भारत और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के बीच चल रहे सीमा विवादों की तरह अब काकेशस क्षेत्र के दो देशों—आर्मेनिया और अजरबैजान—के बीच भी हालात तेजी से बिगड़ते नजर आ रहे हैं. दोनों देशों की सीमाओं पर लगातार गोलीबारी की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे हालात बेहद तनावपूर्ण हो गए हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि अजरबैजानी सैनिक हर रात करीब 10 बजे फायरिंग करते हैं. शुरुआत में यह गोलियां केवल हवा में चलाई जाती थीं, लेकिन अब ये कई बार आर्मेनिया की सीमा में बसे घरों तक पहुंच रही हैं. हालांकि, अब तक किसी के घायल होने की खबर नहीं है. वहीं दूसरी ओर, अजरबैजान ने इस तरह की किसी भी कार्रवाई से इनकार किया है और उल्टा आर्मेनियाई सेना पर संघर्ष विराम के उल्लंघन का आरोप लगाया है.
लंबे समय से चला आ रहा है सीमा विवाद
आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच तनाव नया नहीं है. दोनों देशों की करीब 1,000 किलोमीटर लंबी सीमा 1990 के दशक से भारी सैन्य तैनाती के साये में है. पिछले चार दशकों में ये दो बड़े युद्ध लड़ चुके हैं, जिससे इस पूरे क्षेत्र में अस्थिरता बनी हुई है.
यह इलाका न केवल रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है—क्योंकि यह यूरोप को तेल और गैस की आपूर्ति का मार्ग है—बल्कि रूस, ईरान और तुर्की जैसे प्रभावशाली देशों के लिए भी एक संवेदनशील भू-भाग है. अब एक बार फिर आशंका जताई जा रही है कि अगर मौजूदा हालात पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो दोनों देशों के बीच एक और युद्ध भड़क सकता है.
शांति समझौता अधर में, तनाव बढ़ा
मार्च 2025 में दोनों देशों ने एक संभावित शांति समझौते की रूपरेखा पर सहमति जताई थी, जिसमें 2026 तक हस्ताक्षर किए जाने की बात थी. समझौते के तहत, साझा सीमा की स्पष्ट पहचान की जानी है. हालांकि, अजरबैजान की ओर से अंतिम पुष्टि से पहले आर्मेनिया को अपने संविधान में बदलाव करना होगा, लेकिन जबसे यह घोषणा हुई है, तब से सीमा पर संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाएं फिर से बढ़ गई हैं.
आर्मेनिया ने बढ़ाई सैन्य ताकत
2020 और 2023 में अजरबैजान के खिलाफ हुई हारों के बाद आर्मेनिया ने अपनी रक्षा नीति में बड़ा बदलाव किया है. उसने भारत और फ्रांस से कई अत्याधुनिक हथियार खरीदे हैं.
भारत से मिली सैन्य सहायता में पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, आकाश एयर डिफेंस सिस्टम और कल्याणी ग्रुप की आधुनिक तोपें शामिल हैं. इनसे आर्मेनिया की सैन्य क्षमताएं काफी मजबूत हुई हैं. अगर संघर्ष दोबारा छिड़ता है, तो ये हथियार आर्मेनिया की रक्षा नीति में अहम भूमिका निभा सकते हैं.
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