19 अप्रैल 1939 को ईरान के पवित्र शहर मशहद में एक गरीब लेकिन धार्मिक परिवार में सैयद अली खामेनेई का जन्म हुआ. वे आठ भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थे. उनके पिता, एक मामूली मौलवी थे, जिन्होंने अपने बच्चों को इस्लामी मूल्यों और धार्मिक अनुशासन में बड़ा किया.
चार साल की उम्र में खामेनेई को स्थानीय मकतब में दाखिल किया गया, जहां उन्होंने अरबी, कुरान और इस्लामी शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की. कुछ ही वर्षों में वे धार्मिक तौर पर इतने दक्ष हो गए कि कोम शहर के प्रतिष्ठित मदरसों में भेजे गए, जो उस समय ईरान की इस्लामी शिक्षा का प्रमुख केंद्र था.
पश्चिमी आधुनिकता से टकराव: मॉडलिंग संस्कृति को ललकारा
1950 के दशक में जब शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने ईरान को पश्चिमी रंग-रूप में ढालना शुरू किया, तब देश में मॉडलिंग, फिल्मों और पार्टी संस्कृति ने जोर पकड़ लिया. इस माहौल में पारंपरिक इस्लामी पोशाक में घूमने वाले बच्चे खामेनेई अक्सर उपहास का पात्र बनते थे.
लेकिन खामेनेई के भीतर कुछ और ही पनप रहा था—एक ऐसा विरोध, जो मौन से निकलकर आंदोलन में बदलने वाला था.
1955 में मुहर्रम के दौरान फिल्मों पर से लगी रोक को हटाने का प्रशासनिक आदेश आया. खामेनेई और उनके जैसे सोच रखने वाले लोगों ने इसका विरोध किया. यही घटना उनके राजनीतिक जीवन का पहला मोड़ बनी. धार्मिक आस्था को सार्वजनिक मंच पर व्यक्त करने और शासन के फैसलों को चुनौती देने की उनकी यात्रा यहीं से शुरू हुई.
1960 का दशक: खोमैनी का प्रभाव और राजनीति में प्रवेश
ईरान की धार्मिक और राजनीतिक चेतना को गहराई से प्रभावित करने वाले व्यक्ति थे आयतुल्ला रुहोल्लाह खोमैनी, जिनके विचारों ने युवा खामेनेई को पूरी तरह से मोहित कर लिया. जब खोमैनी ने 1963 में 'व्हाइट रिवॉल्यूशन' के खिलाफ आंदोलन छेड़ा—जो दरअसल पश्चिमीकरण और धर्मनिरपेक्षता की ओर एक कदम था—तब खामेनेई ने भी खुलकर शाह शासन की आलोचना करनी शुरू कर दी.
वे मशहद की मस्जिदों में खुलेआम भाषण देने लगे, और कहा, "शाह की सत्ता इस्लाम के खिलाफ है, और हम इस्लाम की हिफाजत के लिए जान देने को तैयार हैं."
इस वजह से उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया, लेकिन हर गिरफ्तारी के बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई.
1979: इस्लामिक क्रांति और सत्ता की दहलीज पर खामेनेई
1979 में शाह की सत्ता का अंत हुआ और खोमैनी की अगुवाई में ईरान में इस्लामिक क्रांति की घोषणा की गई. इसके साथ ही एक नया युग शुरू हुआ. सत्ता में आते ही खोमैनी ने अपने वफादार साथियों को अहम पदों पर बैठाया—जिसमें खामेनेई भी शामिल थे. उन्हें रिवॉल्यूशनरी काउंसिल का सदस्य बनाया गया, और बाद में उप रक्षामंत्री नियुक्त किया गया.
खामेनेई ने ईरान की सबसे ताकतवर सैन्य संस्था इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के गठन में अहम भूमिका निभाई. यह फोर्स ईरान के भीतर और बाहर धार्मिक, राजनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण से क्रांति की रक्षा करने वाली ताकत बन गई.
1981: जानलेवा हमला और खामेनेई की दृढ़ता
27 जून 1981 को खामेनेई पर अबुजार मस्जिद में एक जानलेवा हमला हुआ. एक टेप रिकॉर्डर में छिपाकर बम रखा गया था, जो उस वक्त फट गया जब वे लोगों से बात कर रहे थे. इस हमले में उनकी दाईं बांह और आवाज की नलियां बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं. उनका दाहिना हाथ हमेशा के लिए बेकार हो गया और सुनने की क्षमता भी आंशिक रूप से चली गई.
इस हादसे के बावजूद उन्होंने सार्वजनिक जीवन से दूरी नहीं बनाई. एक बार उन्होंने कहा, "अगर मेरा दिमाग और मेरी जुबान काम कर रही है, तो मुझे हाथ की जरूरत नहीं."
1981: राष्ट्रपति पद पर नियुक्ति और सत्ता का विस्तार
उसी वर्ष ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अली राजाई और प्रधानमंत्री बहोन एक बम धमाके में मारे गए. ईरान संकट में था और नए नेता की खोज जारी थी. IRP के वरिष्ठ नेता अकबर हाशमी रफसंजानी ने खामेनेई का नाम आगे बढ़ाया और कहा, "वे क्रांति के लिए मर मिटने वाले व्यक्ति हैं." अंततः खामेनेई देश के तीसरे राष्ट्रपति बने और 1981 से 1989 तक इस पद पर रहे.
1989: सुप्रीम लीडर की गद्दी और संविधान में बदलाव
3 जून 1989 को जब आयतुल्ला खोमैनी का निधन हुआ, तो पूरा देश शोक में डूबा था. उनका उत्तराधिकारी तय करने के लिए असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स की बैठक बुलाई गई. दो विकल्प सामने आए—एक नेतृत्व परिषद बने या एक व्यक्ति को पूरी ताकत दी जाए.
वोटिंग हुई और बहुमत ने एकल नेता का समर्थन किया. दो नाम सामने आए—ग्रैंड अयातुल्ला गोलपायगानी और अली खामेनेई. खामेनेई को भारी बहुमत मिला. लेकिन उन्हें सुप्रीम लीडर बनने के लिए एक जरूरी शर्त पूरी करनी थी—वह यह कि वे मरजा यानी सर्वोच्च धार्मिक स्तर पर होने चाहिए.
ईरान के संविधान में इस बाधा को हटाने के लिए संशोधन किया गया. 6 अगस्त 1989 को खामेनेई को आधिकारिक रूप से सुप्रीम लीडर ऑफ ईरान नियुक्त किया गया. इसके साथ ही वे देश के सर्वोच्च धार्मिक, राजनीतिक और सैन्य नेता बन गए.
जान के पीछे क्यों पड़े हैं इजराइल अमेरिका?
ईरान के सर्वोच्च नेता के रूप में खामेनेई ने सिर्फ देश नहीं, बल्कि पूरे मध्य पूर्व में ईरान का प्रभाव बढ़ाया. उन्होंने लेबनान में हिजबुल्लाह, यमन में हूती विद्रोहियों, इराक और सीरिया में शिया मिलिशिया जैसे नेटवर्क खड़े किए—जिसे 'Axis of Resistance' कहा जाता है.
इजराइल और अमेरिका का मानना है कि खामेनेई ही हैं जिन्होंने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को जिंदा रखा, अपने कट्टर इस्लामी विचारों से पूरे क्षेत्र को अस्थिर किया, और इजराइल को 'कैंसर ट्यूमर' कहकर खुलेआम धमकाया.
इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू कई बार कह चुके हैं कि अगर खामेनेई को रास्ते से हटा दिया जाए, तो इस संघर्ष की जड़ ही खत्म हो जाएगी.
खामेनेई के बाद उत्तराधिकारी कौन?
खामेनेई 86 साल के हो चुके हैं. उनकी सेहत को लेकर समय-समय पर चिंताएं सामने आती रही हैं. ईरान की असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स ने एक सीक्रेट मीटिंग में उनके उत्तराधिकारी पर चर्चा भी कर ली है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, खामेनेई ने अपने बेटे मुजतबा खामेनेई को अगला सुप्रीम लीडर बनाने की तैयारी कर ली है.
हालांकि, इस दौड़ में कुछ और नाम भी शामिल हैं: पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी (जिनकी हाल ही में मृत्यु हो गई है), सादिक लारीजानी (पूर्व न्यायपालिका प्रमुख), और हसन रूहानी (मध्यमार्गी राष्ट्रपति).
दूसरी तरफ, यदि खामेनेई की सत्ता कमजोर पड़ती है या परिवर्तन आता है, तो ईरान के पूर्व शाह के बेटे रजा पहलवी सत्ता में वापसी की कोशिश कर सकते हैं. वे इस समय अमेरिका में हैं और खुलकर इजराइल और पश्चिम का समर्थन करते हैं.
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