गर्म पानी से नहाना चाहिए या नहीं? प्रेमानंद महाराज ने दिया इस सवाल का जवाब; जानें क्या कहा

    आज के समय में इंसान का जीवन जितना तेज़ हुआ है, उतना ही वह आराम और सुविधा का गुलाम भी बनता जा रहा है. हर व्यक्ति चाहता है कि उसके जीवन में कोई कठिनाई न हो, हर कार्य सहज और सुखद हो.

    Taking Bath With Hot Water is right or not premanand maharaj explained
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    आज के समय में इंसान का जीवन जितना तेज़ हुआ है, उतना ही वह आराम और सुविधा का गुलाम भी बनता जा रहा है. हर व्यक्ति चाहता है कि उसके जीवन में कोई कठिनाई न हो, हर कार्य सहज और सुखद हो. लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो यही सुविधा की चाह धीरे-धीरे इंसान की भीतरी शक्ति को कमजोर कर देती है. यही बात प्रेमानंद महाराज ने अपने एक प्रवचन में बेहद सरल लेकिन गूढ़ तरीके से समझाई.

    प्रेमानंद महाराज ने कहा कि आज का मनुष्य हर परिस्थिति में आराम तलाशता है. चाहे वो भोजन हो, यात्रा हो या फिर दिनचर्या का कोई छोटा-सा कार्य. लेकिन यह आदत शरीर और मन दोनों को दुर्बल बना देती है. पहले के लोग सादा जीवन जीते थे, साधारण भोजन करते थे और कठोर परिस्थितियों में भी सहज रहते थे. यही वजह थी कि उनमें सहनशक्ति और आत्मबल अधिक था.महाराज ने कहा, “जो व्यक्ति हर कार्य में आराम चाहता है, वह धीरे-धीरे जीवन की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता खो देता है. सुख-सुविधाएं मनुष्य को बाहर से सुसज्जित तो करती हैं, लेकिन भीतर से hollow यानी खोखला बना देती हैं.”

    गर्म पानी से स्नान और शरीर की कमजोरी का संबंध

    एक भक्त ने महाराज से प्रश्न किया  “क्या हमें गर्म पानी से स्नान करना चाहिए?”इस पर प्रेमानंद महाराज ने कहा, “अगर आप हमेशा गर्म पानी से स्नान करेंगे, तो धीरे-धीरे आपके भीतर की शक्ति क्षीण हो जाएगी. गर्म पानी शरीर को क्षणिक आराम देता है, परंतु उससे शरीर की प्राकृतिक ऊर्जा कमजोर पड़ती है. जब इंसान प्रकृति की ठंडक से डरने लगता है, तो उसकी सहनशक्ति और मनोबल दोनों घट जाते हैं. उनका कहना था कि ठंड से बचने की बजाय हमें प्रकृति की परिस्थिति को स्वीकार करना चाहिए. शरीर तभी मजबूत बनता है, जब वह कठिनाइयों का सामना करता है.

    प्रकृति से तालमेल ही शक्ति का स्रोत है

    प्रेमानंद महाराज के अनुसार, मनुष्य को प्रकृति के साथ तालमेल बनाना चाहिए, उससे भागना नहीं चाहिए. जब कोई व्यक्ति ठंडे जल से स्नान करता है, तो वह प्रकृति की ठंडक को सहने का अभ्यास करता है. इससे रक्त संचार बढ़ता है, मन एकाग्र होता है और शरीर में ऊर्जा का प्रवाह तीव्र हो जाता है. उन्होंने कहा, “प्रकृति का सीधा वार सहने की क्षमता ही व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाती है. जो शरीर ठंडे पानी का स्पर्श सह सकता है, वही मनुष्य जीवन की कठिनाइयों का सामना भी दृढ़ता से कर पाता है.”

    ब्रह्मचर्य का गहरा अर्थ — संयम और ऊर्जा का संतुलन

    महाराज ने आगे समझाया कि ठंडे जल से स्नान केवल एक शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि एक मानसिक तपस्या भी है. यह साधना शरीर की संवेदनाओं को नियंत्रित करती है और मन को स्थिर बनाती है. उन्होंने कहा, “ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल यौन संयम नहीं है. इसका अर्थ है अपनी ऊर्जा को व्यर्थ न बहाना, उसे सही दिशा में लगाना. जब शरीर दृढ़ और मन संयमित होता है, तब व्यक्ति का ध्यान सही कार्यों पर केंद्रित रहता है. यह स्थिति तभी आती है जब मनुष्य अपने जीवन में अनुशासन और सादगी को अपनाता है.”

    सादगी और अनुशासन ही आत्मबल की जड़ हैं

    प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन के अंत में कहा कि जो व्यक्ति जीवन में सादगी, संयम और सहनशीलता को महत्व देता है, वही वास्तविक रूप से ब्रह्मचर्य के मार्ग पर अग्रसर होता है. उनके शब्दों में, “ठंडे जल से स्नान केवल शरीर को नहीं, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है. यह उस तपस्या का प्रतीक है जो मनुष्य को भीतर से मजबूत और आत्मविश्वासी बनाती है.” उन्होंने यह भी कहा कि आराम की आदत चाहे कितनी भी सुखद क्यों न लगे, लेकिन वह धीरे-धीरे व्यक्ति की सहनशक्ति और आत्मबल को खा जाती है. जीवन की ऊंचाइयों तक वही पहुंच सकता है जो कठिनाइयों से भागता नहीं, बल्कि उन्हें साधना समझकर स्वीकार करता है.

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