अमेरिका की मनमानी पर भारत ने दिखाया ठेंगा, रूस से मिलाया हाथ; दुनिया को दिखाई ताकत

    रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका ने एक नया विवादास्पद प्रस्ताव पेश किया है, जिसके तहत वह उन देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है जो रूसी कच्चे तेल का आयात कर रहे हैं.

    India will now bow infront of america
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    रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका ने एक नया विवादास्पद प्रस्ताव पेश किया है, जिसके तहत वह उन देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है जो रूसी कच्चे तेल का आयात कर रहे हैं. इस विधेयक का उद्देश्य रूस की ऊर्जा आय को कम कर यूक्रेन में चल रहे उसके युद्ध प्रयास को कमजोर करना है. लेकिन इस बिल ने भारत में गहरी चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि भारत इस समय रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है. हालांकि, भारत ने इस संभावित अमेरिकी कानून पर कड़ा रुख अपनाया है और स्पष्ट किया है कि वह राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेगा.

    भारत ने दिखाई तेल नीति में स्वायत्तता

    भारत ने अमेरिका को दो टूक संदेश दिया है कि वह सबसे सस्ती कीमत पर कहीं से भी तेल खरीदने का अधिकार रखता है — बशर्ते उस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध न लगे हों. जून 2025 में भारत ने 2.08 मिलियन बैरल प्रतिदिन रूसी तेल का आयात किया, जो पिछले 11 महीनों में सबसे ज्यादा है. भारत के कुल क्रूड ऑयल बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी 43.2% तक पहुंच चुकी है. जो इराक, सऊदी अरब और यूएई जैसे पारंपरिक सप्लायर्स को पीछे छोड़ चुकी है.

    अमेरिकी बिल से क्या बदलेगा?

    अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम द्वारा प्रायोजित यह बिल अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन से आगे बढ़ाया जा रहा है. यदि यह कानून बनता है, तो भारत को रूस से तेल आयात कम करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. इससे भारत की तेल लागत में वृद्धि होगी और अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं पर भी असर पड़ सकता है. हालांकि, भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह रूस से तेल आयात पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं देखता, और अगर पश्चिमी देशों की 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा को नजरअंदाज किया जाए तो भारत के रिफाइनरों के लिए रूसी तेल अब भी मूल्य के हिसाब से सबसे प्रतिस्पर्धी विकल्प बना हुआ है.

    रूस भारत के लिए क्यों बना सबसे अहम सप्लायर?

    डिस्काउंटेड दाम: 2022 से अब तक रूस भारत को अपने कच्चे तेल पर भारी छूट देता आया है. लचीला भुगतान और बीमा सिस्टम: पश्चिमी प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस ने वैकल्पिक ढांचे तैयार किए हैं. ऊर्जा रणनीति: भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का 88% आयात करता है और उसे किफायती स्रोतों की सख्त ज़रूरत है. केप्लर एनालिटिक्स के मुताबिक, भारत में आने वाले महीनों में रूसी तेल की हिस्सेदारी 35-40% के स्तर पर बनी रह सकती है, जब तक कि कोई बड़ा प्रतिबंध या लॉजिस्टिक रुकावट न आए.

    मिडिल ईस्ट और अमेरिका की भूमिका

    हालांकि, इराक (18.5%), सऊदी अरब (12.1%), और यूएई (10.2%) अब भी भारत के तेल आयात में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन इनकी हिस्सेदारी धीरे-धीरे रूस के मुकाबले कम हो रही है. अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है, लेकिन लॉजिस्टिक्स और कीमत के कारण यह आपूर्ति अब भी सीमित है.

    भारत की ऊर्जा रणनीति का भविष्य

    भारत न केवल रूसी तेल के विकल्पों को खोज रहा है, बल्कि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अमेरिका से भी विविधीकरण की दिशा में कदम बढ़ा रहा है. लेकिन लॉजिस्टिक लागत, माल भाड़ा और सप्लाई स्थिरता जैसे कारकों के चलते रूसी तेल की प्रतिस्पर्धा अभी भी सबसे अधिक बनी हुई है.

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