Modi-Putin Meeting: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान भारत और रूस ने चेन्नई-व्लादिवोस्तोक ईस्टर्न कॉरिडोर को लेकर अहम समझौते किए. यह नया समुद्री मार्ग 10,370 किलोमीटर लंबा होगा, जिससे भारतीय माल औसतन केवल 24 दिन में रूस पहुंच सकेगा. वर्तमान में भारत से रूस के सेंट पीटर्सबर्ग तक माल भेजने के लिए जहाजों को लगभग 16,060 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है, जो करीब 40 दिन में पूरी होती है. नए कॉरिडोर से यह दूरी लगभग 5,700 किलोमीटर घट जाएगी, जिससे 16 दिन की समय बचत होगी.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह नया मार्ग भारत-रूस व्यापार के लिए गेमचेंजर साबित होगा. पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मार्ग को जल्द लागू करने पर सहमति जताई, जिससे पारंपरिक समुद्री रूटों में बढ़ते जोखिम और लंबी यात्रा समय की चुनौतियों का समाधान मिलेगा.
100 अरब डॉलर व्यापार का लक्ष्य
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन ने बैठक में भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 100 अरब डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया. वर्तमान में दोनों देशों के बीच व्यापार लगभग 60 अरब डॉलर का है. विशेषज्ञों के अनुसार ईस्टर्न कॉरिडोर चालू होने के बाद तेल, गैस, कोयला, मशीनरी और धातु जैसे महत्वपूर्ण व्यापार क्षेत्रों में तेजी आएगी और सप्लाई चेन अधिक मजबूत होगी.
परंपरागत मार्ग और नई दूरी
वर्तमान में भारत से रूस के पारंपरिक समुद्री मार्ग की लंबाई 16,060 किलोमीटर है और यह रास्ता स्वेज नहर से होकर जाता है. हाल के वैश्विक संघर्ष और यूरोप में युद्ध की वजह से यह मार्ग अब महंगा और जोखिमभरा बन गया है. इसके अलावा इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रेड कॉरिडोर भी मौजूद है, जो मुंबई से ईरान और अजरबैजान होते हुए रूस के वोल्गोग्राद तक जाता है, लंबाई लगभग 7,200 किलोमीटर. यह रूट समय तो बचाता है, लेकिन ईरान से जुड़े भू-राजनीतिक तनाव के कारण जोखिम बना रहता है.
ईस्टर्न कॉरिडोर के चालू होने से भारत के लिए रूस से कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, उर्वरक, धातु और अन्य इंडस्ट्रियल सामग्री की आपूर्ति आसान और सुरक्षित हो जाएगी. वहीं भारत रूस को मशीनरी, इंजीनियरिंग उत्पाद, ऑटो-पार्ट्स, टेक्सटाइल्स और कृषि व समुद्री उत्पाद निर्यात कर सकता है.
पुतिन दौरे पर हुए प्रमुख समझौते
भारत और रूस के बीच यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण समझौते भी किए गए. मैनपावर मोबिलिटी समझौते के तहत दोनों देशों के नागरिक अब अस्थायी रूप से एक-दूसरे के देश में आसानी से काम कर सकेंगे. हेल्थकेयर और मेडिकल एजुकेशन में सहयोग बढ़ाया जाएगा, जिसमें अस्पतालों, डॉक्टरों और तकनीक में साझेदारी शामिल है. इसके अलावा स्टूडेंट एक्सचेंज, प्रशिक्षण कार्यक्रम और जॉइंट रिसर्च परियोजनाओं पर भी काम किया जाएगा.
फूड सेफ्टी के क्षेत्र में भारत और रूस ने गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने का समझौता किया, जिससे दोनों देशों के बीच निर्यात होने वाले खाद्य पदार्थ उच्चतम मानकों पर होंगे. शिपिंग, पोर्ट्स और जहाज निर्माण में भी सहयोग बढ़ाया जाएगा, विशेषकर आर्कटिक क्षेत्र में जॉइंट प्रोजेक्ट्स और बर्फीले रास्तों के लिए विशेष जहाजों के निर्माण पर ध्यान दिया जाएगा.
फर्टिलाइजर सहयोग के अंतर्गत यूरिया, पोटाश और फॉस्फेट की नियमित और समय पर आपूर्ति सुनिश्चित होगी. परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में पोर्टेबल और स्माल मॉड्यूलर रिएक्टर पर जॉइंट रिसर्च और विकास होगा, साथ ही बड़े न्यूक्लियर प्लांट्स के लिए तकनीक और ईंधन आपूर्ति जारी रहेगी.
भारत-रूस साझेदारी का भविष्य
विशेषज्ञों का कहना है कि नया ईस्टर्न कॉरिडोर भारत-रूस व्यापार में गति और स्थिरता दोनों लाएगा. इससे व्यापारिक लागत कम होगी और सप्लाई चेन अधिक कुशल बनेगी. ऊर्जा और इंडस्ट्रियल सेक्टर में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी 2030 तक 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना मजबूत होगी.
यह मार्ग न केवल व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा. वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव और समुद्री सुरक्षा की चुनौतियों के बीच यह कॉरिडोर भारत को सुरक्षित और तेज़ विकल्प प्रदान करता है.
ये भी पढ़ें- अब भारतीय फाइटर जेट उड़ते हुए बदलेंगे रूप! DRDO ने पंख मोड़ने वाली तकनीक का किया ट्रायल, जाने खासियत