आज मनाई जा रही है बैकुंठ चतुर्दशी...जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

    हिंदू धर्म में ऐसे अनेक पर्व हैं जो केवल पूजा का नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और परम सत्य की अनुभूति का प्रतीक होते हैं. इन्हीं में से एक है बैकुंठ चतुर्दशी, जिसे “हरि-हर मिलन” का दिन भी कहा जाता है.

    Vaikunth Chaturdashi 2025 Today Know Shubh Muhurat and Pooja Timing
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    हिंदू धर्म में ऐसे अनेक पर्व हैं जो केवल पूजा का नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और परम सत्य की अनुभूति का प्रतीक होते हैं. इन्हीं में से एक है बैकुंठ चतुर्दशी, जिसे “हरि-हर मिलन” का दिन भी कहा जाता है. यह पर्व उस अद्भुत क्षण की स्मृति है जब भगवान शिव और भगवान विष्णु, दो महाशक्तियों ने एक-दूसरे की उपासना कर ब्रह्मांड को एकता का संदेश दिया था.


    हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को यह पावन पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने स्वयं भगवान विष्णु से बैकुंठ धाम का मार्ग प्राप्त किया था. तभी से यह तिथि “बैकुंठ चतुर्दशी” या “वैकुंठ चौदस” कहलाने लगी. यह दिन न केवल भगवान विष्णु (हरि) की आराधना के लिए शुभ है, बल्कि भगवान शिव (हर) की कृपा प्राप्त करने का भी सर्वोत्तम अवसर है. पुराणों में कहा गया है हरि हराभ्यां समं पूज्यं, चतुर्दश्यां विशेषतः.अर्थात इस दिन हरि और हर, दोनों की समान रूप से पूजा करने से साधक को पापमुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

    तिथि और शुभ मुहूर्त

     

    • इस वर्ष बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व 4 नवंबर (मंगलवार) को मनाया जाएगा. पंचांग गणना के अनुसार,
    • चतुर्दशी तिथि का आरंभ: 3 नवंबर की रात 2:06 बजे
    • चतुर्दशी तिथि का समापन: 4 नवंबर की रात 11:37 बजे
    • पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 5:35 से रात 7:34 बजे तक
    • यही समय भगवान शिव और विष्णु की संयुक्त आराधना का सबसे पवित्र क्षण माना गया है.

    इस दिन के पुण्य कर्म

    बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भक्त प्रातःकाल स्नान करके तन और मन की शुद्धि करते हैं. गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी में डुबकी लगाने का विशेष महत्व है. उपवास रखकर भक्त “हरि-हर” के नामों का जाप करते हैं और दीपदान करते हैं. गंगा तटों, मंदिरों और घरों में सैकड़ों दीपक जलाकर भक्त अपने हृदय के अंधकार को दूर करने का प्रतीकात्मक संकल्प लेते हैं. माना जाता है कि दीपदान करने से आत्मा को पवित्रता और प्रकाश की प्राप्ति होती है.

    बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा-विधि

    • ब्राह्म मुहूर्त में उठें और स्नान कर पीले या लाल वस्त्र धारण करें — ये दोनों रंग ऊर्जा और शुभता के प्रतीक हैं.
    • पूजा स्थल को शुद्ध करें और वहां गंगाजल का छिड़काव करें.
    • एक चौकी पर पीला या लाल वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और शिव की मूर्तियां या चित्र स्थापित करें.
    • घी का दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें.
    • पहले भगवान विष्णु की पूजा करें उन्हें कमल का फूल, तुलसीदल और पीले फल अर्पित करें.
    • तत्पश्चात भगवान शिव की आराधना करें — उन्हें बिल्वपत्र, जल और धतूरा अर्पित करें.
    • दोनों देवों के समक्ष ध्यान लगाकर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “ॐ नमः शिवाय” मंत्रों का जाप करें.
    • पूजन के पश्चात गरीबों को भोजन कराना और दान देना इस दिन के पुण्य कर्मों में सर्वोच्च माना गया है.

    हरि-हर मिलन की कथा

    एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने भगवान शिव की कठोर साधना की और उन्हें प्रसन्न करने के लिए हजार कमल पुष्पों से पूजा का संकल्प लिया. परंतु पूजा के दौरान एक कमल कम पड़ गया. तब भगवान विष्णु ने स्वयं अपनी कमलनयन आंख निकालकर अर्पित कर दी.

    विष्णु जी की इस भक्ति से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रकट होकर कहा कि हे विष्णु, तुम्हारी इस अटूट श्रद्धा के कारण यह तिथि सदा के लिए बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी. जो भी भक्त इस दिन हमारी संयुक्त पूजा करेगा, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी. इस प्रकार यह दिन हरि और हर के एकत्व का प्रतीक बन गया, जो दर्शाता है कि ईश्वर भले ही रूपों में भिन्न हों, लेकिन उनकी साधना का अंतिम लक्ष्य एक ही मोक्ष है.

    आध्यात्मिक संदेश

    बैकुंठ चतुर्दशी हमें यह सिखाती है कि भक्ति में भेदभाव नहीं होना चाहिए. शिव की तरह विष्णु का पूजन और विष्णु की तरह शिव की आराधना करने से भक्त के भीतर का द्वैत समाप्त होता है. यह दिन केवल पूजा का नहीं, बल्कि आत्मा के परम सत्य से जुड़ने का अवसर है.

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