रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हालिया दौरे के ठीक एक महीने बाद अब भारत में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की की यात्रा की संभावनाओं पर कयास लगाए जा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि अगर सबकुछ अनुकूल रहा तो जेलेंस्की अगले साल की शुरुआत में भारत आ सकते हैं.
यह दौरा केवल औपचारिक स्वागत तक सीमित नहीं होगा. विशेषज्ञ इसे भारत की रूस-यूक्रेन युद्ध में संतुलित कूटनीति की अहम कोशिश के रूप में देख रहे हैं. इसके जरिए नई दिल्ली यह संदेश देना चाहती है कि वह किसी भी पक्ष के प्रति पूरी तरह झुकाव नहीं रखती, बल्कि संवाद और शांति की दिशा में भूमिका निभा रही है.
जेलेंस्की की यात्रा की तैयारियों में पीछे की रणनीति
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय और यूक्रेनी अधिकारियों के बीच पिछले कुछ हफ्तों से लगातार बातचीत चल रही है. सूत्रों के मुताबिक, पुतिन के दौरे से पहले ही भारत ने जेलेंस्की के कार्यालय से संपर्क साधना शुरू कर दिया था.
भारत की रणनीति स्पष्ट है- दोनों देशों के साथ संपर्क बनाए रखना और क्षेत्रीय शांति के लिए संवाद कायम रखना. इसके तहत दोनों देशों की उच्चस्तरीय बैठकें और संभावित यात्रा की तारीखों पर चर्चा भी चल रही है.
जेलेंस्की के भारत आने की संभावना पर यूक्रेनी राजदूत
यूक्रेन में भारत के राजदूत ओलेकसांडर पोलिशचुक ने अगस्त 2025 में नेशनल फ्लैग डे के अवसर पर कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जेलेंस्की को भारत आने का आमंत्रण दिया है. उन्होंने भरोसा जताया कि दोनों पक्ष उपयुक्त तारीख तय करने की कोशिश कर रहे हैं और जेलेंस्की भारत आ सकते हैं.
यह दौरा पीएम मोदी और जेलेंस्की के बीच बढ़ते द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने का अवसर होगा. 1992 में स्थापित भारत-यूक्रेन राजनयिक संबंधों के बाद यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यूक्रेन यात्रा के बाद का अहम दौर माना जा रहा है.
कौन से कारक तय करेंगे जेलेंस्की की यात्रा का समय
हालांकि यात्रा का समय कई आंतरिक और बाहरी कारकों पर निर्भर करेगा. इनमें शामिल हैं:
सूत्रों का कहना है कि हाल ही में जेलेंस्की सरकार को एक बड़े भ्रष्टाचार कांड के कारण दबाव का सामना करना पड़ा है. उनके करीबी और चीफ ऑफ स्टाफ आंद्रिय यरमाक के इस्तीफे से यह स्थिति और जटिल हो गई है. अब नई दिल्ली यूक्रेन प्रशासन के नए अधिकारियों के साथ बातचीत बढ़ा रही है.
भारत का रुख- किसी पक्ष का खुला समर्थन नहीं
भारत ने शुरू से रूस-यूक्रेन युद्ध पर संतुलित रुख अपनाया है. नई दिल्ली ने लगातार संवाद, शांति और संप्रभुता के सम्मान की बात कही है.
पुतिन के हालिया दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत न्यूट्रल नहीं है, बल्कि शांति के पक्ष में है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी बार-बार कह चुके हैं कि हिंसा का कोई समाधान नहीं है, और कूटनीति ही आगे बढ़ने का मार्ग है.
इस रणनीति के तहत भारत न केवल रूस और यूक्रेन दोनों के साथ संपर्क बनाए रखता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी मध्यस्थ के रूप में अपनी छवि मजबूत करता है.
पीएम मोदी और जेलेंस्की के बीच संवाद
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच कम से कम आठ बार फोन पर बातचीत हुई है. इसके अलावा दोनों नेताओं की चार आमने-सामने बैठकें भी हुई हैं.
हालिया बातचीत अगस्त 2025 के अंत में हुई थी, जब पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में चीन के तियानजिन में थे. इसी दौरे के दौरान पुतिन से भी बैठक हुई थी.
भारत-रूस संबंध और अंतरराष्ट्रीय दबाव
अमेरिका ने रूस के तेल पर 25 प्रतिशत पेनाल्टी टैरिफ लागू किया, जिससे भारत को सितंबर से रूसी कच्चे तेल के आयात में कमी करनी पड़ी.
हालांकि भारत ने इस मामले में संतुलन बनाए रखा और किसी भी टिप्पणी में सीधे युद्ध का जिक्र नहीं किया. पुतिन दौरे के बाद जारी संयुक्त बयान में इसे केवल ‘संकट’ के रूप में संबोधित किया गया.
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