लॉर्ड्स टेस्ट में 8 बार बदली गईं गेंदें, टेस्ट क्रिकेट में क्या हैं बॉल बदलने के नियम? जानें सबकुछ

    भारत और इंग्लैंड के बीच खेले जा रहे लॉर्ड्स टेस्ट में एक हैरान करने वाला ट्रेंड सामने आया — मैच के दौरान गेंद को बार-बार बदला गया. इससे खिलाड़ियों और दर्शकों दोनों के बीच यह सवाल उठने लगे कि टेस्ट क्रिकेट में आखिर गेंद कितनी बार बदली जा सकती है, और किन स्थितियों में?

    What are the rules for changing the ball in Test cricket
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    नई दिल्ली: भारत और इंग्लैंड के बीच खेले जा रहे लॉर्ड्स टेस्ट में एक हैरान करने वाला ट्रेंड सामने आया — मैच के दौरान गेंद को बार-बार बदला गया. खास बात यह रही कि इंग्लैंड की पहली पारी में अकेले 112.3 ओवर के अंदर ही पांच बार गेंद बदलनी पड़ी. इसके अलावा भारत की पारी में भी दो बार गेंद बदली गई. इससे खिलाड़ियों और दर्शकों दोनों के बीच यह सवाल उठने लगे कि टेस्ट क्रिकेट में आखिर गेंद कितनी बार बदली जा सकती है, और किन स्थितियों में?

    हमने इस विषय पर गहराई से जानकारी ली पूर्व BCCI पैनल अंपायर राजीव रिसोड़कर से, जिन्होंने 200 से अधिक घरेलू मैचों में अंपायरिंग की है और एक टेस्ट में चौथे अंपायर भी रह चुके हैं.

    बॉल बदलने के नियम: कब और क्यों?

    1. किन परिस्थितियों में बदली जा सकती है गेंद?

    टेस्ट क्रिकेट में गेंद बदलना बेहद नियंत्रित प्रक्रिया है और इसे सिर्फ चार प्रमुख कारणों से बदला जा सकता है:

    • गेंद खो जाए: अगर कोई शॉट बाउंड्री के पार चला जाए और गेंद मिल न सके.
    • गेंद खराब हो जाए: सीम कट जाना, सिलाई खुलना या लेदर फटना.
    • गेंद का शेप बिगड़ जाए: यानी गेंद गोल न रह जाए (D-shape) हो जाए.
    • बॉल टैम्परिंग: अगर गेंद के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ की जाए.

    टैम्परिंग की स्थिति में, यदि दोषी खिलाड़ी की पहचान हो जाए, तो बल्लेबाज रिप्लेसमेंट बॉल चुनते हैं और विपक्षी टीम को 5 रन पेनल्टी मिलती है.

    2. अंपायर गेंद की जांच कैसे करते हैं?

    मैच के दौरान फील्ड अंपायर नियमित अंतराल पर गेंद की जांच करते रहते हैं – जैसे ओवर के बाद, विकेट गिरने पर या बाउंड्री के बाहर जाने पर.
    इसके लिए 'गेज टेस्ट' किया जाता है जिसमें गेंद को दो माप वाली रिंग्स से गुजारा जाता है:

    • अगर गेंद एक रिंग में अटक जाए और दूसरी में निकल जाए – तब वह खेल के लिए उपयुक्त मानी जाती है.
    • अगर गेंद दोनों रिंग्स में से आसानी से निकल जाए, या एक में भी न जाए – तो वह "फेल" मानी जाती है और बदली जाती है.

    3. 80 ओवर बाद नई गेंद लेने का विकल्प

    हर पारी की शुरुआत नई गेंद से होती है और 80 ओवर के बाद गेंदबाजी टीम के कप्तान को नई गेंद लेने का अधिकार होता है. यह एक रणनीतिक निर्णय होता है और जरूरी नहीं कि 80वें ओवर के ठीक बाद नई गेंद ली जाए.

    4. रिप्लेसमेंट गेंद कहां से आती है?

    गेंदों का भंडार जिसे ‘बॉल लाइब्रेरी’ कहा जाता है, चौथे अंपायर के पास होता है. इसमें:

    • पहले से उपयोग की गई गेंदें (पिछले टेस्ट से)
    • घरेलू क्रिकेट बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराई गई गेंदें
    • जरूरत पड़ने पर टीमों की प्रैक्टिस गेंदें भी मंगाई जा सकती हैं
    • हर गेंद को लाइब्रेरी में रखने से पहले उसकी जांच की जाती है.

    5. क्या पहले जैसी गेंद दोबारा मिलती है?

    नहीं. हूबहू वैसी ही गेंद मिलना लगभग नामुमकिन है. अंपायर यही कोशिश करते हैं कि गेंद की उम्र और कंडीशन पुराने जैसी हो.

    जैसे किसी सूखी पिच पर 30 ओवर पुरानी गेंद, 60 ओवर पुरानी गेंद का विकल्प बन सकती है.

    6. गेंद कौन चुनता है?

    रिप्लेसमेंट बॉल का चुनाव फील्ड अंपायर करते हैं. यह प्रक्रिया गेंदबाज, कप्तान और बल्लेबाजों की मौजूदगी में होती है, लेकिन अंतिम निर्णय अंपायर का होता है.

    7. क्या अंपायर खुद गेंद बदल सकते हैं?

    हां. अगर उन्हें लगे कि गेंद बहुत खराब हो चुकी है या टैम्परिंग की गई है, तो वे खुद पहल करके गेंद बदल सकते हैं. यह रेयर स्थिति होती है और इसमें टीम की सहमति जरूरी नहीं होती.

    8. गेंदबाजी टीम कब बॉल चेंज की मांग कर सकती है?

    गेंद के शेप या स्थिति में गड़बड़ी होने पर गेंदबाज या कप्तान अंपायर से गेंद बदलने की मांग कर सकते हैं. अंपायर गेज टेस्ट करके फैसला करते हैं.

    9. मैच में इस्तेमाल की गई गेंदों का क्या होता है?

    मैच खत्म होने के बाद उपयोग की गई गेंदें अगली सीरीज या घरेलू मैचों में रिप्लेसमेंट बॉल के रूप में उपयोग की जाती हैं.

    10. क्या टीम अपनी पसंद की गेंद का इस्तेमाल करती है?

    जी हां, यह घरेलू क्रिकेट बोर्ड तय करता है कि कौन सी गेंद इस्तेमाल की जाएगी. उदाहरण:

    • भारत: SG बॉल
    • इंग्लैंड/वेस्टइंडीज: ड्यूक
    • ऑस्ट्रेलिया/दक्षिण अफ्रीका/न्यूजीलैंड: कूकाबुरा

    विजिटिंग टीमों को इसमें कोई बदलाव की अनुमति नहीं होती.

    लॉर्ड्स टेस्ट में हुआ क्या?

    लॉर्ड्स टेस्ट में बार-बार बॉल बदली गई क्योंकि गेंदें जल्दी डी-शेप हो रही थीं. यहां तक कि भारत द्वारा ली गई नई गेंद भी 10 ओवर के अंदर फेल हो गई और दूसरी रिप्लेसमेंट बॉल भी महज 8 ओवर चली. इससे टीम इंडिया के कुछ खिलाड़ी, खासकर शुभमन गिल और मोहम्मद सिराज, नाराज दिखे क्योंकि उन्हें रिप्लेसमेंट बॉल से स्विंग नहीं मिल रही थी.

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