Tulsi Vivah 2025: भगवान विष्णु को क्यों करना पड़ा था तुलसी देवी से विवाह? क्या इस पौराणिक कथा को जानते हैं आप?

    Tulsi Vivah 2025: भारतीय संस्कृति में तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भक्ति, निष्ठा और प्रेम का आध्यात्मिक उत्सव है. यह पर्व उस दिव्य मिलन की याद दिलाता है, जिसमें एक पतिव्रता स्त्री की भक्ति ने स्वयं भगवान विष्णु को भी बांध लिया था.

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    Tulsi Vivah 2025: भारतीय संस्कृति में तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भक्ति, निष्ठा और प्रेम का आध्यात्मिक उत्सव है. यह पर्व उस दिव्य मिलन की याद दिलाता है, जिसमें एक पतिव्रता स्त्री की भक्ति ने स्वयं भगवान विष्णु को भी बांध लिया था. तुलसी विवाह यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति में छल, लोभ या स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती  केवल समर्पण और विश्वास का प्रकाश होता है.


    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी जी पूर्व जन्म में वृंदा नाम की एक महान पतिव्रता स्त्री थीं. उनका विवाह असुरराज जालंधर से हुआ था. वृंदा की भक्ति और तपस्या इतनी प्रबल थी कि उनके पतिव्रत धर्म के प्रभाव से जालंधर को अपराजेय शक्ति प्राप्त हो गई थी. देवता भी उसकी शक्ति के सामने असहाय हो गए थे. देवताओं ने संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की. तब भगवान ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के सामने प्रकट हुए. अपनी पतिव्रता निष्ठा के कारण वृंदा ने उन्हें अपने पति समझ लिया. यही भ्रम उनके तप का भंग बन गया. जब तप की शक्ति क्षीण हुई, उसी क्षण युद्धभूमि में जालंधर का अंत हो गया.

    वृंदा का शाप और दिव्यता में रूपांतरण

    जब वृंदा को यह ज्ञात हुआ कि भगवान विष्णु ने छल से उनके पतिव्रत धर्म को भंग किया है, तो वे वेदना और आक्रोश से भर उठीं. उन्होंने विष्णु को शाप दिया कि वे भी पत्नी-वियोग का दुख भोगेंगे. कहते हैं, इसी शाप के परिणामस्वरूप भगवान विष्णु को बाद में रामावतार में सीता से वियोग सहना पड़ा. वृंदा ने अपने पति की मृत्यु और विष्णु के छल से व्यथित होकर अपने प्राण त्याग दिए. उनकी पवित्रता और भक्ति से धरती पर एक दिव्य पौधा उत्पन्न हुआ  वही तुलसी का पौधा, जो आज हर हिंदू घर की आस्था का केंद्र है.

    भगवान विष्णु और तुलसी का दिव्य मिलन

    वृंदा के त्याग और भक्ति से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया. उन्होंने कहा कि वृंदा अब तुलसी के रूप में पूजी जाएंगी और तुलसी के बिना उनकी कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होगी. अपने वचन को निभाने के लिए भगवान विष्णु ने शालिग्राम स्वरूप धारण किया और तुलसी के साथ विवाह करने का संकल्प लिया. यही विवाह आज तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है.

    तुलसी विवाह का आध्यात्मिक महत्व

    तुलसी विवाह का पर्व हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी के बाद द्वादशी या पूर्णिमा तक मनाया जाता है. यह दिन केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि जीवन के गहन सत्य का प्रतीक है. तुलसी का पौधा पवित्रता, संयम, और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है, जबकि भगवान विष्णु संरक्षण, कर्तव्य और धर्म के प्रतीक हैं.दोनों का यह मिलन दर्शाता है कि जब भक्ति और कर्तव्य का संगम होता है, तभी सृष्टि में संतुलन और सुख संभव है.

    तुलसी विवाह: आस्था का उत्सव

    तुलसी विवाह के अवसर पर घरों में मंगल गीत, आरती और पारंपरिक वैवाहिक अनुष्ठान किए जाते हैं. तुलसी के पौधे को वधू की तरह सजाया जाता है, वहीं शालिग्राम या भगवान विष्णु को वर के रूप में पूजित किया जाता है. यह विवाह धर्म और प्रेम की पुनर्स्थापना का प्रतीक बन चुका है.कहा जाता है कि जो भक्त पूरे श्रद्धा से इस दिन तुलसी विवाह संपन्न करते हैं, उनके जीवन में सुख, समृद्धि और वैवाहिक स्थिरता आती है.

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