कभी-कभी एक बयान पूरी दुनिया की राजनीति को हिला देता है. इस बार ये काम किया है फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने. गाज़ा में लगातार होती बमबारी, मलबे में दबे बच्चे, और भूख से बिलखते चेहरे... इन सबके बीच जब पूरा विश्व मौन हो गया, तब मैक्रों ने सबसे बड़ा नैतिक कदम उठाया—फ्रांस अब फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देगा. ये ऐलान प्रतीकात्मक ज़रूर है, लेकिन इसके राजनीतिक और कूटनीतिक असर इतने गहरे हैं कि तेल अवीव से लेकर वॉशिंगटन तक हलचल मच गई है.
"शांति अब भी संभव है": मैक्रों की सीधी अपील
गुरुवार को राष्ट्रपति मैक्रों ने एक्स पर लिखा—"गाज़ा में युद्ध का रुकना और आम नागरिकों की जान बचाना आज सबसे जरूरी है. फ्रांस अब फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता देगा. शांति संभव है." इसमें कोई दो राय नहीं कि ये फैसला सिर्फ एक कूटनीतिक दस्तावेज नहीं, बल्कि एक नैतिक संदेश भी है. जब दुनिया के ताकतवर देशों की आंखें बंद थीं, फ्रांस ने उस आवाज़ को मंच दिया जिसे सालों से दबाया जा रहा था- फिलिस्तीनी पहचान की आवाज.
इजरायल नाराज़, लेकिन फ्रांस टस से मस नहीं
इजरायल की तरफ से प्रतिक्रिया जितनी तीखी हो सकती थी, उतनी आई. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, "यह फैसला आतंकवाद को इनाम देने जैसा है. ऐसे हालातों में फिलिस्तीनी राज्य, इजरायल के खिलाफ हमलों की नई ज़मीन बन सकता है."
यानी इजरायल साफ तौर पर इसे अपने खिलाफ एक खतरा मान रहा है. लेकिन फ्रांस इस बार दबाव में झुकने वाला नहीं है. मैक्रों ने यह संकेत पहले ही दे दिया है कि यूरोप को अब गाज़ा की सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए.
हमास और फिलिस्तीनी प्रशासन ने जताई खुशी
जैसे ही फ्रांस का फैसला सार्वजनिक हुआ, फिलिस्तीनी पक्षों की ओर से प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई. हमास ने इस कदम का स्वागत करते हुए इसे ‘उत्पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों के लिए न्याय की दिशा में एक मजबूत क़दम’ बताया. वहीं फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को पेरिस से एक औपचारिक पत्र भी सौंपा गया, जिसमें फ्रांसीसी राष्ट्रपति की तरफ से ये मान्यता दी गई.
PLO के उपाध्यक्ष हुसैन अल शेख ने मैक्रों को धन्यवाद देते हुए कहा, "यह फैसला अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति फ्रांस की प्रतिबद्धता और फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन है."
यूरोप का बदलता मिजाज
यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब गाज़ा में मानवीय संकट को लेकर यूरोप भर में आक्रोश है. सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं, विश्वविद्यालयों में आंदोलन चल रहे हैं, और जनमत अब इजरायल की कार्रवाइयों को लेकर सवाल पूछ रहा है.
फ्रांस और सऊदी अरब संयुक्त राष्ट्र में एक बड़ा सम्मेलन आयोजित करने जा रहे हैं, जिसमें 'दो-राष्ट्र समाधान' को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाने की कोशिश होगी. उधर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने जर्मनी और फ्रांस के साथ आपात बैठक बुलाई है. उनका कहना है, "फिलिस्तीन की राज्य की मान्यता उसका जन्मसिद्ध अधिकार है."
ये भी पढ़ेंः 'चिंता मत कीजिए, हम अंग्रेजी भी समझ सकते हैं...', ब्रिटेन में पीएम मोदी का दिखा अनोखा अंदाज, जानिए क्या हुआ