ईरान ने अपने यहां रह रहे लाखों अफगान शरणार्थियों को देश छोड़ने का अंतिम आदेश जारी कर दिया है. सरकारी निर्देश के अनुसार, अगर ये लोग 6 जुलाई 2025 तक स्वेच्छा से ईरान नहीं छोड़ते हैं, तो उन्हें गिरफ्तार कर निर्वासित किया जाएगा. ईरान की इस कड़ी कार्रवाई ने मानवाधिकार संगठनों की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि यह कदम देश में सुरक्षा तनाव और हालिया युद्ध के हालात के बीच लिया गया है.
ईरान ने क्यों अपनाई सख्ती?
साल 2023 से ईरान में अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो चुकी थी, लेकिन इजराइल के साथ 12 दिन चले हालिया संघर्ष और अमेरिका द्वारा शुरू किए गए 'ऑपरेशन मिडनाइट हैमर' के बाद यह अभियान और तेज़ कर दिया गया है. सोशल मीडिया पर फैले आरोपों में कहा गया है कि कुछ अफगान नागरिक इजराइल के लिए जासूसी कर रहे हैं, जिससे सुरक्षा एजेंसियों में खलबली मच गई है.
शरणार्थियों को दी गई समय सीमा
तेहरान सरकार ने देश में रह रहे अवैध अफगानों को 6 जुलाई तक का समय दिया है. इसके बाद उन्हें या तो जबरन वापस भेजा जाएगा या हिरासत में लिया जाएगा. इन शरणार्थियों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जो 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद अफगानिस्तान से भागे थे.
ईरान में कितने अफगान हैं?
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) के आंकड़ों के अनुसार, ईरान में लगभग 40 लाख अफगान नागरिक रहते हैं. इनमें से कई पीढ़ियों से वहां बसे हैं और अधिकतर ने कानूनी दर्जा हासिल नहीं किया है. मार्च 2025 में ईरानी सरकार ने एक आदेश में कहा था कि जिन अफगानों के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें जुलाई की शुरुआत तक देश छोड़ देना होगा.
अब तक कितनों ने छोड़ा देश?
UNHCR की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान द्वारा शरणार्थियों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू करने के बाद 7 लाख से अधिक अफगान नागरिक देश छोड़ चुके हैं. अकेले जून 2025 में यह संख्या 2.3 लाख के पार चली गई. युद्ध के बाद हर दिन करीब 30,000 अफगानों को जबरन निकाला गया, जो पहले के औसत 2,000 प्रतिदिन से कई गुना ज्यादा है.
मानवाधिकार संगठनों की चेतावनी
अंतरराष्ट्रीय संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इस निर्वासन से अफगानिस्तान में हालात और बिगड़ सकते हैं. देश पहले ही गरीबी, बेरोजगारी और तालिबानी शासन के चलते संकट में है, ऐसे में लाखों लोगों की अचानक वापसी अफगान समाज के लिए एक और बड़ा झटका बन सकती है.
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