नई दिल्ली: भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बेहद अहम और अब तक सामने न आई बात का खुलासा करते हुए बताया है कि पहलगाम आतंकी हमले के ठीक अगले दिन, भारत की थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों के प्रमुख पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए पूरी तरह से तैयार थे. उन्होंने यह भी कहा कि देश के स्वतंत्रता के बाद के इतिहास में यह पहला मौका था जब तीनों सेना प्रमुखों ने एक सुर में बिना किसी अतिरिक्त संसाधन की मांग के, तत्काल ऑपरेशन के लिए सहमति जताई.
राजनाथ सिंह ने यह बात राजधानी दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के सिविल कर्मचारियों के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने न केवल सेना के अद्वितीय समर्पण की प्रशंसा की, बल्कि इस अवसर पर सिविल-डिफेंस और प्रशासनिक सहयोग की भूमिका को भी युद्ध की सफलता में निर्णायक बताया.
एक असाधारण स्थिति में असाधारण निर्णय
राजनाथ सिंह ने कहा, "22 अप्रैल को जब पहलगाम हमला हुआ, देश स्तब्ध था. लेकिन ठीक अगले ही दिन, यानी 23 अप्रैल को, जब मैंने तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ रणनीतिक बैठक की, मैंने सीधा सवाल किया- क्या आप पाकिस्तान के खिलाफ एक ऑपरेशन के लिए तैयार हैं? और बिना कोई हिचकिचाहट, तीनों ने 'हां' कहा."
उन्होंने बताया कि यह प्रतिक्रिया इस बात का प्रमाण थी कि हमारी सेनाएं न केवल मानसिक रूप से तैयार थीं, बल्कि रणनीतिक और सामरिक दृष्टि से भी पूरी तरह सक्षम थीं.
बिना मांग और शिकायत के, ऑपरेशन की मंजूरी
रक्षा मंत्री ने अपनी बात को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए बताया कि 1971 के युद्ध से पहले जनरल सैम मानेकशॉ ने तैयारियों के लिए 6 महीने का समय मांगा था. कारगिल युद्ध के समय तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक को हथियारों की कमी की बात उठानी पड़ी थी.
उन्होंने कहा, "लेकिन इस बार, न तो कोई संसाधन की मांग हुई, न कोई असंतोष. यह भारत के रक्षा ढांचे की परिपक्वता और आत्मनिर्भरता का प्रमाण है."
सेना के पीछे होता है पूरा राष्ट्र- राजनाथ सिंह
राजनाथ सिंह ने सेना के शौर्य की सराहना करते हुए सिविल डिफेंस कर्मचारियों से कहा, "जब एक सैनिक मोर्चे पर लड़ता है, तो उसके पीछे एक पूरा देश खड़ा होता है. वो अकेला नहीं होता, बल्कि सिस्टम का हर हिस्सा आप जैसे लोग, जो बैक-एंड से काम करते हैं वह सब उसके साथ लड़ते हैं."
उन्होंने कहा कि आज की अस्थिर वैश्विक व्यवस्था में सिविल और मिलिट्री समन्वय की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है. “दुनिया में किस समय क्या हो जाए, ये आज कोई नहीं कह सकता. हममें से किसी ने भी तीन-चार महीने पहले यह कल्पना नहीं की थी कि हम ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसा सैन्य कदम उठाएंगे,” उन्होंने जोड़ा.
ऑपरेशन सिंदूर में मिली सिविल सिस्टम से मदद
रक्षा मंत्री ने बताया कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को सफलतापूर्वक अंजाम देने में सिविल तंत्र की भी अहम भूमिका रही. “विभिन्न विभागों ने अपने कार्य को जिस तत्परता और जिम्मेदारी से निभाया, वही हमारी सामूहिक सफलता की कुंजी रही,” उन्होंने जोर देकर कहा.
राजनाथ सिंह ने यह भी जोड़ा कि "सेना की ताकत सिर्फ हथियारों में नहीं होती, बल्कि उस लॉजिस्टिक सपोर्ट में होती है, जो बैकएंड से उन्हें मिलता है जैसे टाइम पर ट्रांसपोर्ट, सूचनाओं का आदान-प्रदान, आपूर्ति श्रृंखलाएं, और कई अन्य तंत्र जो शांत दिखते हैं पर युद्ध की सफलता में अहम भूमिका निभाते हैं."
हल्के अंदाज़ में कही बड़ी बात
कार्यक्रम के अंत में राजनाथ सिंह ने चुटकी लेते हुए कहा, "शायद ही कोई सरकारी जिम्मेदारी बची हो जो मैंने न निभाई हो- गृह मंत्रालय हो, रक्षा मंत्रालय हो, हर जगह सेवा का अवसर मिला है. बस एक जगह नहीं गया प्रधानमंत्री कार्यालय."
इस हल्के-फुल्के बयान ने माहौल को कुछ देर के लिए हल्का कर दिया, लेकिन उनके भाषण के जरिए साफ हो गया कि भारत की सुरक्षा नीति अब केवल सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक समन्वित राष्ट्र प्रयास बन चुकी है.
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