‘नेतृत्व एक होता है, सेवा अनेक करते हैं’, विदेश मंत्री ने किया ‘हनुमान जी’ का जिक्र

    भारत की विदेश नीति, वैश्विक राजनीति और नेतृत्व की भूमिका पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने एक बार फिर बेबाक और व्यावहारिक सोच रखी है. पुणे में आयोजित सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड विश्वविद्यालय) के 22वें दीक्षांत समारोह और पुणे साहित्य महोत्सव के दौरान उन्होंने न सिर्फ छात्रों से संवाद किया.

    Jaishankar in symbiosis international event compare modi to hanuman
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    भारत की विदेश नीति, वैश्विक राजनीति और नेतृत्व की भूमिका पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने एक बार फिर बेबाक और व्यावहारिक सोच रखी है. पुणे में आयोजित सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड विश्वविद्यालय) के 22वें दीक्षांत समारोह और पुणे साहित्य महोत्सव के दौरान उन्होंने न सिर्फ छात्रों से संवाद किया, बल्कि भारत की कूटनीति, नेतृत्व और वैश्विक चुनौतियों को लेकर अपने विचार भी साझा किए. इस दौरान उनसे पूछा गया एक सवाल खासा चर्चा में रहा, जिस पर उनका जवाब भी उतना ही अर्थपूर्ण था.

    दीक्षांत समारोह में जब जयशंकर से पूछा गया कि क्या देश के लिए एक जयशंकर ही काफी हैं, तो उन्होंने इस प्रश्न को ही गलत करार दे दिया. विदेश मंत्री ने मुस्कुराते हुए कहा कि असल सवाल यह होना चाहिए था कि मोदी तो एक ही हैं. उन्होंने साफ किया कि किसी भी देश की पहचान उसके नेतृत्व और दूरदृष्टि से बनती है, जबकि बाकी लोग उस सोच को जमीन पर उतारने का काम करते हैं.

    हनुमान जी और डिप्लोमेसी की तुलना

    अपने जवाब को और गहराई देते हुए जयशंकर ने हनुमान जी का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि अंततः सेवा हनुमान जी ही करते हैं, उसी तरह वे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि के लिए सेवा कर रहे हैं. उनके अनुसार, आज के दौर में नेतृत्व, आत्मविश्वास और स्पष्ट विज़न ही वह तत्व हैं, जो किसी देश को अलग पहचान देते हैं.

    दुनिया भी गठबंधन की राजनीति जैसी

    पुणे साहित्य महोत्सव में विदेश मंत्री ने वैश्विक राजनीति की तुलना भारत के पुराने गठबंधन युग से की. उन्होंने कहा कि आज की दुनिया भी ‘गठबंधन की राजनीति’ जैसी हो गई है, जहां कोई भी शक्ति पूरी तरह बहुमत में नहीं है. अलग-अलग देशों और गुटों के बीच समीकरण लगातार बदलते रहते हैं, सौदे होते हैं और संतुलन बनता-बिगड़ता रहता है. यह एक पूरी तरह बहुध्रुवीय विश्व है, जहां कई साझेदार हैं और कोई भी स्थायी रूप से हावी नहीं है.

    भारत के लिए लचीलापन जरूरी

    जयशंकर ने कहा कि ऐसे अस्थिर वैश्विक माहौल में भारत को बेहद लचीला रुख अपनाना होगा. कभी किसी मुद्दे पर एक देश के साथ खड़ा होना पड़ता है, तो किसी दूसरे मुद्दे पर किसी और के साथ. लेकिन इन सबके बीच उनका एक ही सिद्धांत है — जो भारत के हित में हो, वही फैसला लिया जाना चाहिए.

    विदेश नीति पहले से ज्यादा जटिल

    अपनी किताब के एक अंश का जिक्र करते हुए जयशंकर ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में भारत की विदेश नीति को संभालना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है. अमेरिका के साथ संबंध मजबूत करना, चीन के साथ संतुलन साधना और रूस को आश्वस्त रखना — ये तीनों ही काम अब पहले से ज्यादा पेचीदा हो चुके हैं. यूक्रेन युद्ध और भारत पर मॉस्को से दूरी बनाने के दबाव ने इस संतुलन को और मुश्किल बना दिया है.

    यूरोप, जापान और बदलते समीकरण

    उन्होंने बताया कि जापान के साथ साझेदारी भी अब ज्यादा जटिल हो गई है. जापान अपनी गति से आगे बढ़ता है, जबकि भारत चाहता है कि सहयोग और तेज हो. वहीं यूरोप भारत के लिए एक अहम साझेदार बनकर उभरा है, जिसके साथ और गहरे जुड़ाव की जरूरत है.

    पड़ोसियों के साथ रिश्ते और जिम्मेदारी

    पड़ोसी देशों को लेकर जयशंकर ने कहा कि भारत के आसपास के देश आकार में छोटे हैं और उनकी घरेलू राजनीति अक्सर अस्थिर रहती है. कभी वे भारत की तारीफ करते हैं, तो कभी आलोचना. ऐसे में चुनौती यह है कि इन संबंधों को यथासंभव स्थिर रखा जाए. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि श्रीलंका में चक्रवात आया हो या कोविड महामारी के दौरान टीकों की जरूरत — भारत हमेशा सबसे पहले मदद के लिए आगे आया. यूक्रेन युद्ध के दौरान ईंधन और उर्वरकों की आपूर्ति बाधित होने पर भी भारत ने अपने पड़ोसियों का साथ दिया.

    परिवार के मुखिया जैसा व्यवहार

    विदेश मंत्री ने कहा कि भारत को अपने पड़ोसियों के साथ परिवार के मुखिया की तरह व्यवहार करना चाहिए. भले ही कभी-कभी कोई नाराज हो जाए, लेकिन देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है.

    कब बोलना है और कब चुप रहना है

    प्रश्न-उत्तर सत्र में जब उनसे पूछा गया कि भारत वैश्विक मुद्दों पर कब प्रतिक्रिया देता है, तो उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा कि असल सवाल यह है कि कब चुप रहना है और कब बोलना है. उन्होंने स्पष्ट किया कि आज के बहुध्रुवीय विश्व में अगर आप चुप रहेंगे, तो दुनिया आपको दबा देगी. इसलिए अपनी आवाज उठाना जरूरी है.

    भारतीय प्रतिभा की वैश्विक मांग

    प्रतिभा पलायन के सवाल पर जयशंकर ने कहा कि कई भारतीय युवा कुछ वर्षों के लिए विदेश जाते हैं, लेकिन बाद में लौटकर देश में ही व्यवसाय और स्टार्टअप खड़े करते हैं. उन्होंने बताया कि दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग कंपनियों में बड़ी संख्या में भारतीय काम कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान रूस भारतीय पेशेवरों को वहां काम करने के लिए प्रोत्साहित करने को इच्छुक था. भले ही यूरोप में प्रवासन को लेकर बहस चल रही हो, लेकिन भारतीयों को मेहनती, पारिवारिक और तकनीकी रूप से सक्षम माना जाता है.

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