अफगानिस्तान की वीरान पहाड़ियों के बीच बसे बगराम एयरबेस की एक बार फिर वैश्विक राजनीति के केंद्र में वापसी हो गई है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया है कि बगराम एयरबेस को फिर से कब्जे में लेंगे. यह कोई मामूली सैन्य अड्डा नहीं है, बल्कि यह वह रणनीतिक मोहरा है जो न केवल एशिया बल्कि चीन जैसे देशों के लिए भी बड़ी चुनौती बन सकता है.
ट्रंप का ऐलान और उसकी रणनीतिक गहराई
डोनाल्ड ट्रंप ने इस ऐलान को "छोटी सी ब्रेकिंग न्यूज़" कहा, लेकिन इसका असर बहुत गहरा हो सकता है. उनका कहना है कि यह एयरबेस उस जगह से महज एक घंटे की दूरी पर है, जहां चीन अपने परमाणु हथियार बनाता है. यानी यह केवल अफगानिस्तान या तालिबान तक सीमित रणनीति नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध चीन पर दबाव बनाने से है. ट्रंप का यह रुख स्पष्ट करता है कि बगराम एयरबेस को दोबारा हासिल करना अमेरिका की 'चीन रोक नीति' का एक अहम हिस्सा बन सकता है.
बगराम एयरबेस: इतिहास और रणनीतिक स्थिति
बगराम एयरबेस का इतिहास अफगानिस्तान के आधुनिक राजनीतिक उठापटक से जुड़ा हुआ है. इसे 1950 के दशक में सोवियत संघ ने बनवाया था और 1980 के दशक में सोवियत कब्ज़े के दौरान यह उनका प्रमुख सैन्य अड्डा बन गया. इसके बाद 2001 में अमेरिका ने तालिबान सरकार के पतन के बाद इस पर कब्ज़ा कर लिया और इसे अत्याधुनिक रूप में फिर से खड़ा किया.
करीब 77 वर्ग किलोमीटर में फैला यह एयरबेस रनवे, हथियार भंडारण, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, खुफिया निगरानी तंत्र और बंकर जैसी सुविधाओं से लैस है. यह न केवल अफगानिस्तान में अमेरिकी शक्ति का प्रतीक रहा, बल्कि पूरे मध्य और दक्षिण एशिया पर अमेरिकी निगरानी की आंख भी था.
चीन के लिए खतरे की घंटी
बगराम एयरबेस की एक खास बात यह है कि यह चीन की सीमा के बेहद करीब स्थित है. ट्रंप के मुताबिक यह स्थान चीन के उस इलाके से बहुत पास है, जहां वह अपने परमाणु हथियार बनाता है. ऐसे में अमेरिका की दोबारा मौजूदगी बीजिंग के लिए एक रणनीतिक सिरदर्द बन सकती है.
चीन अफगानिस्तान में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और अन्य निवेशों को लेकर पहले से ही सतर्क है. अब यदि अमेरिका बगराम पर लौटता है, तो उसकी जासूसी और सैन्य निगरानी क्षमता चीन के दरवाज़े तक पहुँच जाएगी. इससे बीजिंग की क्षेत्रीय रणनीति बुरी तरह प्रभावित हो सकती है.
भारत के लिए बगराम का दोहरा असर
भारत के लिए बगराम एयरबेस पर अमेरिकी वापसी एक दोधारी तलवार की तरह हो सकती है. एक ओर इससे भारत को रणनीतिक राहत मिल सकती है, क्योंकि चीन पर दबाव और तालिबान-समर्थित आतंकवाद पर नियंत्रण जैसे फायदे स्पष्ट हैं. भारत अफगानिस्तान में कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश कर चुका है, और यदि अमेरिका वहां स्थिरता लाने की दिशा में सक्रिय होता है, तो भारत के हित सुरक्षित रह सकते हैं.
दूसरी ओर, इस कदम से क्षेत्र में फिर से अस्थिरता का माहौल बन सकता है. तालिबान और अमेरिका के बीच संभावित टकराव से भारत की परियोजनाओं को खतरा हो सकता है. पाकिस्तान ऐसे हालात में फायदा उठाने की कोशिश करेगा और भारत पर नए दबाव बनाएगा.
अमेरिका की वापसी क्यों जरूरी समझ रहे ट्रंप?
डोनाल्ड ट्रंप ने पहले भी कहा था कि अफगानिस्तान से अचानक अमेरिका की वापसी एक बड़ी गलती थी. उनका मानना है कि बगराम को छोड़ना न केवल सामरिक भूल थी, बल्कि इससे चीन, तालिबान और ईरान को फायदा हुआ. अब उनका इरादा है कि इस एयरबेस पर फिर से अमेरिकी सैनिक तैनात हों, ताकि अमेरिका दोबारा इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर सके और वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सके.
ये भी पढ़ें- अमेरिका ने भारत को दिया एक और बड़ा झटका, ईरान के चाबहार बंदरगाह पर लगाएगा प्रतिबंध, जानें पूरा मामला