नई दिल्ली: वैश्विक व्यापार नीति में बड़े बदलावों के कारण दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच शक्ति संतुलन धीरे-धीरे खिसकता नजर आ रहा है. अमेरिका द्वारा लगाए गए कड़े आयात शुल्क (टैरिफ) का असर अब दिखाई देने लगा है, और इसका पहला बड़ा झटका यूरोप की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था मानी जाने वाली जर्मनी को लगा है.
2025 की दूसरी तिमाही में जर्मन अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की गई है, जिससे यह देश अब लगातार तीसरे वर्ष मंदी की ओर बढ़ रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति भारत के लिए अवसर का दरवाज़ा खोल सकती है. अगर मौजूदा आर्थिक रुझान बरकरार रहते हैं, तो भारत आने वाले कुछ वर्षों में जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है.
अमेरिका के टैरिफ का जर्मनी पर प्रभाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा फिर से व्हाइट हाउस में लौटने के बाद, उनकी "अमेरिका फर्स्ट" नीति ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. हाल ही में उन्होंने अमेरिका में आयात होने वाले सभी उत्पादों पर औसतन 10% का आयात शुल्क लागू कर दिया.
यह नीति अमेरिका के व्यापारिक भागीदारों पर दबाव डालने के उद्देश्य से बनाई गई है, ताकि घरेलू निर्माण को बढ़ावा मिले. लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव उन देशों पर पड़ा है जो अमेरिका को बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं जैसे कि जर्मनी.
2024 में जर्मनी और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 293 अरब डॉलर तक पहुंच गया था, जिसमें जर्मनी को 72 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष मिला. लेकिन जब ट्रंप सरकार ने अमेरिकी आयात पर शुल्क बढ़ाया, तो जर्मन एक्सपोर्ट इंडस्ट्री को गहरा झटका लगा. जर्मन अर्थव्यवस्था जो पहले ही धीमी गति से चल रही थी, अब और नीचे जाने लगी है.
जर्मनी की लगातार गिरती अर्थव्यवस्था
आंकड़ों के अनुसार, 2025 की अप्रैल-जून तिमाही में जर्मनी की जीडीपी में 0.3% की गिरावट दर्ज की गई है. इससे पहले भी देश दो वर्षों तक नकारात्मक वृद्धि दर्ज कर चुका है. अगर यह गिरावट तीसरे साल भी जारी रहती है, तो यह युद्धकाल के बाद पहली बार होगा जब जर्मन अर्थव्यवस्था लगातार तीन वर्षों तक संकुचित हुई हो.
एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सलाहकार संस्था EY (Ernst & Young) की रिपोर्ट बताती है कि जर्मनी में 2019 से अब तक करीब ढाई लाख नौकरियां खत्म हो चुकी हैं. उद्योगों पर गिरते निवेश, ऊर्जा संकट और व्यापारिक बाधाओं के कारण देश की आर्थिक संरचना लगातार कमजोर होती जा रही है.
इसके कारण जर्मनी को अब यूरोप के लिए "लीडर" से ज्यादा एक "बोझ" के रूप में देखा जाने लगा है, खासकर तब जब यूरोप अन्य वैश्विक चुनौतियों से भी जूझ रहा है.
भारत के लिए उभरता हुआ अवसर
दूसरी ओर, भारत लगातार दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि भारत 2026-2027 में 6.4% की दर से वृद्धि करेगा, जबकि विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं धीमी गति से बढ़ेंगी या स्थिर रहेंगी.
फोर्ब्स के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में भारत की GDP लगभग 4.19 ट्रिलियन डॉलर है जबकि जर्मनी की GDP 4.74 ट्रिलियन डॉलर के आसपास है. इस अंतर को देखते हुए ऐसा अनुमान है कि यदि भारत की वृद्धि दर इसी तरह बनी रही और जर्मनी की अर्थव्यवस्था संकुचन की स्थिति में रही, तो भारत 2028 तक जर्मनी को पीछे छोड़ सकता है.
EY की रिपोर्ट भी इस अनुमान की पुष्टि करती है और कहती है कि आने वाले तीन वर्षों में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, अमेरिका और चीन के बाद.
व्यापार और निवेश की बदलती धारा
अमेरिका की नई टैरिफ नीति ने न केवल जर्मनी, बल्कि यूरोपीय यूनियन (EU) की व्यापार रणनीति को भी प्रभावित किया है. यूरोपीय देशों ने अमेरिका से इंडस्ट्रियल गुड्स पर टैरिफ हटाने की पेशकश की है, ताकि बदले में अमेरिका यूरोपीय वाहनों पर लगने वाले भारी शुल्कों में छूट दे.
वर्तमान में, अमेरिका EU से आयातित कई उत्पादों पर 15% तक का टैरिफ लगाता है, जिससे यूरोपीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा पर असर पड़ता है.
इस व्यापारिक खिंचाव से भारत को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल सकता है. अमेरिका के लिए एक नई और विश्वसनीय सप्लाई चेन की आवश्यकता बढ़ रही है, और भारत इस खाली जगह को भरने के लिए तैयार है.
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