नई दिल्लीः आजकल दुनिया भर में सशस्त्र संघर्ष और भू-राजनीतिक तनाव के कारण वैश्विक सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास के संघर्ष के बीच, अब थाईलैंड और कंबोडिया के बीच भी सीमा पर तनाव ने आग में घी डालने का काम किया है. इन घटनाओं ने देशों को अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए प्रेरित किया है. इसी कड़ी में, भारत और अमेरिका के अंतरिक्ष संगठन ISRO और NASA ने एक ऐतिहासिक साझेदारी की है, जो न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरणीय और वैश्विक आपदाओं के लिहाज से भी बेहद प्रभावशाली साबित होने वाली है.
ISRO और NASA का साझा उपग्रह: NISAR
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने मिलकर 'NISAR' (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) नामक एक सैटेलाइट को विकसित किया है. यह सैटेलाइट 30 जुलाई 2025 को अंतरिक्ष में स्थापित किया जाएगा और इसे लेकर वैश्विक स्तर पर उम्मीदें बहुत बड़ी हैं. NISAR की खासियत यह है कि यह हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की सतह को स्कैन करेगा और अत्यधिक सूक्ष्म परिवर्तन भी कैप्चर करेगा, जिनकी पहचान अभी तक नहीं हो पाती थी.
यह सैटेलाइट न केवल प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, हिमनदी का टूटना, तटीय क्षरण (coastal erosion) और भूस्खलन पर नजर रखेगा, बल्कि इसका इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों की निगरानी के लिए भी किया जा सकेगा. इसका मतलब है कि भारत के पड़ोसी देशों की गतिविधियों को भी आसानी से ट्रैक किया जा सकेगा. चीन और पाकिस्तान जैसी शक्तियों की चालबाजियों को पकड़ा जा सकता है, जिससे सुरक्षा के लिहाज से यह तकनीक बेहद अहम हो जाती है.
NISAR की तकनीकी खासियतें
NISAR में दो प्रकार के रडार सिस्टम होंगे: NASA का L-band और ISRO का S-band. यह दोनों मिलकर किसी भी मौसम की स्थिति में, चाहे बादल हों या बारिश, साफ तस्वीरें खींचने में सक्षम होंगे. L-band का उपयोग पेड़-पौधों, बर्फ, और चट्टानों की गहराई में जाकर जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाएगा, जबकि S-band सतह पर मौजूद जैसे मिट्टी, पत्तियां, और फसल की स्थिति पर नजर रखेगा.
इस सैटेलाइट के जरिए भूकंपीय हलचलें, जमीन धंसने की घटनाएं, ग्लेशियर झीलों के फैलने से होने वाले जलप्रलय (GLOF) जैसी आपदाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा. न सिर्फ आपदाओं का पूर्वानुमान, बल्कि पर्यावरण से जुड़े बहुत से पहलुओं जैसे जलवायु परिवर्तन, वनों की स्थिति और समुद्री तटों का क्षरण भी इस सैटेलाइट के जरिए मापे जा सकेंगे.
NISAR का वैश्विक प्रभाव
NISAR सैटेलाइट से प्राप्त डाटा को मुफ्त में भूवैज्ञानिकों, मौसम वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे इन क्षेत्रों में शोध और समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी. NASA के वैज्ञानिक पॉल रोसेन के अनुसार, "NISAR धरती की बदलती सतह की कहानी कहेगा, जैसे एक फिल्म के हर फ्रेम में बदलाव को देखा जाता है."
इस सैटेलाइट के माध्यम से, भारत न सिर्फ अपनी तकनीकी शक्ति को दुनिया के सामने प्रदर्शित कर रहा है, बल्कि यह दर्शा रहा है कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से वैश्विक समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है. इस साझेदारी की याद दिलाती है, जब 1975 में NASA और ISRO ने मिलकर SITE (Satellite Instructional Television Experiment) के तहत भारत के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा और कृषि परामर्श प्रसारित किया था.
ISRO और NASA के साझे मिशन की ऐतिहासिकता
ISRO के पूर्व उपनिदेशक अरूप दासगुप्ता ने कहा, "50 साल पहले हम NASA के उपग्रह से ग्रामीणों को शिक्षा दे रहे थे, और आज हम NASA के उपकरण को अपने प्रक्षेपण यान से लॉन्च कर रहे हैं. यह भारत की अंतरिक्ष प्रगति का प्रमाण है." यह साझेदारी न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत सहयोग का प्रतीक भी है.
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