ईरान को मिला ‘तकनीकी खजाना’, जंग में इजरायल को महंगा ना पड़ जाए; खामेनेई की बल्ले-बल्ले!

    इजरायल ने जो ड्रोन ईरान में इस्तेमाल किए थे, उनमें Hermes जैसे मिड-रेंज सर्विलांस ड्रोन शामिल थे. ये बेहद सटीक इंटेलिजेंस जुटाने में सक्षम हैं और लंबी दूरी तक उड़ सकते हैं.

    Iran got technological treasure Israel war Khamenei
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    इजरायल ने ईरान पर अपना तेज़ और सटीक हमला किया, तो उसकी नजर सिर्फ तबाही मचाने पर थी. लेकिन जो बात शायद इजरायली प्लानर भूल गए, वो यह थी कि जंग के मैदान में छोड़ी गई तकनीकें भी हथियार बन सकती हैं. और यही हुआ.

    इजरायल के सैकड़ों आधुनिक ड्रोन जो या तो क्रैश हो गए या ईरान की पकड़ में आ गए, अब तेहरान के वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाओं में खोले जा रहे हैं, समझे जा रहे हैं, और दोबारा गढ़े जा रहे हैं. इसे कहते हैं रिवर्स इंजीनियरिंग — यानी किसी जटिल टेक्नोलॉजी को टुकड़ों में तोड़कर उसकी रचना की प्रक्रिया को समझना और उसी आधार पर वैसी ही या उससे बेहतर तकनीक दोबारा तैयार करना.

    रिवर्स इंजीनियरिंग क्या होती है?

    यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें किसी मशीन या सिस्टम को खोलकर उसके हर पुर्जे का अध्ययन किया जाता है. जैसे कि किसी ड्रोन में लगे कैमरे, सेंसर्स, मोटर, चिप्स, रेडार सिस्टम, एयरफ्रेम—हर तकनीकी हिस्सा अलग किया जाता है और उसकी कार्यप्रणाली समझी जाती है.

    सबसे पहले ड्रोन के फर्मवेयर और इलेक्ट्रॉनिक डाटा को स्कैन किया जाता है. फिर डिजिटल मॉडलिंग सॉफ्टवेयर जैसे CAD का इस्तेमाल करके उसका वर्चुअल नक्शा तैयार किया जाता है. इसके बाद उस मॉडल को कंप्यूटर पर सिमुलेट करके देखा जाता है कि वह किस तरह उड़ान भरता है, कहां-कहां ताकत और कमजोरी है. इसके बाद उसी तकनीक के आधार पर नए इंजन, एयरफ्रेम और कंट्रोल सॉफ्टवेयर तैयार किए जाते हैं. कई बार तो इससे बेहतर सिस्टम डेवलप कर लिया जाता है—और वह भी बिना किसी लाइसेंस या पेटेंट की बाधा के.

    कौन से ड्रोन मिले ईरान को?

    मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजरायल ने जो ड्रोन ईरान में इस्तेमाल किए थे, उनमें Hermes जैसे मिड-रेंज सर्विलांस ड्रोन शामिल थे. ये बेहद सटीक इंटेलिजेंस जुटाने में सक्षम हैं और लंबी दूरी तक उड़ सकते हैं. इसके अलावा FPV यानी First Person View ड्रोन भी शामिल थे—ये छोटे क्वाडकॉप्टर होते हैं जो विस्फोटकों से लैस होते हैं और आत्मघाती मिशन के लिए जाने जाते हैं.

    इन दोनों ही ड्रोन तकनीकों को ईरान अब बारीकी से समझ रहा है. उसके वैज्ञानिक ड्रोन के इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल सिस्टम से लेकर उसके लकड़ी-मेटल मिश्रित फ्रेम तक का विश्लेषण कर रहे हैं. इसका उद्देश्य साफ है: ईरान अपने खुद के संस्करण बनाएगा—और संभव है कि यह संस्करण पहले से ज्यादा उन्नत हों.

    ईरान का अनुभव पहले से है

    ईरान पहले भी यह कर चुका है. अमेरिका का RQ-170 स्टील्थ ड्रोन जब उसके कब्ज़े में आया था, तब भी उसने उसका रिवर्स इंजीनियरिंग करके Simorgh नाम का ड्रोन तैयार कर लिया था. और अब Hermes जैसे इजरायली ड्रोनों पर भी वही प्रक्रिया अपनाई जा रही है.

    इन नए बन रहे ड्रोनों की खास बात है कि ये स्टील्थ होंगे, रडार से छिप सकते हैं और लंबी दूरी तक सर्विलांस कर सकते हैं. यही नहीं, युद्ध के समय इनका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, मिसाइल लॉन्च और एयरस्ट्राइक जैसे कामों में किया जा सकता है.

    खतरा सिर्फ इजरायल को नहीं, पूरे क्षेत्र को है

    अगर ईरान इन ड्रोनों को न सिर्फ बनाता है बल्कि दूसरे देशों को बेचता है, तो यह वेस्ट एशिया के शक्ति संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है. खासकर ऐसे दौर में जब ईरान पहले से रूस को ड्रोन सप्लाई कर रहा है, और अमेरिका व इजरायल की पॉलिसी उसे तकनीकी रूप से अलग-थलग करने की रही है. अब स्थिति उलटती दिख रही है. जंग में छोड़ा गया हर ड्रोन अब खुद एक हथियार बन चुका है—ईरान के लिए, और उसके संभावित ग्राहकों के लिए.

    एक छोटी भूल, बड़ी रणनीतिक चूक

    इजरायल के लिए यह चेतावनी है कि आधुनिक युद्ध सिर्फ जमीनी नुकसान तक सीमित नहीं होते. हार्डवेयर अगर दुश्मन के हाथ लग जाए, तो वह आपकी तकनीक को आपकी ही ताकत के खिलाफ मोड़ सकता है. और ईरान, जो वर्षों से तकनीकी प्रतिबंधों के बावजूद खुद को साइंस और टेक्नोलॉजी की दिशा में आगे बढ़ा रहा है, अब उन ड्रोन को 'गोल्ड माइन' की तरह इस्तेमाल करने को तैयार है.

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