नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों से चले आ रहे तनावपूर्ण रिश्तों में अब एक नई करवट देखने को मिल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत जल्द चीन का दौरा करने जा रहे हैं, और यह दौरा सिर्फ एक सामान्य कूटनीतिक यात्रा नहीं, बल्कि दोनों देशों के बीच रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने की एक रणनीतिक कोशिश का हिस्सा माना जा रहा है.
प्रधानमंत्री का यह चीन दौरा ऐसे समय पर हो रहा है जब भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्ते कुछ तनावपूर्ण मोड़ पर हैं, वहीं चीन अमेरिका के साथ गहरे व्यापार युद्ध में उलझा हुआ है. ऐसे में चीन और भारत के बीच बढ़ती नजदीकी वैश्विक भू-राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ ला सकती है.
सात साल बाद पीएम मोदी की चीन यात्रा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह चीन दौरा लगभग सात वर्षों के लंबे अंतराल के बाद हो रहा है. पिछली बार दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की मुलाकातें अनौपचारिक या अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के दौरान सीमित स्तर पर हुई थीं. लेकिन 2020 के गलवान संघर्ष के बाद यह पहली बार है जब दोनों देशों के बीच एक संगठित और उच्च स्तरीय वार्ता का माहौल बनता नजर आ रहा है.
यह दौरा शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) समिट के लिए है, लेकिन इसके पीछे जो कूटनीतिक गतिविधियाँ चल रही हैं, वे कहीं अधिक गहरी और रणनीतिक हैं.
मार्च 2025 में शी जिनपिंग ने गुप्त पत्र भेजा
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मार्च 2025 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक गोपनीय पत्र भेजा था. इस पत्र में चीन की उस चिंता को उजागर किया गया था, जो अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव और व्यापार युद्ध के कारण उत्पन्न हुई थी. इस पत्र में स्पष्ट रूप से चीन ने भारत को अपने संभावित रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हुए निकटता बढ़ाने की इच्छा जताई थी.
एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी के अनुसार, यह पत्र महज औपचारिकता नहीं था, बल्कि इसके जरिए चीन ने एक प्रांतीय अधिकारी को भारत-चीन संबंधों की दिशा तय करने की जिम्मेदारी भी दी थी. बाद में यह संदेश प्रधानमंत्री मोदी तक भी पहुंचाया गया.
ट्रंप की व्यापार नीति ने दोनों को करीब लाया
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन पर लगाए गए कड़े टैरिफ और भारत के प्रति भी कुछ अप्रत्याशित रवैये ने एशिया के दो प्रमुख देशों भारत और चीन को एक-दूसरे के करीब आने पर मजबूर कर दिया.
अमेरिका की नीतियों के कारण भारत के लगभग 86 अरब डॉलर के निर्यात पर खतरा मंडराने लगा, जो भारत की जीडीपी का करीब 2 प्रतिशत है. इसके साथ ही मई में भारत-पाक तनाव के दौरान ट्रंप द्वारा मध्यस्थता की पेशकश ने भारत में असंतोष पैदा किया. नतीजतन, दिल्ली ने अपने रणनीतिक विकल्पों पर पुनर्विचार शुरू किया.
इस पृष्ठभूमि में चीन ने भारत को न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक रूप से भी एक अहम साझेदार के रूप में देखना शुरू किया.
रिश्तों को पटरी पर लाने की कोशिश
2020 के गलवान संघर्ष के बाद भारत और चीन के रिश्तों में गहरा अविश्वास पैदा हो गया था. दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर आमने-सामने थीं और बातचीत का दौर लगभग ठप हो चुका था. लेकिन धीरे-धीरे बैक-चैनल कूटनीति के जरिए कुछ संवाद कायम हुए.
2023 के मध्य तक दोनों पक्षों ने सीमा से सैनिकों की आंशिक वापसी पर सहमति जताई, हालांकि कई मुद्दों पर मतभेद कायम रहे. इसी वजह से 2023 के जोहान्सबर्ग BRICS शिखर सम्मेलन में मोदी और शी की मुलाकात रद्द हो गई थी.
हालांकि, फिर 2024 के अंत में रूस के कजान शहर में दोनों नेताओं की मुलाकात संभव हो सकी और इसने द्विपक्षीय संवाद को नया जीवन दिया.
'ड्रैगन और एलिफेंट का टैंगो'- नई परिभाषा
मार्च 2025 में भेजे गए गुप्त पत्र के बाद शी जिनपिंग ने भारत और चीन के रिश्तों को 'ड्रैगन और एलिफेंट का टैंगो' बताया. यह एक प्रतीकात्मक बयान था, जिससे चीन ने संकेत दिया कि एशिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों के बीच सहयोग और संतुलन की आवश्यकता है, न कि टकराव की.
चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस विचार को दोहराया. इससे स्पष्ट संकेत मिला कि बीजिंग अब रिश्तों को सुधारने के प्रति गंभीर है.
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