पूर्वी यूरोप में जारी संघर्ष अब एक नए और खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है. यूक्रेन ने हाल ही में रूस के भीतर पांच सैन्य एयरबेसों को ड्रोन हमलों से निशाना बनाकर बड़ी सैन्य उपलब्धि दर्ज की है. इन हमलों में रूस के करीब 41 लड़ाकू विमान तबाह हो गए — जिनकी कीमत अरबों डॉलर में आंकी जा रही है. लेकिन, इस रणनीतिक बढ़त के पीछे अब एक गंभीर खतरा मंडराने लगा है — परमाणु प्रतिकार की आशंका.
सूत्रों के मुताबिक, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस हमले के बाद बड़ी सैन्य प्रतिक्रिया की योजना को हरी झंडी दी है, और इसमें न्यूक्लियर मिसाइलों की तैनाती की भी अटकलें हैं.
रूस की "परमाणु छाया" – सटन-2 और RS-28 सरमत
इसका अपग्रेडेड वर्जन, RS-28 सरमत, 16,000 किमी तक की दूरी तक मार कर सकता है — यानी किसी भी महाद्वीप पर तबाही मचाने में सक्षम. यह दोनों मिसाइलें हाइपरसोनिक गति, एडवांस्ड एवेज़न तकनीक और मल्टी-वारहेड क्षमताओं से लैस हैं — जो इन्हें किसी भी एंटी-मिसाइल डिफेंस को चकमा देने में सक्षम बनाती हैं.
क्या रूस परमाणु जवाबी कार्रवाई करेगा?
यूक्रेन के हमले से न केवल रूस की सैन्य प्रतिष्ठा को झटका लगा है, बल्कि उसके सुरक्षा तंत्र पर भी सवाल खड़े हो गए हैं. अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि रूस की छवि पर लगी इस चोट को पुतिन हल्के में नहीं लेंगे. यही वजह है कि अब परमाणु मिसाइलों की तैनाती या उनके प्रक्षेपण की "मंशा मात्र" भी वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है.
रूस के पास मौजूद अन्य घातक हथियार
परमाणु मिसाइलों के अलावा रूस के पास एक बड़ा और विविध हथियार तंत्र है, जिसमें शामिल हैं:
केवल उपयोग नहीं, बल्कि दबाव की रणनीति
हालांकि, अब तक किसी प्रत्यक्ष परमाणु हमले की संभावना कम ही मानी जा रही है, लेकिन इन हथियारों की मौजूदगी भर ही यूक्रेन और उसके सहयोगी देशों पर दबाव बनाने का बड़ा साधन है. रूस बार-बार यह संदेश दे रहा है कि अगर पश्चिमी समर्थन ने सीमा लांघी, तो उसके पास "हर विकल्प खुला है."
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