डोनाल्ड ट्रंप को लेकर एक कड़वी सच्चाई है- दुनिया के कई हिस्सों में लोग अब भी उन्हें अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं, एक जिंदा टारगेट मानते हैं. इस बार खतरा सिर्फ मौखिक नहीं है. योजनाबद्ध, खुलेआम और लाखों डॉलर की मदद से उनकी हत्या की प्लानिंग की जा रही है.
ताज़ा खुफिया इनपुट्स के मुताबिक, ईरान और उसके पड़ोसी अज़रबैजान में ट्रंप की हत्या के लिए बाकायदा क्राउडफंडिंग चलाई जा रही है. अभी तक इस फंड में 40 मिलियन डॉलर (लगभग 350 करोड़ रुपये) जमा हो चुके हैं.
मामला सिर्फ फतवे का नहीं, अब पैसे और प्लानिंग की बात हो रही है
ईरान और अमेरिका के रिश्ते हमेशा तल्ख रहे हैं, लेकिन ट्रंप के कार्यकाल में यह दुश्मनी जहर बन गई थी. ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की अमेरिकी हमले में मौत ने इस दुश्मनी को स्थायी बना दिया. अब ईरान में बैठे कुछ कट्टरपंथी मौलवी, जिनमें कुछ सीधे राज्य से जुड़े हैं, ट्रंप की हत्या को 'फर्ज़' बताकर क्राउडफंडिंग चला रहे हैं. 'ब्लड कोवेनेंट' नामक एक कट्टर समूह ने कई फतवों के बाद इस फंडिंग को शुरू किया और कथित तौर पर उन्हें 12 से ज्यादा ईरानी मौलवियों का समर्थन हासिल है. इस ग्रुप ने खुलेआम ट्रंप की हत्या के लिए फंड जुटाना शुरू कर दिया. सबसे खतरनाक बात? कोई भी व्यक्ति, कहीं से भी इस फंड में पैसे दे सकता है. कोई 5 डॉलर दे, कोई 50 हजार. न नाम की जरूरत, न पहचान की.
पैसे कौन रख रहा है? निशाना कौन लगाएगा? किसी को नहीं पता
खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक यह साफ नहीं है कि जमा हुआ पैसा कहां रखा गया है, किसके पास है या इसका इस्तेमाल किसे करना है. ना ही किसी खास आतंकी संगठन का नाम सामने आया है. लेकिन इतना तय है कि ये रकम अब सिर्फ 'विचार' नहीं, 'एक्शन' के लिए तैयार की जा रही है. यही वजह है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां अब ट्रंप की हर मूवमेंट पर एक्स्ट्रा सतर्कता बरत रही हैं—खासकर उनके विदेशी दौरों और रात रुकने की जगहों को लेकर.
अज़रबैजान का मौलवी भी मैदान में
इस पूरे प्लान में एक और मोड़ तब आया जब अज़रबैजान के पश्चिमी हिस्से में तैनात एक मौलवी ने ट्रंप की हत्या पर 100 बिलियन तोमन (लगभग 1.2 मिलियन डॉलर) का इनाम घोषित कर दिया. यह मौलवी भी सीधे राज्य के अंतर्गत आता है. इससे यह साफ हो गया है कि सिर्फ कुछ गैर-राज्य तत्व नहीं, बल्कि राज्य से जुड़े धर्मगुरु भी खुलेआम ट्रंप की हत्या को समर्थन दे रहे हैं.
तो क्या ट्रंप अब चलती-फिरती टारगेट हैं?
ट्रंप जितने विवादित रहे हैं, उतने ही सुरक्षा जोखिम भी बन चुके हैं. आज भले ही वह व्हाइट हाउस में नहीं हैं, लेकिन उनके फैसलों की कीमत अब भी उन्हें चुकानी पड़ रही है. ट्रंप खुद को अमेरिका और दुनिया के बीच 'शांति का सौदागर' कहते हैं, लेकिन ईरान के लोगों और धार्मिक नेतृत्व की नजर में वो युद्ध का किंगपिन हैं. यही वजह है कि फतवे से लेकर फंड तक, सब कुछ उन्हें मिटाने के लिए चल रहा है.
अमेरिका के लिए नई चुनौती
यह सिर्फ एक व्यक्ति की सुरक्षा का मामला नहीं है. यह अमेरिकी सत्ता, विदेश नीति और वैश्विक कूटनीति के प्रति गहराते गुस्से और प्रतिरोध की झलक है. अगर किसी राष्ट्रपति की हत्या के लिए सार्वजनिक फंडिंग हो रही है और धार्मिक नेतृत्व उसे समर्थन दे रहा है, तो यह अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर अलार्म है.
ये भी पढ़ेंः चीनी लालच की चिंगारी ने अफगान जमीन को फिर से सुलगाया, बदख्शां की खदानों पर हिंसा; जानिए क्या है पूरा मामला