PM Modi Gifts Bhagvad Gita To Putin: भारत और रूस के रिश्तों ने एक बार फिर इतिहास का वह दिलचस्प मोड़ दिखा दिया है, जहां समय खुद कहानी लिखता नजर आता है. कभी रूस में भगवद्गीता को अदालत में कठघरे में खड़ा किया गया था, और आज उसी गीता की प्रतिलिपि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सम्मानपूर्वक भेंट की जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आधिकारिक आवास पर पुतिन का स्वागत करते हुए उन्हें भगवद्गीता का रूसी अनुवाद सौंपा और इसी क्षण ने साल 2011 की वो पुरानी यादें ताज़ा कर दीं, जब रूस में इस पवित्र ग्रंथ को लेकर अभूतपूर्व विवाद खड़ा हो गया था.
साल 2011 में साइबेरिया के टॉम्स्क की अदालत में एक मामला दाखिल हुआ जिसने भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के हिंदू समुदाय को चिंता में डाल दिया था. इस मामले में ‘भगवद्गीता ऐज इट इज’ के रूसी अनुवाद को ‘उग्रवादी साहित्य’ घोषित करने की मांग की गई. अभियोजकों का दावा था कि कुछ हिस्से सामाजिक तनाव बढ़ा सकते हैं, जबकि रूस की फेडरल सिक्योरिटी सर्विस ने भी इस अनुवाद को संदिग्ध माना था. अगर अदालत यह मांग मान लेती, तो यह गीता को हिटलर की कुख्यात पुस्तक ‘Mein Kampf’ जैसी श्रेणी में डाल देता एक कल्पना भी असहज कर देने वाली.
भारत में राजनीतिक भूचाल और दुनिया भर में विरोध की लहर
इस मामले ने भारत में जोरदार प्रतिक्रियाएं पैदा कीं. संसद में शोरगुल, सड़कों पर विरोध प्रदर्शन, और सरकार द्वारा रूस से सीधी बातचीत—हर तरफ गीता के सम्मान की लड़ाई लड़ी गई. उस समय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा तक को इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करना पड़ा. वैश्विक हिंदू संगठनों ने भी दलील दी कि गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि दर्शन और मानव मूल्यों का मार्गदर्शक है. और आखिरकार, 28 दिसंबर 2011 को अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया. अदालत ने साफ कहा कि गीता में कोई उग्रवादी तत्व नहीं हैं. रूस के विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया कि उनकी जांच ‘टिप्पणियों’ पर थी, न कि स्वयं भगवद्गीता पर.
15 साल बाद बदला दृश्य: विवाद का ग्रंथ अब कूटनीति का उपहार
समय बीता, परिस्थितियाँ बदलीं और 2025 में यह कहानी पूरी तरह नई दिशा में आ गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात के दौरान गीता का वही रूसी अनुवाद अब दोस्ती, सम्मान और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक बनकर सामने आया. जिस ग्रंथ को कभी रूस में गलतफहमी के कारण अदालत के समक्ष पेश होना पड़ा था, वही आज दोनों देशों की साझेदारी का दूत बन गया है.

भूली नहीं जा सकने वाली ऐतिहासिक विडंबना
2011 का विवाद यह दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सांस्कृतिक गलतफहमियाँ कैसे बड़े मुद्दे बन सकती हैं. लेकिन 2025 का दृश्य बताता है कि समय के साथ समझ, संबंध और सम्मान किसी भी विवाद को पीछे छोड़ सकते हैं. भारत और रूस ने यह साबित किया है कि दोनों देशों के रिश्तों की नींव इतनी गहरी है कि न तो कानूनी विवाद इसे हिला सकते हैं और न ही राजनीतिक उतार-चढ़ाव. आज गीता का उपहार इस बात का संकेत है कि इतिहास को नकारे बिना, उसे नए अर्थ देकर आगे बढ़ा जा सकता है.
गीता: विवाद से कूटनीति तक की यात्रा
गीता पर प्रतिबंध की मांग से लेकर उसे एक राजनयिक तोहफे के रूप में स्वीकार किए जाने तक की यात्रा सिर्फ 15 साल की है, लेकिन इसका प्रतीकात्मक महत्व उससे कहीं अधिक है. यह अध्याय बताता है कि सांस्कृतिक संवाद और परस्पर सम्मान दुनिया की सबसे बड़ी दूरियों को भी पाट सकते हैं. भारत और रूस के बीच यह नया अध्याय समय की इसी ताकत का प्रमाण है.
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