यूक्रेन युद्ध में उलझा रूस, अब पुतिन के अपने पुराने दोस्त ही उनका साथ छोड़ रहे; देखिए पूरी लिस्ट

    राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का मकसद साफ था—पश्चिमी दबाव को रोकना और अपने प्रभाव क्षेत्र को फिर से स्थापित करना. लेकिन आज, तीन साल बाद, तस्वीर कुछ और ही है.

    Russia embroiled in Ukraine war Putin friends abandoning him
    पुतिन | Photo: X

    जब रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला किया था, तो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का मकसद साफ था—पश्चिमी दबाव को रोकना और अपने प्रभाव क्षेत्र को फिर से स्थापित करना. लेकिन आज, तीन साल बाद, तस्वीर कुछ और ही है.

    रूस को इस युद्ध से न केवल आर्थिक और सैन्य रूप से नुकसान हुआ है, बल्कि उसके राजनयिक रिश्तों को भी गहरी चोट पहुंची है. जिन देशों ने सालों तक रूस का साथ निभाया, वे अब एक-एक कर उसका साथ छोड़ते नजर आ रहे हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं, जो दिखाते हैं कि रूस की विदेश नीति और उसका प्रभाव क्षेत्र अब पहले जैसा नहीं रहा.

    सीरिया: कभी पुतिन की सबसे बड़ी विदेश नीति जीत, अब असहाय

    2015 में रूस जब सीरिया की गृहयुद्ध में कूदा, तो उसने बशर अल-असद की डूबती नैया को पार लगाया था. रूसी हवाई हमलों और ईरान की ज़मीनी मदद से असद ने अपने दुश्मनों पर बढ़त बनाई थी. रूस ने इसी दौरान सीरिया में दो बड़े सैन्य अड्डे भी स्थापित कर लिए.

    लेकिन 2024 आते-आते, तस्वीर पलट गई. यूक्रेन युद्ध में फंसे रूस ने जब सीरिया से ध्यान हटाया, तो वहां हयात तहरीर अल-शाम (HTS) और तुर्की समर्थित विद्रोही फिर से उभर आए. असद सरकार टिक नहीं पाई और बशर अल-असद को देश छोड़कर रूस भागना पड़ा. अगर रूस अपने पुराने रुख पर अड़ा रहता, तो शायद असद सत्ता में टिके रहते. लेकिन यूक्रेन में उलझे रहने की कीमत असद को अपनी गद्दी गंवाकर चुकानी पड़ी.

    आर्मेनिया: जो कभी रूस की गोद में था, अब उससे दूरी बना रहा है

    आर्मेनिया लंबे समय से रूस पर अपनी सुरक्षा के लिए निर्भर रहा है, खासकर अज़रबैजान और तुर्की के खतरे को लेकर. लेकिन 2023 में जब अज़रबैजान ने नागोर्नो-करबाख पर हमला किया, तो रूस के शांति सैनिक मूकदर्शक बने रहे.

    इससे आर्मेनिया में रूस के खिलाफ नाराज़गी बढ़ गई. रूस ने न तो हथियारों की डिलीवरी की, न ही सैन्य मदद दी. नतीजा यह हुआ कि आर्मेनिया ने CSTO (Collective Security Treaty Organization) जैसे सैन्य गठबंधन से दूरी बना ली और 1997 की आपसी रक्षा संधि पर भी सवाल उठाए. रूस के इस रवैये ने उसके "सबसे भरोसेमंद सहयोगी" को भी नाराज़ कर दिया.

    स्वीडन और फिनलैंड: डर ने उन्हें तटस्थता से नाटो तक पहुंचाया

    रूस के यूक्रेन पर हमले का एक मकसद था — नाटो का विस्तार रोकना. लेकिन हुआ इसका उल्टा. स्वीडन और फिनलैंड, जो दशकों से तटस्थ थे, उन्होंने अब नाटो का सदस्य बनने का फैसला कर लिया. फ़िनलैंड 2023 में नाटो में शामिल हो गया, और स्वीडन ने 2024 में यह कदम उठाया. इससे रूस और नाटो की सीमाएं और नज़दीक आ गईं, और वही बात हुई जिसका डर रूस को था.

    मध्य एशिया: अब सिर्फ रूस की बपौती नहीं रही

    कभी सोवियत संघ का अभिन्न हिस्सा रहे मध्य एशियाई देश जैसे कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान अब नई दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. चीन की बेल्ट एंड रोड योजना, तुर्की का सांस्कृतिक जुड़ाव और यूरोपीय संघ की बढ़ती रुचि—सबने मिलकर इस क्षेत्र में रूस की पकड़ को ढीला कर दिया है. 2023 में हुए EU-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन ने इस बदलाव की दिशा और रफ्तार को साफ तौर पर दिखा दिया.

    ईरान: रूस की चुप्पी पर सवाल

    ईरान यूक्रेन युद्ध में रूस का एक महत्वपूर्ण सहयोगी रहा है. उसने रूस को ड्रोन से लेकर सैन्य तकनीक तक दी. लेकिन जब 2025 में इज़राइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, तो रूस ने केवल "कूटनीतिक निंदा" तक खुद को सीमित रखा. न कोई मदद, न कोई कड़ा बयान—बस खामोशी. इससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या रूस अब अपने करीबी सहयोगियों की भी रक्षा कर पाने की स्थिति में है?

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