Repo Rate क्या होता है, जिसे लेकर आज फैसला करेगा RBI, आपकी जेब पर क्या पड़ेगा असर?

    रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) आज अपनी मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक के नतीजे जारी करेगा.

    What is Repo Rate RBI monetary policy meeting
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ FreePik

    Repo Rate: रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) आज अपनी मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक के नतीजे जारी करेगा. आम लोगों, गृह-खरीदारों और कारोबारियों के लिए इस फैसले का सबसे अहम पहलू रहता है- रेपो रेट. यह वही ब्याज दर है, जो सीधा तय करती है कि आपकी होम लोन की EMI बढ़ेगी या घटेगी, ऑटो लोन महंगा होगा या सस्ता, और बैंक आपकी बचत योजनाओं पर कितना रिटर्न देंगे.

    जैसे-जैसे नीति की घोषणा का समय नजदीक आ रहा है, बैंकिंग सेक्टर से लेकर आम उपभोक्ताओं तक सभी की नजरें इस फैसले पर टिकी हैं.

    क्या होता है रेपो रेट और बैंक क्यों लेते हैं कर्ज?

    रेपो रेट वह दर है, जिस पर देश के सभी बैंक रिज़र्व बैंक से अल्पकालिक कर्ज लेते हैं. जब किसी बैंक के पास पर्याप्त नकदी नहीं होती या उन्हें अचानक धन की जरूरत पड़ती है, तो वे सरकारी बॉन्ड गिरवी रखकर RBI से पैसा लेते हैं. इस धन पर RBI जो ब्याज़ लेता है, वही दर रेपो रेट कहलाती है.

    सरल शब्दों में समझें तो, जैसे आम ग्राहक बैंक से लोन लेते हैं, ठीक वैसे ही बैंक RBI से उधार लेते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि बैंक और RBI का यह लेन-देन पूरे वित्तीय सिस्टम की स्थिरता बनाए रखने के लिए किया जाता है.

    RBI रेपो रेट में बदलाव क्यों करता है?

    RBI का सबसे बड़ा दायित्व है- देश में महंगाई और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखना. जब महंगाई तेज होती है और बाजार में अधिक पैसा घूमने लगता है, तो RBI रेपो रेट बढ़ाता है ताकि बैंक महंगे लोन दें और लोग कम खर्च करें. इसका असर मांग पर पड़ता है और धीरे-धीरे महंगाई नियंत्रित होने लगती है.

    इसके उलट, जब अर्थव्यवस्था धीमी होने लगे, कंपनियों में निवेश कम हो जाए या रोजगार के अवसर घटने लगें, तब RBI रेपो रेट कम करके बाजार में नकदी बढ़ाता है. इससे बैंक ग्राहकों को कम ब्याज पर लोन देने लगते हैं, जिससे खर्च बढ़ता है और आर्थिक गतिविधियाँ तेज होती हैं.

    यही वजह है कि रेपो रेट को देश की आर्थिक सेहत का एक प्रमुख संकेतक माना जाता है.

    रेपो रेट में बदलाव का EMI पर कैसा प्रभाव?

    रेपो रेट में हुए परिवर्तन का सबसे सीधा असर फ्लोटिंग रेट वाले लोन पर दिखाई देता है. 2019 के बाद RBI ने बैंकों को निर्देश दिया कि होम लोन, MSME लोन और कुछ अन्य श्रेणियों को बाहरी बेंचमार्क से जोड़ें, जिसमें रेपो रेट सबसे महत्वपूर्ण है.

    जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए पैसा महंगा हो जाता है. नतीजतन, बैंक अपने ग्राहकों के लोन की ब्याज दरें बढ़ा देते हैं. EMI बढ़ जाती है या बैंक लोन की अवधि बढ़ा देते हैं, ताकि मासिक किस्त समान रहे.

    इसके विपरीत, जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंक का उधार सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी कम ब्याज दरें मिलती हैं. इससे EMI घटती है और लोन जल्दी खत्म होता है. कई बार 0.25% की कटौती भी एक औसत होम लोन वाले ग्राहक के लिए हजारों रुपये की सालाना बचत करा देती है.

    किस तरह के लोन पर इसका सबसे ज्यादा असर?

    होम लोन सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, क्योंकि ये लंबे समय के लिए लिए जाते हैं और अधिकतर फ्लोटिंग दर पर होते हैं. यह भी कारण है कि रेपो रेट में छोटी सी बढ़ोतरी या कटौती भी इनकी EMI पर बड़ा असर डाल देती है.

    कार, पर्सनल और अन्य उपभोक्ता लोन भले ही सीधे रेपो रेट से न जुड़े हों, लेकिन बैंकों की समग्र फंडिंग लागत बढ़ने या घटने पर इनकी दरें भी प्रभावित होती हैं. कारोबारियों और छोटे उद्यमियों को दिए जाने वाले MSME लोन भी सामान्यतः फ्लोटिंग रेट पर होते हैं, इसलिए इनमें भी रेपो रेट के फैसले का सीधा असर देखा जाता है.

    क्या रेपो रेट बचत और FD पर भी असर डालता है?

    बहुत कम लोग जानते हैं कि रेपो रेट बदलने से केवल लोन महंगे-सस्ते नहीं होते, बल्कि इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव फिक्स्ड डिपॉजिट और रिकरिंग डिपॉजिट जैसी योजनाओं पर भी पड़ता है.

    जब रेपो रेट बढ़ता है, तो बैंक अक्सर जमाओं पर ब्याज़ दरें भी बढ़ा देते हैं, ताकि उन्हें अधिक धन मिल सके. इससे FDs पर रिटर्न बढ़ने लगते हैं. लेकिन जब रेपो रेट घटता है, तो बैंक अपनी जमा योजनाओं के रेट कम कर देते हैं. ऐसे में निवेशक अक्सर शेयर बाजार और अन्य निवेश विकल्पों की ओर रुख करते हैं.

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