आखिर गणेश जी की पूजा में क्यों नहीं चढ़ाई जाती तुलसी? जानें पौराणिक कथा

    Tulsi Vivah 2025: हिंदू धर्म में हर पवित्र अवसर का अपना महत्व है, और तुलसी विवाह का पर्व भी इन्हीं में शामिल है. इस साल यह त्योहार 2 नवंबर को मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं, जिसे चातुर्मास का अंत माना जाता है.

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    Tulsi Vivah 2025: हिंदू धर्म में हर पवित्र अवसर का अपना महत्व है, और तुलसी विवाह का पर्व भी इन्हीं में शामिल है. इस साल यह त्योहार 2 नवंबर को मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं, जिसे चातुर्मास का अंत माना जाता है. चातुर्मास के बाद ही हिंदू धर्म में कई मांगलिक कामकाज की शुरुआत होती है. तुलसी विवाह इसी क्रम में मनाया जाता है. तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में अत्यंत पूज्यनीय माना जाता है और पूजा-पाठ में इसका विशेष उपयोग होता है. लेकिन, हैरानी की बात यह है कि गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता. इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है.

    कथा के अनुसार, तुलसी माता भगवान गणेश के प्रति प्रेम करती थीं और उनसे विवाह की इच्छा रखती थीं. एक दिन उन्होंने अपने मन की बात सीधे गणेश जी के सामने रखी. माता ने बड़ी विनम्रता से गणेश जी से कहा कि वे उनसे विवाह करना चाहती हैं. लेकिन गणेश जी ने माता के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. यह अस्वीकार माता तुलसी को बहुत दुख और अपमान का अनुभव कराता है.

    तुलसी माता का श्राप

    अपने अपमान और दुख के प्रभाव में क्रोधित होकर तुलसी माता ने गणेश जी को श्राप दे दिया. उन्होंने कहा कि आपकी दो शादियां होंगी. इसी श्राप के प्रभाव से भगवान गणेश का विवाह रिद्धि और सिद्धि नामक दो दिव्य बहनों से हुआ.

    गणेश जी का उत्तर

    तुलसी माता के श्राप से क्रोधित होकर गणेश जी ने भी तुलसी माता को श्राप दिया. उन्होंने कहा कि आपका विवाह एक राक्षस से होगा. इसी कारण माता तुलसी का विवाह असुर जालंधर से हुआ.

    तुलसी माता का परिवर्तन

    अपनी भूल का अहसास होने पर तुलसी माता ने गणेश जी से क्षमा याचना की. गणेश जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा कि कालांतर में आप एक पौधे के रूप में प्रतिष्ठित होंगी, जिसकी पूजा होगी. इसी पौधे का नाम तुलसी रखा गया. साथ ही, गणेश जी ने यह भी कहा कि उनकी पूजा में तुलसी का उपयोग नहीं होगा. यही कारण है कि आज भी गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता. इस कथा से हमें यह संदेश मिलता है कि प्रेम, क्रोध और क्षमा सभी भावनाओं का महत्व है और समय के साथ उनका परिवर्तन भी आवश्यक है.

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