बांग्लादेश इन दिनों गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रहा है. एक समय जिन डॉ. मोहम्मद यूनुस को गरीबों की उम्मीद और अंतरराष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक माना जाता था, आज वही जनता के आक्रोश के केंद्र में हैं. उनकी अगुवाई वाली अंतरिम सरकार के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. ढाका की सड़कों पर हाल ही में जो विशाल रैली देखने को मिली, वह केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि जनता के असंतोष का स्पष्ट संकेत है.
हालात अब इतने बिगड़ चुके हैं कि सवाल सिर्फ चुनावों के टालने या कुछ फैसलों का विरोध नहीं है, बल्कि पूरा प्रशासनिक ढांचा और नीतिगत निर्णय संदेह के घेरे में आ गए हैं.
नोबेल से नाराजगी तक का सफर
डॉ. मोहम्मद यूनुस का नाम जब सामने आता है तो अक्सर ‘ग्रामीण बैंक’ और गरीब महिलाओं को सशक्त करने वाली योजनाएं ज़हन में आती हैं. उन्होंने ‘माइक्रो फाइनेंस’ के जरिए बांग्लादेश के ग्रामीण इलाकों में क्रांति लाई थी, जिसके लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला, लेकिन अब हालात बिल्कुल अलग हैं. जनता में उनके प्रति सम्मान की जगह आक्रोश बढ़ रहा है.
लोकतंत्र के नाम पर टलते चुनाव
यूनुस सरकार को संविधान के अनुसार 90 दिनों के भीतर आम चुनाव कराने थे, लेकिन इस प्रक्रिया को जानबूझकर बार-बार टाला जा रहा है. अब चुनाव की नई तारीख जून 2026 बताई जा रही है. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि यह सत्ता में बने रहने की एक सोची-समझी रणनीति है.
ढाका में जनसैलाब
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और अन्य संगठनों ने सरकार के खिलाफ हाल ही में राजधानी में विशाल रैली निकाली, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए. ‘फासीवाद हटाओ’ जैसे नारों के साथ ये रैलियां राजधानी के मुख्य रास्तों को जाम कर कामकाज ठप कर गईं. यह प्रदर्शन सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि जन-सरोकारों से जुड़ा हुआ है.
छात्र संगठनों और जुलाई विद्रोह का समर्थन
जुलाई विद्रोह के नाम से चर्चित छात्र आंदोलनों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. घायल छात्रों के पुनर्वास और आंदोलनकारियों को मान्यता देने की मांग को लेकर ये संगठन अब सरकार को खुली चुनौती दे रहे हैं.
मानवाधिकारों की अनदेखी और गिरफ्तारी की राजनीति
फरवरी 2025 में ‘ऑपरेशन डेविल हंट’ नाम से एक अभियान शुरू किया गया, जिसमें अब तक 11,000 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हो चुके हैं. इसमें विपक्षी नेताओं से लेकर छात्र नेताओं तक को बिना मुकदमा जेल भेजा गया है. मानवाधिकार संगठनों ने इसे लोकतंत्र का गला घोंटने वाली कार्रवाई करार दिया है.
शिक्षक और कर्मचारी भी सड़कों पर
यूनुस सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के तहत कर्मचारियों को बिना सुनवाई के 14 दिनों में बर्खास्त करने का प्रावधान है. इसे लेकर शिक्षक और सरकारी कर्मचारी भी आंदोलित हैं. ढाका में हाल ही में हुए इन प्रदर्शनों में सरकार की सख्त कार्रवाई से जनता का आक्रोश और बढ़ गया.
मुद्रास्फीति और आर्थिक असंतुलन
बांग्लादेश में महंगाई दर 9% से ऊपर बनी हुई है. विदेशी निवेश में 71% की गिरावट दर्ज की गई है. ऊपर से टैक्स सुधारों के नाम पर आम लोगों की जेब पर अतिरिक्त भार डाला गया है. इसका नतीजा यह हुआ कि जीवन यापन अब आम आदमी के लिए और मुश्किल हो गया है.
सत्ता का केंद्रीकरण और लाभ की राजनीति
यूनुस सरकार पर यह आरोप भी लगे हैं कि उन्होंने अपनी संस्थाओं को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी नीतियों में हेरफेर किया है. ग्रामीण यूनिवर्सिटी और ग्रामीण टेलीकॉम को विशेष अधिकार देना, बैंक में सरकारी हिस्सेदारी घटाना—इन सभी कदमों को हितों के टकराव के रूप में देखा जा रहा है.
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद की रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त से दिसंबर 2024 के बीच 2,000 से ज्यादा सांप्रदायिक घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 23 लोगों की जान गई. सरकार इन घटनाओं को रोकने में विफल रही है, जिससे अल्पसंख्यक समुदायों में डर का माहौल है.
पत्रकारिता पर पहरा
यूनुस सरकार के कार्यकाल में प्रेस की स्वतंत्रता को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया गया है. 354 पत्रकारों को परेशान किया गया, 74 पर हिंसा के मामले दर्ज हुए और 167 की प्रेस मान्यता रद्द कर दी गई. इससे सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं.
भारत से बिगड़ते संबंध
यूनुस सरकार ने भारत पर बांग्लादेश को अस्थिर करने का आरोप लगाया, जिसे भारत ने सिरे से नकार दिया. इस बयानबाज़ी से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है. भारत से आने वाला कच्चा माल और खाद्य सामग्री बाधित होने से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था, विशेषकर रेडीमेड गारमेंट सेक्टर, पर नकारात्मक असर पड़ा है.
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