अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को लेकर अब तक पश्चिमी देशों के रुख में स्पष्टता नहीं थी, लेकिन हाल के दिनों में रूस और चीन ने अफगानिस्तान के प्रति अपनी नीति में बदलाव किया है. खासकर रूस ने अफगान तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता देकर अमेरिका को एक तरह से चुनौती दी है. वहीं, चीन भी तालिबान के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है.
चीन का रुख: दोस्ताना कूटनीति का समर्थन
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने हाल ही में एक प्रेस वार्ता में कहा कि चीन अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना कूटनीति को जारी रखेगा. माओ ने यह भी कहा कि चीन अफगानिस्तान में विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग और आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा. उनके मुताबिक, चीन का हमेशा से यह मानना रहा है कि अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बाहर नहीं रखा जाना चाहिए. इसके साथ ही, चीन ने अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार से संवाद को प्रोत्साहित करते हुए, वहां की सरकार को अपने अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सक्रिय रूप से प्रतिक्रिया देने की सलाह दी है.
चीन ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण, विकास और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी मदद करने की इच्छा जताई है. माओ निंग ने यह स्पष्ट किया कि चाहे अफगानिस्तान की परिस्थितियां किसी भी दिशा में जाएं, चीन और अफगानिस्तान के बीच राजनयिक संबंध हमेशा कायम रहेंगे.
रूस की पहल: तालिबान को औपचारिक मान्यता
रूस ने पिछले हफ्ते अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने का ऐलान किया. रूस का यह कदम, अमेरिकी रुख से एकदम विपरीत है, जिसने तालिबान को अभी तक किसी भी प्रकार की आधिकारिक मान्यता नहीं दी है. रूस ने अफगानिस्तान के नवनियुक्त राजदूत गुल हसन हसन से पहचान संबंधी आधिकारिक दस्तावेज प्राप्त कर अफगान तालिबान सरकार को स्वीकार किया है.
रूस के विदेश मंत्रालय ने इसे द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने वाला कदम बताया. रूस का कहना है कि यह कदम दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाएगा. अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इसे एक ऐतिहासिक निर्णय बताया और तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने इस कदम का स्वागत करते हुए इसे अन्य देशों के लिए एक आदर्श बताया.
तालिबान का अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा
2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर फिर से कब्जा जमा लिया था. उसके बाद से अफगानिस्तान में राजनीतिक और सामाजिक माहौल में काफी बदलाव आ चुका है. तालिबान की सत्ता में आने के बाद, पश्चिमी देशों ने तालिबान के प्रति अविश्वास और संकोच का रुख अपनाया. लेकिन रूस और चीन जैसे देशों ने अफगानिस्तान के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है.
अमेरिका की स्थिति: उदासीनता और मूक प्रतिक्रिया
अमेरिका, जो पहले अफगानिस्तान में अपनी सैन्य उपस्थिति के लिए जाना जाता था, अब तालिबान के प्रति किसी भी तरह की रुचि नहीं दिखा रहा है. अफगानिस्तान की नई सरकार के प्रति अमेरिकी सरकार का रुख अभी भी स्पष्ट नहीं है. इससे रूस और चीन की बढ़ती भूमिका अमेरिका के लिए एक चुनौती बन सकती है, क्योंकि वे अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास में शामिल हो रहे हैं.
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