सोचिए एक ऐसा देश, जहां घरों की दीवारें गोलियों से छलनी हैं, बच्चों की आंखों में स्कूल का सपना नहीं, सिर्फ जिंदा रहने की चिंता है. अस्पताल सिर्फ नाम के रह गए हैं, और लोगों को दवा के बदले दुआओं पर जीना पड़ता है. वही देश है यमन—एक ऐसा भूभाग जो अब एक युद्धभूमि बन चुका है और इसी अराजकता के बीच, एक भारतीय नर्स, निमिषा प्रिया, मौत की सजा का इंतज़ार कर रही हैं.
कौन हैं निमिषा प्रिया?
केरल की रहने वाली एक नर्स, जो 2008 में बेहतर कमाई और भविष्य की तलाश में यमन गई थीं. पहले एक अस्पताल में काम किया, फिर खुद का क्लिनिक शुरू किया. लेकिन वहां काम करने के लिए उन्हें एक यमनी साझेदार की जरूरत थी. इसी दौरान उनकी मुलाकात तलाल एब्दो महदी नाम के शख्स से हुई.
बाद में इसी महदी की हत्या का आरोप निमिषा पर लगा. आरोप ये कि उन्होंने उसे एक बेहोशी का इंजेक्शन दिया ताकि पासपोर्ट लेकर वापस भारत लौट सकें, लेकिन वह इंजेक्शन महदी की जान ले गया. 2017 में गिरफ्तारी हुई, और 2020 में सजा-ए-मौत सुना दी गई. 16 जुलाई 2025 को फांसी होनी थी, लेकिन भारत सरकार की कूटनीतिक कोशिशों से ये फिलहाल टाल दी गई है. लेकिन सवाल ये है: कैसी है वो जेल और कैसा है वो देश, जहां निमिषा बंद हैं?
यमन: जहां हर गली में जंग की गंध है
यमन सिर्फ एक देश नहीं, आज एक ज़िंदा त्रासदी है. ये वो जगह है जहां आधी से ज़्यादा आबादी को रोज़ खाना और दवा नसीब नहीं. 2014 से यमन गृहयुद्ध में घिरा है. एक तरफ है अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार, और दूसरी तरफ है हूती विद्रोही समूह. सरकार को सऊदी अरब जैसे देशों का समर्थन है, जबकि हूतियों को ताकत मिलती है ईरान से.
इस युद्ध ने पूरे देश को दो हिस्सों में बांट दिया है—दक्षिण में सरकार, और उत्तर में हूतियों का कब्ज़ा, जिसमें राजधानी सना भी शामिल है. और यहीं की सेंट्रल जेल में बंद हैं निमिषा प्रिया.
कौन हैं हूती विद्रोही?
हूती कोई अचानक पैदा हुआ संगठन नहीं है. ये एक शिया मुस्लिम मिलिशिया है, जिसकी जड़ें 1990 के दशक से हैं. खुद को 'अंसार अल्लाह' (ईश्वर के साथी) कहने वाले ये लोग शुरू से ही सरकार में भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे हैं.
2014 में जब राष्ट्रपति सालेह को सत्ता से हटाया गया, तो हूतियों ने राजधानी सना पर कब्जा कर लिया. तब से आज तक, उन्होंने एक समानांतर सरकार बना ली है—अपना टैक्स, अपनी मुद्रा, और अब अपनी जेलें भी.
निमिषा जिस जेल में हैं, वो कैसी है?
निमिषा प्रिया जिस सना की जेल में बंद हैं, वो हूतियों के नियंत्रण में है. और रिपोर्ट्स बताती हैं कि वहां मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं. ना पीने का साफ पानी, ना ठीक खाना, और ना ही पर्याप्त मेडिकल सुविधा. किसी बाहरी व्यक्ति से संपर्क तक की इजाज़त नहीं. हूतियों के राज में ये जेल, एक काले अंधेरे की तरह है जहां इंसानी गरिमा रोज दम तोड़ती है.
यमन: इतिहास, खूबसूरती और तबाही का संगम
यह सुनकर आपको हैरानी हो सकती है, लेकिन यमन का अतीत बेहद गौरवशाली रहा है. सना, जहां निमिषा कैद हैं, दुनिया के सबसे पुराने लगातार बसे शहरों में से एक है—करीब 2500 साल पुराना. इसकी पुरानी गलियां, बहुमंज़िला मिट्टी की इमारतें, और यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल स्थापत्य कला आज भी देखने लायक है.
और हां, अगर आपने कभी ‘मोचा’ कॉफी पी है तो जान लीजिए उसका जन्म भी यमन से ही हुआ है—मोचा (Al-Mokha) बंदरगाह शहर से. लेकिन आज का यमन किसी अजायबघर से नहीं, बल्कि एक भूखे-बीमार देश से मिलता है
युद्ध के कारण देश का 90% इंफ्रास्ट्रक्चर या तो तबाह हो चुका है या ठप है. आधे से ज्यादा लोग स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं. स्कूल बंद हैं, अर्थव्यवस्था रसातल में है, और कई जिलों में डॉक्टर तक नहीं बचे. इस माहौल में किसी विदेशी के लिए, खासकर महिला के लिए, जेल में होना ना सिर्फ खतरनाक है बल्कि रोज़ की एक नई यातना है.
क्या अब भी बचाया जा सकता है निमिषा को?
भारत सरकार और कई सामाजिक संगठन कोशिश कर रहे हैं कि 'दिया' बुझने से पहले उसकी लौ को थाम लिया जाए. लेकिन यमन में हर चीज़ सौदेबाज़ी से तय होती है—राजनीति, न्याय और यहां तक कि ज़िंदगी भी. ऐसे में हर गुजरता दिन, निमिषा की ज़िंदगी से एक और उम्मीद छीन लेता है.
ये भी पढ़ेंः आग के दरवाजे पर खड़ा आइसलैंड, Reykjanes Peninsula में एक और ज्वालामुखी फटा; सात महीनों में नौवां विस्फोट