इराक की राजधानी में चल रहे अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले के दौरान एक बेहद खास किताब का विमोचन हुआ — फिलिस्तीनी रेफरेंडम. इस पुस्तक में ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामेनेई द्वारा लंबे समय से रखे जा रहे उस प्रस्ताव का समर्थन किया गया है, जिसमें उन्होंने फिलिस्तीन में जनमत संग्रह के ज़रिये मसले के समाधान की बात कही है.
पुस्तक के विमोचन के तुरंत बाद खामेनेई ने सोशल मीडिया पर अपने विचार साझा करते हुए कहा कि अगर विरोध जारी रहा, तो इजराइल को जनमत संग्रह के लिए मजबूर किया जा सकता है. यह पुस्तक अब अरबी भाषा में भी उपलब्ध है.
किताब किन तीन बिंदुओं पर केंद्रित है?
‘फिलिस्तीनी रेफरेंडम’ में तीन प्रमुख प्रस्तावों को आधार बनाया गया है. गैर-स्थानीय यहूदियों की वापसी: पुस्तक में सुझाव दिया गया है कि जो यहूदी नागरिक फिलिस्तीन के मूल निवासी नहीं हैं, उन्हें उनके देश लौटाया जाए. सभी समुदायों को वोटिंग अधिकार: इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि जनमत संग्रह में मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों सभी फिलिस्तीनियों को समान मताधिकार मिलना चाहिए, चाहे वे कहीं भी निर्वासित हों. संघर्ष जारी रखने की वकालत: जब तक इजराइल, फिलिस्तीनी जनता की लोकतांत्रिक इच्छा को नहीं मानता, तब तक राजनीतिक और सैन्य स्तर पर संघर्ष जारी रखने की आवश्यकता जताई गई है.
खामेनेई ने क्या कहा?
आयतुल्ला खामेनेई ने X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा, फिलिस्तीन को लेकर कोई भी योजना तभी स्वीकार्य हो सकती है जब वह स्वयं फिलिस्तीनी लोगों की इच्छा से बने. वहां कौन शासन करेगा, यह फैसला उन सभी लोगों को करना चाहिए जो इस भूमि से जुड़े रहे हैं, चाहे वे मुसलमान हों, ईसाई हों या यहूदी. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि जिन्हें ज़बरदस्ती बाहर निकाला गया, उनकी भी राय जनमत संग्रह में ली जानी चाहिए. खामेनेई ने यह भी कहा कि जब तक इजराइल मान्यता नहीं देता, तब तक संघर्ष ही एकमात्र रास्ता है.
पुस्तक विमोचन में कौन-कौन शामिल रहा?
इस विशेष अवसर पर कई अहम हस्तियां उपस्थित रहीं. प्रो. सय्यद जासिम अल-जजायरी, हमास के वरिष्ठ नेता मोहम्मद अल-हाफी, ईरानी उप-राजदूत डॉ. अज़ीज़ पनाह, पॉपुलर मोबलाइजेशन फोर्सेज (PMF) के पूर्व कमांडर शेख अबू अकील अल-काज़िमी, लेखक और विद्वान डॉ. मोहम्मद अखग़री, शहीद अहमद अल-मुहन्ना के पिता, गाजा युद्ध में घायल महिला अस्माहन जुमआ, इस दौरान पुस्तक का अरबी अनुवाद भी जारी किया गया, जिससे यह विचार और अधिक देशों में पहुंच सके.
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