नई दिल्ली: वैश्विक व्यापार पर अमेरिका की नई टैरिफ रणनीति ने जहां इंडो-पैसिफिक के कई देशों के लिए चुनौती खड़ी की है, वहीं भारत के लिए यह एक रणनीतिक अवसर के रूप में उभर रही है. अरिहंत कैपिटल की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका भारत पर अन्य देशों की तुलना में कम टैरिफ लागू कर सकता है, जिससे भारत वैश्विक निवेश और उत्पादन का केंद्र बनने की दिशा में कदम बढ़ा सकता है.
भारत को मिल सकता है टैरिफ से राहत
डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन द्वारा 14 देशों पर भारी टैरिफ लगाने की घोषणा के बीच यह देखा गया है कि भारत को अब तक किसी तरह का टैरिफ नोटिस नहीं भेजा गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की रणनीतिक अहमियत और मजबूत द्विपक्षीय संबंधों के चलते वॉशिंगटन भारत के लिए एक अलग दृष्टिकोण अपना सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के अन्य देशों जैसे कंबोडिया और वियतनाम की तुलना में कहीं बेहतर स्थिति में है, जिन्हें पहले ही उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है.
भारत की नीति और वैश्विक घटनाएं
भारत की ‘चाइना 1’ नीति, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाएं और हाल ही में हुई व्यापार संधियाँ अब निवेशकों के लिए भारत को एक व्यावसायिक रूप से आकर्षक गंतव्य बना रही हैं.
विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, ऑटो और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने की संभावनाएं बढ़ी हैं. अमेरिका की नीति जहां आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से हटाने पर केंद्रित है, वहीं भारत इसका भरोसेमंद विकल्प बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
टैरिफ लिस्ट में 14 देश, भारत बाहर
ट्रम्प द्वारा घोषित नई टैरिफ नीति में जिन 14 देशों पर शुल्क लगाया गया है, उनमें जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया और कजाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं. इन पर 25% से लेकर 50% तक के आयात शुल्क लगाए गए हैं. अमेरिका ने जापान और कोरिया के नेताओं को इस संबंध में औपचारिक पत्र भी भेजा है.
भारत को अभी तक ऐसा कोई नोटिस नहीं मिला है, जिसे रिपोर्ट में भारत के लिए सकारात्मक संकेत माना गया है.
भारत की ट्रेड डिप्लोमैसी का असर दिखने लगा
हाल ही में भारत और ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) साइन हुआ है और यूरोपीय संघ के साथ बातचीत जारी है. इन दोनों समझौतों ने भारत को वैश्विक व्यापार तंत्र में और मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया है.
यही नहीं, ये समझौते भारत को विकासशील से विकसित मैन्युफैक्चरिंग इकोनॉमी की ओर ले जाने में सहायक हो सकते हैं.
चुनौतियां भी मौजूद हैं, रणनीति जरूरी
रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि अमेरिका अपनी री-शोरिंग नीति के तहत सेमीकंडक्टर्स, रक्षा उत्पादों और फार्मास्युटिकल्स के उत्पादन को अपने देश में लाने पर जोर दे रहा है.
यदि ट्रम्प प्रशासन इन क्षेत्रों में सख्त रुख अपनाता है, तो भारत को उतना लाभ नहीं मिल पाएगा, जितनी संभावना नजर आ रही है. ऐसे में भारत को चाहिए कि वह उद्योग नीति, लॉजिस्टिक्स सुधार और टैक्स स्थिरता जैसे क्षेत्रों में निरंतर सुधार करते हुए अपनी प्रतिस्पर्धा बनाए रखे.
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