क्या ईरान पर फिर हमला करेगा अमेरिका-इजराइल? ट्रंप से नेतन्याहू क्यों बोले- ये सही समय है?

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार को एक ऐसे संदर्भ में मुलाकात की, जिसमें वे ईरान पर अपनी हालिया रणनीतिक सफलता को लेकर उत्साहित नजर आए.

    Netanyahu Meet Trump Says this is right time to attack on iran know why
    क्या ईरान पर फिर हमला करेगा अमेरिका-इजराइल?

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार को एक ऐसे संदर्भ में मुलाकात की, जिसमें वे ईरान पर अपनी हालिया रणनीतिक सफलता को लेकर उत्साहित नजर आए. दोनों नेताओं ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर पिछले महीने किए गए हमलों की सराहना की और दावा किया कि उन्होंने एक ऐसे कार्यक्रम को नष्ट कर दिया है, जिसका उद्देश्य परमाणु बम बनाना था. हालांकि, इस बातचीत में ईरान के परमाणु भंडार और उसकी तकनीकी क्षमता के बारे में भी कुछ महत्वपूर्ण पहलू नजरअंदाज हो गए, जो भविष्य में उनके द्वारा फिर से परमाणु हथियार बनाने की संभावनाओं को खुला छोड़ते हैं.

    ट्रंप और नेतन्याहू की सोच में अंतर

    जहां ट्रंप और नेतन्याहू ईरान के खिलाफ एक जैसे लक्ष्यों को साझा करते हैं, वहीं उनकी रणनीतियों में बड़ा अंतर है. ट्रंप का स्पष्ट मानना है कि कूटनीतिक उपायों से ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोका जा सकता है, जबकि नेतन्याहू का दृष्टिकोण अधिक आक्रामक है. वे मानते हैं कि ईरान के खिलाफ सैन्य कार्यवाही ही उसे परमाणु कार्यक्रम से पूरी तरह से रोकने का सही तरीका हो सकता है.

    नेतन्याहू की आक्रामकता

    इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खुले तौर पर यह बताया है कि वह ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के पक्ष में हैं. उनका कहना है कि यह सही समय है, जब ईरान की ताकत को खत्म किया जा सकता है, ताकि वह भविष्य में अपनी परमाणु योजनाओं को फिर से लागू न कर सके. वहीं ट्रंप, जो खुद को वैश्विक शांति के प्रयासों में संलिप्त मानते हैं, फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इजराइल और हमास के बीच एक युद्ध विराम को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, यहां पर समझौते की कोई स्पष्ट रूपरेखा तैयार नहीं है, और इसका परिणाम असमंजसपूर्ण हो सकता है.

    हमास को समाप्त करने की नीति

    नेतन्याहू ने हाल ही में कहा था कि वह हमास को पूरी तरह समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उनका यह भी मानना है कि हमास के नेतृत्व को निर्वासित कर देना चाहिए, हालांकि, हमास ने इस मांग को सीधे तौर पर नकार दिया है. नेतन्याहू चाहते हैं कि किसी भी युद्ध विराम के समझौते में हमास का कोई स्थान न हो, बल्कि उसका पूरी तरह सफाया किया जाए.

    ईरान पर नॉर्वे में होने वाली वार्ता को लेकर नेतन्याहू की नाराजगी

    नेतन्याहू को इस बात से नाखुशी है कि इस सप्ताह अमेरिका, नॉर्वे में ईरान के साथ परमाणु वार्ता फिर से शुरू कर रहा है. उनके लिए यह कदम न केवल निराशाजनक है, बल्कि यह ईरान को एक नई आर्थिक और राजनीतिक जीवनरेखा देने जैसा है. नेतन्याहू ने यह स्पष्ट किया कि वह ईरान के साथ किसी भी प्रकार की कूटनीतिक प्रक्रिया का विरोध करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे ईरान की परमाणु योजनाओं को स्थायी रूप से समाप्त नहीं किया जा सकेगा.

    लीबिया मॉडल की वकालत

    नेतन्याहू ने ईरान के लिए "लीबिया मॉडल" की वकालत की है, जिसका अर्थ है कि ईरान को अपनी परमाणु और मिसाइल सुविधाओं को पूरी तरह नष्ट करना होगा और भविष्य में यूरेनियम संवर्धन को समाप्त करना होगा. उनका उद्देश्य ईरान को एक सख्त निगरानी प्रणाली के तहत लाना है, ताकि वह कभी भी परमाणु हथियारों का उत्पादन न कर सके.

    ट्रंप की कूटनीतिक रणनीति

    वहीं, ट्रंप का रुख थोड़ा अलग है. उनका मानना है कि कूटनीति के जरिए ईरान पर दबाव डाला जा सकता है, और परमाणु वार्ता के माध्यम से ईरान के साथ संबंधों को बहाल करने की कोशिश की जा सकती है. ट्रंप ने सोमवार को यह भी कहा कि भविष्य में वह ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने पर विचार कर सकते हैं, यदि यह उनके कूटनीतिक प्रयासों में मददगार साबित हो.

    ईरान के लिए दबाव की स्थिति

    अब ईरान के सामने दो अप्रिय विकल्प हैं. यदि वह अपनी परमाणु योजनाओं को छोड़ने से इंकार करता है, तो उसे नए हमलों का सामना करना पड़ेगा. यदि वह परमाणु हथियारों की योजना को छोड़ने का फैसला करता है, तो उसे घरेलू स्तर पर अपमान सहना पड़ेगा. ऐसे में ईरान अपनी परमाणु परियोजना को पूरी तरह से छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो सकता, और वह वार्ता को लंबा खींचने की कोशिश कर सकता है, जिससे ट्रंप को एक नई चुनौती मिल सकती है.

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