Russian Crude Oil Import: बीते कुछ वर्षों में वैश्विक राजनीति और ऊर्जा बाजारों में तेज़ हलचल देखने को मिली है. खासतौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बने हालातों में भारत की ऊर्जा रणनीति ने कई देशों का ध्यान खींचा है. भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखी, जिससे ना केवल घरेलू ऊर्जा ज़रूरतों को सस्ता विकल्प मिला, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार को भी राहत मिली. लेकिन यही फैसला अब अमेरिका की नाराज़गी का कारण बन गया है.
ट्रंप की वापसी और टैरिफ का डंडा
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है. यह टैरिफ रूस से तेल खरीदने के विरोध में लगाया गया है और इसे एक तरह की 'पेनाल्टी' माना जा रहा है. पहले से ही भारत पर 25% बेसलाइन टैरिफ था, जिसे अब मिलाकर कुल 50% कर दिया गया है. इसका सीधा असर भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर पड़ सकता है, लेकिन इसके बावजूद भारत ने अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया है.
भारत को मिली 12.6 अरब डॉलर की बचत
एक प्रमुख समाचार संस्था द्वारा व्यापार आंकड़ों का विश्लेषण करने पर सामने आया कि भारत ने रूस से तेल खरीदकर बीते तीन वर्षों में कम से कम 12.6 अरब डॉलर की बचत की है. यह बचत उस अंतर से निकाली गई है जो रूसी कच्चे तेल और अन्य वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं के तेल की कीमतों में था. हालांकि शुरुआत में यह अंतर बहुत अधिक था, लेकिन समय के साथ-साथ रूस द्वारा दिया जा रहा डिस्काउंट घटता गया है. फिर भी, जो बचत हुई है, वह भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है.
तेल पर भारी निर्भरता और कूटनीतिक संतुलन
भारत दुनिया में तेल की खपत के मामले में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है. साथ ही भारत अपनी कुल जरूरत का लगभग 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है. ऐसे में यदि भारत पश्चिमी देशों के दबाव में आकर रूस से तेल खरीदना बंद कर देता, तो तेल आयात का खर्च और भी बढ़ जाता. इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ता.
इसके अलावा, रूस भारत का एक पुराना रणनीतिक सहयोगी रहा है. दोनों देशों के बीच दशकों से रक्षा, ऊर्जा और तकनीकी क्षेत्रों में घनिष्ठ संबंध हैं. ऐसे में भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता नहीं करेगा.
अमेरिका की रणनीति: रूस की आर्थिक रीढ़ तोड़ना
अमेरिका का उद्देश्य स्पष्ट है- वह रूस को आर्थिक रूप से कमजोर कर देना चाहता है ताकि यूक्रेन युद्ध में उसे पीछे हटने पर मजबूर किया जा सके. कच्चे तेल का निर्यात रूस के लिए एक बड़ा राजस्व स्रोत है. चीन के बाद भारत रूस का सबसे बड़ा ग्राहक है. ऐसे में अगर भारत रूसी तेल की खरीद बंद कर दे, तो रूस को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है. अमेरिका इसी रणनीति के तहत भारत पर दबाव बना रहा है.
निर्यात को लगेगा झटका, नुकसान भारी
भारत से अमेरिका को निर्यात पर इस टैरिफ का बुरा असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत का अमेरिकी बाजार में निर्यात 2024-25 के 87 अरब डॉलर से घटकर 2025-26 में लगभग 49.6 अरब डॉलर रह सकता है. यह भारत के निर्यात क्षेत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है.
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