तुर्की को ले डूबा पाकिस्तान प्रेम, भारत से पंगा लेना पड़ा महंगा, छोटे से एक्शन से चरमरा गई अर्थव्यवस्था

    पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में तेजी से बदलाव देखने को मिले हैं, जहां देशों की कूटनीतिक नीतियां अब केवल सैन्य साझेदारियों तक सीमित नहीं रह गईं, बल्कि इनका सीधा असर अर्थव्यवस्था, पर्यटन और वैश्विक व्यापार पर भी पड़ता है.

    Messing with India proved costly for Turkey economy collapsed
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    नई दिल्ली/अंकारा: पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में तेजी से बदलाव देखने को मिले हैं, जहां देशों की कूटनीतिक नीतियां अब केवल सैन्य साझेदारियों तक सीमित नहीं रह गईं, बल्कि इनका सीधा असर अर्थव्यवस्था, पर्यटन और वैश्विक व्यापार पर भी पड़ता है. इसका ताजा उदाहरण तुर्की है, जिसे भारत से राजनीतिक टकराव मोल लेना अब आर्थिक दृष्टि से भारी पड़ रहा है.

    भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सीमित सैन्य टकराव के दौरान तुर्की द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करना महंगा साबित हो रहा है. भारत ने आधिकारिक रूप से कोई सख्त आर्थिक प्रतिबंध तो नहीं लगाया, लेकिन भारत के नागरिक समाज द्वारा शुरू किए गए बहिष्कार अभियान ने तुर्की के पर्यटन और व्यापार क्षेत्र की रीढ़ तोड़ दी है.

    भारत से तुर्की के बिगड़ते रिश्तों की शुरुआत

    मई 2025 में जब भारत ने नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की आक्रामक गतिविधियों के जवाब में "ऑपरेशन सिंदूर" की शुरुआत की, तो यह स्पष्ट था कि यह केवल एक पारंपरिक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि एक बड़ी रणनीतिक परीक्षा भी थी. इस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को कुछ अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला, जिनमें तुर्की भी प्रमुख था.

    तुर्की ने न केवल पाकिस्तान का राजनीतिक समर्थन किया, बल्कि सैन्य सहायता के भी कुछ संकेत सामने आए. भारत की सेना ने यह भी बताया कि संघर्ष के दौरान पाकिस्तान द्वारा जिन ड्रोन्स का उपयोग किया गया, वे तुर्की में बने थे. इस खुलासे के बाद भारत में जनभावनाएं तुर्की के खिलाफ भड़क उठीं.

    #BoycottTurkey: शांत लेकिन प्रभावी विरोध

    कोई आधिकारिक प्रतिबंध न लगाते हुए भी भारतीय जनता ने सोशल मीडिया और बाजार के माध्यम से शांत लेकिन सशक्त विरोध दर्ज कराया.

    ‘#BoycottTurkey’ नामक अभियान ने इंटरनेट पर ज़बरदस्त रफ्तार पकड़ी, और इसका सीधा असर तुर्की की अर्थव्यवस्था पर पड़ा.

    एक तरफ ट्रैवल वेबसाइट्स जैसे MakeMyTrip, Cleartrip और EaseMyTrip ने तुर्की से जुड़ी प्रमोशनल गतिविधियां और पैकेज हटा लिए, वहीं दूसरी तरफ टूरिज्म सेक्टर को सबसे ज्यादा झटका लगा.

    टूरिज्म पर बड़ा असर, आंकड़े गवाही दे रहे हैं

    तुर्की के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2025 के जून महीने में भारत से तुर्की जाने वाले पर्यटकों की संख्या में 37% की गिरावट दर्ज की गई. जहां जून 2024 में 38,307 भारतीय पर्यटक तुर्की गए थे, वहीं जून 2025 में यह संख्या घटकर 24,250 रह गई. मई महीने में भी यही रुझान देखने को मिला, जहां पर्यटक संख्या में दो अंकों की गिरावट आई.

    यह आंकड़े यह दर्शाते हैं कि भारत से आने वाले पर्यटक, जो तुर्की की टूरिज्म इंडस्ट्री का एक अहम हिस्सा बन चुके थे, अब वहां जाना पसंद नहीं कर रहे हैं.

    तुर्की की टूरिज्म अर्थव्यवस्था पर गहरा असर

    तुर्की में टूरिज्म जीडीपी का 12% हिस्सा है और भारत से आने वाले उच्च-खर्च करने वाले पर्यटक तुर्की के कई शहरों विशेषकर इस्तांबुल, कप्पाडोसिया और एंटाल्या के होटल, रेस्तरां और लोकल मार्केट्स के लिए आर्थिक इंजन का काम करते थे.
    अब इन क्षेत्रों में मांग घटने लगी है. होटल्स की बुकिंग में गिरावट आई है और लोकल दुकानदार भी इस बदलाव को महसूस कर रहे हैं.

    तुर्की के पर्यटन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने विदेशी मीडिया से बातचीत में माना कि, "भारत से आने वाले पर्यटकों में आई गिरावट ने हमारी रेवेन्यू स्ट्रक्चर को प्रभावित किया है. हम उम्मीद करते हैं कि दोनों देशों के बीच संबंध जल्द सुधरेंगे."

    तुर्की के लिए चेतावनी है यह आर्थिक झटका

    दुनिया में अब सैन्य कूटनीति के साथ-साथ आर्थिक और सांस्कृतिक कूटनीति भी बराबर महत्व रखती है. तुर्की के लिए यह एक संकेत है कि पाकिस्तान जैसे सीमित सहयोगी के पक्ष में खड़े होकर वह एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता.

    तुर्की के लिए यह आर्थिक झटका सिर्फ पर्यटन क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा. भारत से व्यापार, फार्मा और शिक्षा क्षेत्र में भी गिरावट की आशंका जताई जा रही है.

    भारत की विदेश नीति: संयमित लेकिन प्रभावशाली

    भारत सरकार ने तुर्की के खिलाफ न तो कोई आधिकारिक आर्थिक प्रतिबंध लगाया है और न ही कोई तीखा बयान जारी किया है. इसके बजाय भारत ने अपनी कूटनीति को जनता के विवेक और बाज़ार की ताकत पर छोड़ दिया और इसने साबित कर दिया कि जिम्मेदार वैश्विक शक्तियों की ताकत केवल बंदूक और बयानबाज़ी में नहीं होती, बल्कि उनके नागरिकों की चेतना में होती है.

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