पाकिस्तान पर ड्रैगन मेहरबान, अब बाहुबली फाइटर जेट भी आधे दाम में दे रहा; कंगालिस्तान को इतनी भीख क्यों?

    चीन और पाकिस्तान के बीच हो रही एक बड़ी रक्षा डील फिलहाल बीजिंग के भीतर ही विवाद का कारण बन गई है.

    Pakistan Bahubali fighter jet at half price
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    चीन और पाकिस्तान के बीच हो रही एक बड़ी रक्षा डील फिलहाल बीजिंग के भीतर ही विवाद का कारण बन गई है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन अगस्त 2025 तक पाकिस्तान को अपनी नई पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट्स J-35A भारी छूट पर देने जा रहा है. बताया जा रहा है कि 30 फाइटर जेट्स की यह खेप पाकिस्तान को करीब 50% डिस्काउंट पर मिलेगी, लेकिन चीन की जनता इस सौदे से बेहद नाराज़ नजर आ रही है और सोशल मीडिया पर इसे “भीख में हथियार देना” करार दिया जा रहा है.

    चीन में क्यों उठे विरोध के स्वर?

    J-35A अभी तक चीन की खुद की वायुसेना में ऑपरेशनल नहीं है. यह फाइटर जेट एडवांस सेंसर, स्टील्थ टेक्नोलॉजी और नेटवर्क युद्धक्षमता जैसे फीचर्स से लैस है, लेकिन अभी भी अपने परीक्षण के चरण में है. ऐसे में इसका एक्सपोर्ट, वो भी एक ऐसे देश को जो पहले से चीन को दिए गए हथियारों की पेमेंट नहीं कर पाया है, लोगों को खटक रहा है.

    सोशल मीडिया पर एक यूज़र ने गुस्से में लिखा, "जब J-10 का भी पेमेंट पाकिस्तान से नहीं मिला, तो J-35 कौन सी चमत्कारी बैंक गारंटी पर दिया जा रहा है?" वहीं कई अन्य लोगों ने सवाल उठाया कि जब चीन में खुद J-35 का प्रॉडक्शन पूरी तरह शुरू नहीं हुआ, तो पाकिस्तान को इसे भेजने की इतनी जल्दी क्यों?

    टैक्सपेयर का पैसा या रणनीतिक दांव?

    कई चीनी नागरिकों ने इस डील को “टैक्सपेयर के पैसों की बर्बादी” बताया है. उनका मानना है कि यह फंड चीन की घरेलू समस्याओं—जैसे उद्योग, इंफ्रास्ट्रक्चर और बेरोजगारी—पर खर्च होना चाहिए, न कि एक आर्थिक रूप से जूझते पड़ोसी की रक्षा ज़रूरतों पर.

    वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि यह डील सिर्फ एक व्यापारिक सौदा नहीं, बल्कि एक सामरिक कदम हो सकता है. भारत के साथ बढ़ते तनाव और हाल ही में जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले के संदर्भ में इसे चीन की “पाकिस्तान को सैन्य रूप से बैकअप देने” की नीति के रूप में देखा जा रहा है.

    क्या पाकिस्तान तैयार है इस फाइटर के लिए?

    सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान के पायलट्स को पहले ही चीन में J-35 उड़ाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. हालांकि, अभी तक चीन की सरकार या सरकारी मीडिया ने इस डील की न तो आधिकारिक पुष्टि की है और न ही आलोचनाओं का जवाब दिया है. यही चुप्पी सवालों को और गहरा कर रही है—क्या यह डील सच में रणनीतिक है, या सिर्फ एक पब्लिक रिलेशन स्टंट?

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