों का अधिकांश कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस दुनिया के बाजारों तक पहुंचता है. यहां से गुजरने वाले हर टैंकर की निगाह इस बात पर टिकी होती है कि यहां की राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है.
यह रास्ता इतना अहम क्यों है?
ऊर्जा के वैश्विक बाजार में होर्मुज स्ट्रेट की भूमिका निर्णायक है. अमेरिकी एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (EIA) के अनुसार, दुनिया का करीब 20% पेट्रोलियम—दैनिक 1.8 करोड़ से 2 करोड़ बैरल—यहीं से गुजरता है.
ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और UAE जैसे तेल उत्पादक देशों का तेल मुख्यतः इस रास्ते से होकर ही एशिया, यूरोप और अमेरिका तक पहुंचता है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि 2022 में होर्मुज से होकर गुजरने वाले तेल का 82% हिस्सा एशियाई देशों में गया.
इसका मतलब ये कि भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश इस मार्ग पर बुरी तरह निर्भर हैं.
ईरान की धमकी: क्यों और अब क्यों?
जब भी ईरान का अमेरिका और पश्चिमी देशों से तनाव बढ़ता है, तो "होर्मुज स्ट्रेट को बंद करने" की धमकी एक बार फिर चर्चा में आ जाती है. यह कोई नई रणनीति नहीं है, बल्कि दशकों पुराना हथियार है जिसे ईरान संकट के समय लहराता रहा है.
हाल ही में अमेरिकी हमलों और इजराइल के साथ बिगड़ते रिश्तों के बाद ईरानी संसद ने होर्मुज को बंद करने की अनुमति दे दी है. हालांकि, आखिरी निर्णय देश की सर्वोच्च धार्मिक व राजनीतिक नेतृत्व को लेना है.
ये धमकी एक "स्ट्रैटेजिक डिटरेंस" यानी रणनीतिक प्रतिरोध है—ऐसा कदम जो सामने वाले को नुकसान की आशंका दिखाकर पीछे हटने पर मजबूर करे.
ईरान कैसे होर्मुज को बंद कर सकता है?
1. समुद्री माइन्स बिछाकर
ईरान के पास ऐसी समुद्री माइन्स हैं, जो शिप्स को डिटेक्ट करके फट सकती हैं. इसमें EM-52 जैसे चीनी माइन्स भी शामिल हैं, जो अत्याधुनिक तकनीक से लैस हैं. ईरान इन्हें पनडुब्बियों के ज़रिए स्ट्रेट में बिछा सकता है. रूस निर्मित किलो-क्लास सबमरीन और गदीर-क्लास सबमरीन इस मिशन में अहम भूमिका निभा सकती हैं.
2. कमर्शियल जहाजों पर हमला करके
ईरान की सेना—इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC)—कमर्शियल टैंकरों पर हमले कर सकती है, जैसे 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान हुआ था. यह मिसाइल, ड्रोन्स, फास्ट अटैक बोट्स और साइबर हमलों के जरिए हो सकता है.
हालांकि, यह काम इतना आसान नहीं है. अमेरिका की नौसेना का पांचवां बेड़ा बहरीन में तैनात है. इसके अलावा फ्रांस, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों की नौसेनाएं इस क्षेत्र में गश्त करती रहती हैं.
अगर होर्मुज बंद हुआ, तो असर कितना गहरा होगा?
तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं
अगर आप सोचते हैं कि तेल की कीमतें पहले ही काफी हैं, तो होर्मुज के बंद होते ही वैश्विक बाजार में अचानक 50-100% तक वृद्धि हो सकती है. भारत जैसे देश, जो आयात पर निर्भर हैं, बुरी तरह प्रभावित होंगे.
चीन सबसे बड़ी मुसीबत में होगा
चीन अपनी कुल तेल जरूरतों का 90% हिस्सा होर्मुज के जरिए लाता है. रास्ता बंद हुआ तो चीन को वैकल्पिक, महंगे और जटिल मार्गों का सहारा लेना पड़ेगा.
सऊदी अरब और UAE को झटका लगेगा
दोनों देश अपने आर्थिक मॉडल को तेल निर्यात पर टिका चुके हैं. होर्मुज के जरिए सऊदी अरब प्रतिदिन लगभग 6 मिलियन बैरल तेल का निर्यात करता है. किसी भी बाधा से उनका राजस्व ठप पड़ सकता है.
भारत की भी मुश्किलें बढ़ेंगी
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का 85% हिस्सा आयात करता है. होर्मुज की नाकेबंदी भारत की ईंधन आपूर्ति, ट्रांसपोर्टेशन लागत और महंगाई पर गंभीर असर डालेगी.
ईरान को खुद भी नुकसान होगा
दिलचस्प बात यह है कि होर्मुज बंद करके ईरान खुद अपनी अर्थव्यवस्था को भी खतरे में डालता है. मार्च 2025 तक ईरान ने 67 बिलियन डॉलर का तेल निर्यात किया है, जिसमें से 90% चीन को ही गया है. अगर रास्ता बंद होता है, तो यह व्यापार भी रुक सकता है.
क्या कोई विकल्प मौजूद है?
कुछ खाड़ी देश जैसे सऊदी अरब और UAE ने पाइपलाइन के ज़रिए तेल भेजने की तैयारी की है, ताकि होर्मुज पर निर्भरता घटाई जा सके. लेकिन मौजूदा ढांचे में ये विकल्प सीमित हैं और वैश्विक मांग को पूरा नहीं कर सकते.
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