जब पूरी दुनिया उपनिवेशवाद की चपेट में थी, बड़े-बड़े देश साम्राज्यवादी ताकतों के सामने घुटने टेक चुके थे, उस समय एक छोटा-सा पहाड़ी देश अपनी संप्रभुता की रक्षा में अडिग खड़ा रहा. हम बात कर रहे हैं नेपाल की भारत का पड़ोसी, जो इतिहास के हर तूफान से अडिग और आज़ाद निकला.
जब गुलामी आम थी, नेपाल आज़ाद था
ब्रिटेन ने भारत समेत दुनिया के 56 देशों पर राज किया. भारत ने करीब 200 साल की गुलामी सही. मगर नेपाल जो भारत के उत्तर में बसा है कभी किसी का गुलाम नहीं बना. ऐसा नहीं कि उस पर हमले नहीं हुए या खतरे नहीं मंडराए, लेकिन हर बार नेपाल ने खुद को बचा लिया.
हिमालय बना नेपाल का प्राकृतिक योद्धा
नेपाल की भौगोलिक स्थिति ही उसकी सबसे बड़ी ताकत रही. हिमालय की दुर्गम घाटियाँ, ऊंचे पहाड़ और संकरे दर्रे विदेशी ताकतों के लिए एक अभेद्य दीवार बन गए. इन रास्तों से पार पाना न तब आसान था और न आज है.
गोरखा योद्धा: बहादुरी की मिसाल
नेपाल की धरती ने ऐसे सैनिक दिए जो हिम्मत, वफादारी और साहस के प्रतीक माने जाते हैं गोरखा. 1349 में बंगाल के मुस्लिम शासक शमसुद्दीन इलियास शाह ने नेपाल पर हमला किया, लेकिन गोरखा सैनिकों ने उन्हें ऐसा जवाब दिया कि वो वापस लौटने पर मजबूर हो गए. "जहां गोरखा होते हैं, वहां दुश्मन हारता ही है," ये सिर्फ कहावत नहीं, इतिहास की सच्चाई है.
ब्रिटिश ताकत भी नेपाल को झुका न सकी
जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को अपनी मुट्ठी में कस लिया था, तब भी नेपाल ने अपने अस्तित्व की रक्षा की. 1814 से 1816 के बीच गोरखा युद्ध हुआ. भले ही अंत में सुगौली संधि के तहत नेपाल को कुछ ज़मीन गंवानी पड़ी, लेकिन नेपाल की स्वतंत्रता कभी नहीं छीनी गई. ब्रिटिश भी जानते थे कि नेपाल को जीतना आसान नहीं, इसलिए उन्होंने मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखे.
कूटनीति और शौर्य का मेल
नेपाल की डिप्लोमेसी उतनी ही मजबूत रही, जितना उसका सैन्य बल. उसने शक्तिशाली देशों से संवाद बनाए रखा, पर आत्मसमर्पण नहीं किया. यही कारण है कि वह आज भी एक स्वतंत्र राष्ट्र है, जिसकी जड़ें इतिहास से सीधी जुड़ी हैं.
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