RCP सिंह ने नीतीश कुमार का छोड़ा साथ, PK की पार्टी में हुए शामिल; क्या हो सकता है नुकसान?

    पटना: बिहार की राजनीति में एक नया समीकरण बनता दिख रहा है. लंबे समय से हाशिए पर चल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह एक बार फिर सक्रिय राजनीति में वापसी की तैयारी में हैं.

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    पटना: बिहार की राजनीति में एक नया समीकरण बनता दिख रहा है. लंबे समय से हाशिए पर चल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह एक बार फिर सक्रिय राजनीति में वापसी की तैयारी में हैं. कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे करीबी सहयोगियों में गिने जाने वाले आरसीपी अब प्रशांत किशोर की अगुवाई वाली जन सुराज पार्टी के साथ नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत करने जा रहे हैं.

    'आसा' बनी उम्मीद, लेकिन उम्मीदें टूटीं

    2024 में दीपावली के दिन आरसीपी सिंह ने अपनी नई पार्टी ‘आसा’ (आप सब की आवाज़) की घोषणा की थी. शुरुआत में लगा कि वे राज्य की राजनीति में एक नया मोर्चा खोल सकते हैं, लेकिन कुछ ही महीनों में यह पहल जमीन पर असर नहीं छोड़ सकी. सियासी गलियारों में चर्चा थी कि उनकी यह कोशिश उन्हें फिर से प्रासंगिक बनाने की थी, लेकिन वह कोशिश धूमिल होती नजर आई.

    ऊंचाई से गिरावट तक: एक राजनीतिक ग्राफ

    राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आरसीपी सिंह का सियासी ग्राफ 2010 से 2021 तक लगातार ऊपर चढ़ता गया. आईएएस की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने जदयू में कदम रखा और जल्दी ही नीतीश कुमार के करीबी बन गए. पार्टी में उन्होंने अध्यक्ष पद तक की जिम्मेदारी संभाली और फिर केंद्र में मंत्री भी बने. लेकिन 2021 में कैबिनेट विस्तार के दौरान नीतीश कुमार की मर्जी के बिना मंत्री बनने का आरोप उनके खिलाफ लगा. यहीं से उनके और नीतीश के रिश्तों में दरार आ गई. 2022 में उन्हें राज्यसभा से टिकट न देकर पार्टी ने संकेत दे दिया कि उनकी उपयोगिता खत्म हो चुकी है.

    बीजेपी का दरवाजा खटखटाया, लेकिन…

    नीतीश से दूरी के बाद आरसीपी सिंह ने 2023 में भाजपा का दामन थामा, उम्मीद थी कि 2024 लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट मिल सकता है. लेकिन बीजेपी और नीतीश की सियासी नजदीकियों ने आरसीपी को फिर से दरकिनार कर दिया. उनकी राजनीतिक जमीन और विकल्प दोनों सिमटते चले गए.

    अब जन सुराज के साथ नई शुरुआत

    अब आरसीपी सिंह ने प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज से हाथ मिलाया है. यह गठजोड़ बिहार की राजनीति में एक नई संभावनाओं की जमीन तैयार कर सकता है. खासकर, कुर्मी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए इस गठजोड़ को नीतीश कुमार के लिए चुनौती माना जा रहा है.

    क्या नीतीश को हो सकता है नुकसान?

    राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुर्मी समुदाय में आरसीपी सिंह की पकड़ अब भी प्रभावशाली है. ऐसे में यदि जन सुराज इस समीकरण को भुनाने में सफल रहा, तो बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार को सीधी चुनौती मिल सकती है.

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