तेहरान: ईरान और इज़राइल के बीच दस दिनों तक चले सैन्य संघर्ष के बाद भले ही एक अस्थायी संघर्षविराम लागू हो गया हो, लेकिन कूटनीतिक बयानबाज़ी अब भी जारी है. इस बार ईरान ने अमेरिका को सीधे तौर पर चेतावनी दी है, जिसमें कहा गया कि “यदि फिर से अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हुआ, तो जवाब देने में देर नहीं होगी.”
ईरान के भारत स्थित राजदूत इराज इलाही ने सोमवार देर रात एक साक्षात्कार में कहा कि अमेरिका और इज़राइल पर भरोसा नहीं किया जा सकता, और ईरान अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाने को तैयार है.
हमने अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाया- ईरान
23 जून की रात को, ईरान ने कतर में स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर जवाबी हमले किए. ईरानी राजदूत के अनुसार, यह हमला अमेरिका की ओर से पहले किए गए बमबारी का “संतुलित जवाब” था.
राजदूत इलाही ने दावा किया, "दुनिया में शायद ही किसी देश ने अमेरिकी सैन्य अड्डों को सीधे निशाना बनाया हो, लेकिन हमने किया. ये हमारा अधिकार है. अगर हमारी सुरक्षा, वैज्ञानिक संस्थान या नागरिक क्षेत्रों पर हमला होता है, तो हम चुप नहीं बैठेंगे."
इज़राइल पर गंभीर आरोप: 'अस्पताल निशाना बने'
ईरान ने इज़राइल पर सैन्य कार्रवाई के दौरान नागरिक ठिकानों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है. राजदूत ने कहा कि हमले में न सिर्फ सैन्य प्रतिष्ठान, बल्कि अस्पताल, एंबुलेंस और रिहायशी इलाके भी प्रभावित हुए हैं. "यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन है," उन्होंने कहा.
ईरान का यह भी आरोप है कि इज़राइल ने उनके शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया, और इसी के जवाब में ईरान ने सैन्य प्रतिकार किया.
ट्रंप की मध्यस्थता और संघर्षविराम की घोषणा
इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के बीच संघर्षविराम लागू होने की पुष्टि की है. उन्होंने बयान में कहा, "ईरान और इज़राइल दोनों ही मेरे पास एक ही समय पर शांति की बात लेकर आए. यह मध्य पूर्व और समूची दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है."
हालांकि, ट्रंप ने यह भी जोड़ा कि यदि भविष्य में कोई पक्ष "धर्म और सत्य के मार्ग से भटकता है", तो इसका बड़ा नुकसान हो सकता है.
अब भी अनिश्चित है स्थिति
हालांकि संघर्षविराम लागू है, लेकिन ईरान और इज़राइल के बीच जारी अविश्वास, और अमेरिका की भूमिका पर तीखी प्रतिक्रियाएं संकेत देती हैं कि यह स्थायी समाधान नहीं है. जानकारों का मानना है कि अगर कूटनीतिक प्रयासों में संतुलन नहीं रहा, तो क्षेत्रीय तनाव फिर से उभर सकता है.
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