त्रिशूल स्ट्रैटजी: भारत के चिकन नेक पर चीनी साजिश, तीन तरफ से घेरने की तैयारी; जानिए क्या है प्लान

    चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को समर्थन देकर यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के लिए उसकी मंशा कितनी खतरनाक हो सकती है.

    Trishul Strategy Chinese conspiracy on India Chicken Neck
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को समर्थन देकर यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के लिए उसकी मंशा कितनी खतरनाक हो सकती है. एक तरफ जहां भारत अपनी रणनीतिक स्थितियों को मजबूत करने के प्रयास कर रहा है, वहीं चीन भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी ताकत बढ़ा रहा है. विशेष रूप से भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से जुड़े चिकन नेक कॉरिडोर पर खतरे लगातार बढ़ रहे हैं, जिसे सिलीगुड़ी कॉरिडोर भी कहा जाता है. यह 22 किलोमीटर चौड़ा रास्ता भारत को उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ता है, और यही कारण है कि चीन ने इस क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को तेज कर दिया है.

    हालिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पूर्वी नेपाल, दक्षिणी भूटान और उत्तर-पश्चिम बांग्लादेश में चीन की बढ़ती गतिविधियां इस कॉरिडोर पर तीन तरफ से दबाव बना रही हैं, जिससे भारत की अखंडता पर खतरे की संभावना बढ़ रही है. यह खतरा डोकलाम में मौजूद तनाव से अलग है, जहां 2017 में भारत और चीन के बीच 73 दिनों तक गतिरोध रहा था. हालांकि चीन ने वहां से अपनी सेना को हटाया, लेकिन उसने डोकलाम पठार के 269 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना दावा कायम रखा और वहां सैन्य निर्माण जारी रखा.

    डोकलाम से सिलीगुड़ी तक की रणनीतिक दूरी

    चीन का डोकलाम पठार से दूर स्थित चिकन नेक कॉरिडोर पर नज़र रखना भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है. डोकलाम पठार और चिकन नेक की दूरी केवल 50 किलोमीटर है, और यदि चीन ने इस पठार पर कब्जा किया तो सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा गंभीर खतरे में पड़ सकती है. भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन इस कॉरिडोर पर दबाव बनाने के लिए किसी भी मौके का फायदा उठा सकता है, और इसके लिए भारत को अपनी सैन्य तैयारियों को मजबूत करना होगा.

    रक्षा मामलों के विशेषज्ञ मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अविनाश प्रकाश का कहना है कि जब भारत ने डोकलाम पठार में चीनी सैनिकों का कड़ा प्रतिरोध किया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर किया, तो चीन ने चिकन नेक कॉरिडोर के पास अपनी स्थिति मजबूत करने के अन्य उपायों पर विचार करना शुरू कर दिया. चीन ने अब बांग्लादेश और नेपाल से सहयोग प्राप्त किया है, और भूटान में भी अपनी रणनीतिक उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

    नेपाल और बांग्लादेश में चीन की बढ़ती भूमिका

    नेपाल के झापा जिले में चीन एक बड़ा औद्योगिक पार्क बनाने की योजना बना रहा है. इस पार्क का निर्माण नेपाल-भारत सीमा से महज 55 किलोमीटर की दूरी पर है, जो सीधे सिलीगुड़ी कॉरिडोर से जुड़ा है. चीनी निवेश को लेकर नेपाल सरकार का रुख विवादास्पद हो गया है, क्योंकि यह चीन के प्रभाव को और बढ़ाता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस औद्योगिक पार्क का निर्माण ना केवल निगरानी और लॉजिस्टिक्स के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो सकता है, बल्कि यह पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के लिए सुरक्षित मार्ग भी प्रदान कर सकता है.

    भारत ने नेपाल को अपनी चिंताओं से अवगत कराया है, खासकर इस पार्क में चीनी भागीदारी के संदर्भ में. विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि नेपाल को स्पष्ट रूप से बताया गया है कि भारत के लिए यह पार्क एक सुरक्षा खतरा हो सकता है, क्योंकि चीन यहां अपनी मौजूदगी को मजबूत कर सकता है.

    भूटान और बांग्लादेश: सुरक्षा पर बढ़ते दबाव

    भूटान के जिग्मा खेसर नामग्याल वांगचुक द्वारा शुरू किया गया "गलेफू माइंडफुलनेस सिटी" (GMC) प्रोजेक्ट भारत-भूटान सीमा के पास बन रहा है. हालांकि भूटान और भारत इस प्रोजेक्ट में साझीदार हैं, लेकिन चीन भी इसमें निवेश करने की योजना बना रहा है, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है. भारत ने इस परियोजना में चीन के निवेश को लेकर चिंता जताई है, क्योंकि इससे चीन की रणनीतिक स्थिति को मजबूती मिल सकती है.

    इसके अलावा, बांग्लादेश का लालमोनिरहाट एयरबेस भी भारत के लिए एक चिंता का कारण बन चुका है. यह एयरबेस भारतीय सीमा से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, और यदि चीन को इसमें भूमिका दी जाती है तो यह भारत की पूर्वोत्तर राज्यों से संपर्क व्यवस्था को संकट में डाल सकता है.

    चीन का दबाव और भारत की रणनीतिक चुनौती

    भारत ने डिप्लोमेटिक चैनलों के माध्यम से नेपाल, भूटान और बांग्लादेश को चीन के बढ़ते प्रभाव से अवगत करवाया है, लेकिन इन देशों में बदलते राजनीतिक समीकरण और चीन की आर्थिक पैठ, भारत की चिंताओं को कम नहीं कर पा रही है. विशेषज्ञों के अनुसार, चीन का उद्देश्य भारत के उत्तर-पूर्व को किसी भी कीमत पर खतरे में डालना और उसे घेरना है.

    भारत के पास इस चुनौती का सामना करने के लिए जवाबी रणनीतियाँ और संसाधन हैं, लेकिन तीनों ओर से बनते दबावों का सामना करना आसान नहीं होगा. चिकन नेक कॉरिडोर पर चीन का बढ़ता दबाव भारत के लिए एक गंभीर रणनीतिक चुनौती बन चुका है, और इसके समाधान के लिए भारत को अपनी सैन्य तैयारियों, निगरानी और रणनीतिक निवेश को कई गुना बढ़ाना होगा. आने वाले वर्षों में यह "त्रिशूल नीति" भारत की जियो-पॉलिटिकल प्राथमिकताओं को फिर से परिभाषित कर सकती है.

    ये भी पढ़ेंः मोदी-मोदी, जय हिंद और भारत माता की जय के नारे से गूंज उठा अर्जेंटीना, पीएम मोदी का भव्य स्वागत