अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक टैरिफ नीति अब उनके ही देश के हथियार सौदों पर असर डालने लगी है. दुनिया के कई देश, जो कभी अमेरिका के F-35 फाइटर जेट खरीदने की कतार में थे, अब या तो विकल्प तलाश रहे हैं या खुलकर इनकार कर रहे हैं. स्पेन, स्विट्जरलैंड और भारत जैसे बड़े बाजार इस सूची में शामिल हैं, जबकि कुछ ही देश इस डील को बरकरार रखे हुए हैं.
स्पेन ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अमेरिकी F-35 के बजाय यूरोपियन जेट्स—यूरोफाइटर टाइफून और फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम (FCAS)—पर भरोसा करेगा. रक्षा मंत्रालय ने एयरबस, BAE सिस्टम्स और लियोनार्डो जैसी यूरोपियन कंपनियों के साथ साझेदारी पर जोर दिया है. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब ट्रंप ने स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज पर नाटो खर्च बढ़ाने का दबाव बनाया और टैरिफ की धमकी दी, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई.
स्विट्जरलैंड में भी विरोध की लहर
स्विट्जरलैंड की नाराज़गी भी टैरिफ से जुड़ी है. ट्रंप प्रशासन ने वहां के कई उद्योगों पर 39% तक का टैरिफ लगाया, जिसके बाद स्थानीय नेताओं ने F-35 डील को रद्द करने की मांग तेज कर दी. सांसद बाल्थासर ग्लाटली ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “जो देश हम पर हमला करेगा, उसे तोहफा क्यों दें?”
भारत का झुकाव घरेलू और रूसी विकल्पों की ओर
भारत, जो पहले से ही रक्षा सौदों में संतुलन की नीति अपनाता रहा है, अब अमेरिकी दबाव से और दूर होता दिख रहा है. रूसी तेल खरीदने को लेकर ट्रंप ने 50% टैरिफ की चेतावनी दी, जिसके बाद भारत ने स्वदेशी तेजस और अन्य विकल्पों पर जोर देना शुरू किया. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका से दूरी बढ़ी, तो भारत रूस के Su-57 जैसे उन्नत लड़ाकू विमानों की ओर कदम बढ़ा सकता है.
कनाडा बना अपवाद
इन सबके बीच, कनाडा ने 88 F-35 जेट खरीदने की अपनी योजना नहीं बदली. वहां का तर्क है कि यह जेट यूरोपियन विकल्पों से सस्ता और अधिक उन्नत है, जिससे देश के रक्षा बजट में बचत होगी. स्पष्ट है कि ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी ने अंतरराष्ट्रीय रक्षा सौदों के समीकरण बदल दिए हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि F-35 का भविष्य वैश्विक बाजार में कैसा रहता है.
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