वाशिंगटनः वैश्विक व्यापार जगत के लिए एक सकारात्मक संकेत सामने आया है. अमेरिका और चीन, जो बीते वर्षों में व्यापार युद्ध की तीव्र स्थिति में रहे हैं, अब शुल्कों में ढील देने पर राजी हो गए हैं. दोनों देशों ने आपसी समझ विकसित करते हुए 90 दिनों की शुरुआती अवधि के लिए पहले से लगाए गए पारस्परिक शुल्क और जवाबी शुल्क को वापस लेने का फैसला किया है. हालांकि, इस अवधि में चीन अमेरिकी उत्पादों पर 10% शुल्क लगाएगा जबकि अमेरिका चीनी सामानों पर लगभग 30% कर वसूलेगा.
यह सहमति दोनों देशों के बीच जारी हालिया द्विपक्षीय बातचीत का नतीजा है. सोमवार को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों देशों ने न सिर्फ वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका को स्वीकार किया, बल्कि यह भी माना कि उनका आपसी आर्थिक और व्यापारिक रिश्ता स्थायित्व और पारस्परिक लाभ पर आधारित होना चाहिए.
बातचीत का नया तंत्र बनेगा
दोनों देशों ने भविष्य में व्यापारिक संवाद बनाए रखने के लिए एक नया तंत्र स्थापित करने पर भी सहमति जताई है. इस संवाद प्रणाली के तहत, चीन की ओर से वार्ता का नेतृत्व स्टेट काउंसिल के वाइस प्रीमियर हे लिफेंग करेंगे, जबकि अमेरिका की ओर से ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट और अमेरिका के ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव जैमीसन ग्रीर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे.
बयान में यह भी कहा गया है कि ये वार्ताएं चीन और अमेरिका में बारी-बारी से या किसी तटस्थ देश में हो सकती हैं. आवश्यकता अनुसार कार्य-स्तर की चर्चाएं भी की जाएंगी.
ट्रम्प की ‘टैरिफ रणनीति’ अब भी बरकरार
गौरतलब है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान व्यापार घाटे वाले देशों पर भारी शुल्क लगाए थे. उनका मानना रहा है कि जब तक शुल्क में ‘पारस्परिकता’ नहीं होगी, अमेरिका को व्यापार में नुकसान होता रहेगा. चीन को लेकर ट्रम्प ने पहले ही संकेत दिया था कि यदि आवश्यक हुआ, तो चीनी वस्तुओं पर कर 245% तक भी जा सकते हैं.
चीन की ओर से अमेरिका पर लगाए गए शुल्क पहले ही 125% तक पहुंच चुके थे. हालांकि इस नए समझौते से संकेत मिलते हैं कि ट्रम्प प्रशासन इस संघर्ष को समाप्त कर संतुलन और स्थायित्व की दिशा में बढ़ना चाहता है.
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