क्या डोनाल्ड ट्रंप को मिलना चाहिए 'नोबेल शांति पुरस्कार'? भारत के विदेश मंत्रालय ने दिया इसका जवाब

    हाल ही में अमेरिकी राजनीति के केंद्र में एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप का नाम गूंजने लगा है, लेकिन इस बार वजह कुछ अलग है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग अब वैश्विक मंच पर जोर पकड़ने लगी है.

    Should Donald Trump be awarded the Nobel Peace Prize
    Image Source: ANI

    नई दिल्ली: हाल ही में अमेरिकी राजनीति के केंद्र में एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप का नाम गूंजने लगा है, लेकिन इस बार वजह कुछ अलग है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग अब वैश्विक मंच पर जोर पकड़ने लगी है. कुछ देशों और अमेरिकी प्रशासन के हिस्सों से इस मांग को खुलकर समर्थन भी मिलने लगा है. ऐसे में भारत के रुख को लेकर भी उत्सुकता बनी हुई थी. इसी संदर्भ में भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है.

    क्या पूछा गया था विदेश मंत्रालय से?

    प्रेस वार्ता के दौरान पत्रकारों ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल से पूछा कि क्या भारत डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की बढ़ती मांग पर कोई प्रतिक्रिया देना चाहेगा, खासकर जब यह मांग अमेरिकी व्हाइट हाउस द्वारा खुले तौर पर दोहराई जा रही है.

    रणधीर जायसवाल ने अपने उत्तर में किसी तरह की सीधी प्रतिक्रिया देने से परहेज़ करते हुए एक संतुलित और कूटनीतिक जवाब दिया. उन्होंने कहा, "जहां तक व्हाइट हाउस के बयानों का सवाल है, कृपया आप अपना सवाल उनसे ही पूछें. इसका सटीक जवाब वही दे पाएंगे."

    इस जवाब से स्पष्ट है कि भारत इस समय इस मुद्दे से दूरी बनाकर चलना चाहता है और किसी भी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक या कूटनीतिक विवाद में सीधे कूदने से बच रहा है.

    नोबेल पुरस्कार की मांग क्यों उठ रही है?

    व्हाइट हाउस की वर्तमान प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने हाल ही में दावा किया कि डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान उन्होंने विश्व स्तर पर कई शांति प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. उनका कहना है कि, "राष्ट्रपति ट्रंप ने अनेक अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को खत्म करवाया, और कई युद्धविराम और शांति समझौतों को संभव बनाया. उनकी नेतृत्व क्षमता ने वैश्विक स्थिरता को बढ़ावा दिया है. इस कारण वे नोबेल शांति पुरस्कार के प्रबल दावेदार हैं."

    किन-किन देशों में शांति प्रयासों का दावा?

    व्हाइट हाउस द्वारा जारी जानकारी में कहा गया कि ट्रंप के नेतृत्व में थाईलैंड और कंबोडिया, इजराइल और ईरान, रवांडा और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, भारत और पाकिस्तान, सर्बिया और कोसोवो, तथा मिस्र और इथियोपिया जैसे देशों के बीच संघर्षों में शांति स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है.

    यह भी कहा गया कि ट्रंप ने अपने छह महीने के हालिया नेतृत्व कार्यकाल में औसतन हर महीने एक शांति समझौते में अहम भूमिका निभाई.

    हालांकि इन दावों की पुष्टि स्वतंत्र रूप से करना अभी बाकी है और अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के बीच इस पर मतभेद भी बने हुए हैं. फिर भी, इन दावों ने नोबेल पुरस्कार की चर्चा को नई दिशा जरूर दी है.

    अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी मिलने लगा

    अमेरिका और पाकिस्तान के बाद अब कंबोडिया भी इस अभियान में शामिल हो गया है. कंबोडिया के उप प्रधानमंत्री सन चंथोल ने एक सार्वजनिक बयान में कहा कि ट्रंप ने कंबोडिया और थाईलैंड के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को खत्म करने में निर्णायक भूमिका निभाई.

    उन्होंने कहा, "डोनाल्ड ट्रंप ने एक निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में कंबोडिया-थाईलैंड सीमा संघर्ष को खत्म करने में सहायता की है. इसके लिए वे नोबेल शांति पुरस्कार के पूरी तरह हकदार हैं."

    भारत की कूटनीतिक चुप्पी क्या संकेत देती है?

    भारत की ओर से इस मुद्दे पर दिए गए जवाब से स्पष्ट है कि देश फिलहाल इस संवेदनशील विषय पर सार्वजनिक टिप्पणी करने से बच रहा है. यह रुख भारत की पारंपरिक कूटनीतिक शैली का हिस्सा है, जो किसी भी वैश्विक पुरस्कार या विवादास्पद राजनीतिक मुद्दे पर तटस्थ और संतुलित रहने को प्राथमिकता देता है.

    यह भी संभव है कि भारत किसी भी बयान से बचकर अमेरिका के दोनों राजनीतिक धड़ों (डेमोक्रेट और रिपब्लिकन) के साथ संतुलन बनाए रखना चाहता हो, ताकि भविष्य के रणनीतिक संबंधों में किसी प्रकार की रुकावट न आए.

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